कॉलेज का टाइम सबसे यादगार समय होता है। फुल मस्ती, फुल धमाल…ना कोई डर, ना कोई फिक्र। फ्यूचर की टेंशन के साथ-साथ आज को भरपूर जीना। यहीं तो है कॉलेज लाइफ। जिसमें दोस्तों से बड़ा कोई हमदर्द नहीं…दोस्ती-यारी, बेफिक्री, दिलदारी ..बस इसी में हंसते-खेलते निकल जाते हैं कॉलेज के तीन साल। और पता भी नहीं चलता। और कॉलेज की वहीं यादें ताज़ा करती है सुशांत सिंह राजपूत(Sushant Singh Rajput) व श्रद्धा कपूर(Shradhha Kapoor) स्टारर छिछोरे(Chhichhore) जो रिलीज़ हो चुकी है…..छिछोरे फिल्म के ट्रेलर को भी दर्शकों ने काफी पसंद किया था अगर आप अब इस फिल्म को देखने का प्लान बना रहे हैं तो पहले ज़रा मूवी रिव्यु पर नज़र जरूर डाल लें।
कहानी – छिछोरे की कहानी अनिरुद्ध (सुशांत सिंह राजपूत) व उनके बेटे राघव (मोहम्मद समद) के साथ शुरू होती है। माया(श्रद्धा कपूर) से तलाक के बाद अनिरूद्ध अपने बेटे राघव को अकेले ही बड़ा करता है। पढ़ाई -लिखाई में राघव बहुत होनहार और मेहनती है लेकिन एंट्रेंस एग्ज़ाम में सिलेक्ट न होने से इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाता और बिल्डिंग से कूदकर जान देने की कोशिश करता है। जिससे उसके सिर गहरी चोट लगती है। बस फिर क्या…. अनिरुद्ध अपने बेटे में जज्बा कायम करने के लिए उसे अपने हॉस्टल डेज के किस्से बताता है। यहीं से स्टोरी फ्लैशबैक में जाती है और असल कहानी की शुरूआती होती है। फिल्म में सेक्सा( वरुण शर्मा), डेरेक (ताहिर राज भसीन), एसिड (नवीन पॉलीशेट्टी), बेवड़ा (सहर्ष शुक्ला), क्रिस क्रॉस( रोहित चौहान), मम्मी (तुषार पांडे) जैसे किरदारों की एंट्री होती है। और शुरूआत होती है कॉलेज व होस्टल के उस मज़ेदार दौर की जिसे हर कोई जरूर जीना चाहता है। मगर अनिरुद्ध के अतीत की कहानी से राघव की हालत क्रिटिकल हो जाती है। ऐसे में क्लाइमेक्स में आखिर क्या होगा। ये बताकर हम आपका मज़ा किरकिरा नहीं करेंगे। इसके लिए आपको फिल्म देखनी चाहिए।
फिल्म का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है कि ये यूथ को अट्रैक्ट करती है। फिल्म की कहानी कॉलेज और होस्टल के दिनों में ले जाती है और यहीं इसका सबसे छूने वाला पल है। होस्टल में लड़को की होने वाली बदमाशियों, छिछोरी डायलॉगबाज़ी, कालेज टाइम का रोमांस व दुश्मनी सभी कुछ बड़े ही अच्छे ढंग से दिखाया गया है जो दर्शकों पर गहरी छाप भी छोड़ता है और उनके कॉलेज टाइम की यादों को ताज़ा भी कर देता है। वहीं मौजूदा समय और फ्लैशबैक के बीच भी निर्देशक तालमेल बिठाने में कामयाब नज़र आते हैं। ये फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ और नब्बे के दशक में आई ‘जो जीता वही सिकंदर’ की याद ज़रूर आपको दिला देगी। फिल्म के गाने भी परिस्थितियों पर सटीक बैठते हैं। कुल मिलाकर फिल्म दमदार है और दर्शकों का फुल मनोरंजन करती है। ऐसे में समय निकालकर पुरानी यादों को ताज़ा कीजिए…और छिछोरे ज़रूर देखिए।
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