Thappad Movie Review: बस थप्पड़ ही तो था। क्या करूं हो गया ना। पर सवाल ये है कि ऐसा हुआ क्यों? बस इसी क्यों का जवाब ढूंढती है अनुभव सिन्हा कि फिल्म थप्पड़। इस फिल्म का ट्रेलर देखकर आपने अनुमान तो लगा ही लिया होगा कि ये किसी घरेलू हिंसा पर बनी फिल्म नहीं है। बल्कि यह फिल्म बनी है पुरुष द्वारा अपनी पत्नी की सरेआम डिसरिस्पेक्ट करने पर। एक थप्पड़ ही तो था इसमें इतना बवाल क्यों? फिल्म के इसी डायलॉग को चेलेंज करती हैं तापसी पन्नू जो अमृता नामक महिला का किरदार निभा रही हैं।
समाज में अगर एक पुरुष भरी महफिल में अपनी पत्नी को गुस्से में एक थप्पड़ मार देता है तो वो बहुत सामान्य से बात होती है। इसी सामान्य से थप्पड़ को असामान्य साबित करने के लिए अमृता अपने पति से लड़ती है, फिर परिवार से और फिर उसकी ये सामान्य से थप्पड़ की लड़ाई पूरे समाज के साथ होती है। इस फिल्म में 5 महिलाओं की कहानी को दर्शाया गया है ।
(Thappad Movie Review) फिल्म की कहानी में तापसी पन्नू (अमृता) हाउस वाइफ की भूमिका निभा रही हैं। अमृता को घर के कामकाज करना पसंद है। वह अपने पति का ख्याल एक मां की तरह रखती है। सुबह की चाय से लेकर ऑफिस जाने के बैग तक, अमृता हर चीज़ अपने पति के लिए शुशी-शुशी करती है। शादी के बाद प्यार और परिवार के लिए वह खुद को पूरी तरह समर्पित करती है। अमृता का पति विक्रम अपने काम के नशे में चूर रहता है। विक्रम ऑफिस पॉलिटिक्स से परेशान रहता है और सारा गुस्सा अमृता पर निकालता है। धीरे-धीरे फिल्म अपने उस प्वाइंट पर आती है जिससे इसका नाम रखा गया है।
इस कहानी में 5 महिलाओं को दर्शाया गया है जिनकी कहानी कुछ-कुछ तापसी जैसी ही है। तापसी (अमृता) की बाई का पति उसको इसलिए मारता है क्योंकि वह उसकी बात काट देती है। वहीं अमृता की सास अपने बेटे के लिए पति से अलग रहती है। दूसरी ओर अमृता की मां ने अपनी गायिकी को त्याग दिया क्योंकि अमृता के पिता को ये मंजूर नहीं था। वहीं अमृता के लिए लड़ने वाली उसकी वकील भी अपने पति की शोहरत में घुटती है। इन सभी महिलाओं की कहानी में घरेलू हिंसा नहीं दिखाई गई है, बल्कि इन महिलाओं की कहानी में उस पुरुष अहम पर ज़ोर दिया गया है जिसे समाज में मामूली सी बात कहकर टाल दिया जाता है और जिसकी चर्चा कम होती है। तापसी की इस फिल्म में कानूनी दांवपेंच भी पारिवारिक ताने-बाने पर तीखी टिप्पणी करते हैं।
इसके डायरेक्शन की बात करें तो अनुभव सिन्हा ने कमाल का काम किया है। कहां तुम बिन, रावन, जैसी फिल्में और कहां आर्टिकल 15, थप्पड़ और मुल्क, अनुभव के भीतर का असल फिल्म निर्देशक अब जागा है। पिछले दो सालों में वह तीन फिल्में ऐसी बना चुके हैं जिनका जिक्र हिंदी सिनेमा में पीढ़ियों तक होता रहेगा।
घरेलू हिंसा से हटकर किसी सामान्य से दिखने वाले मुद्दे को असामान्य बताने की लड़ाई इस फिल्म का मेजर पार्ट है। पुरुष के अहम को कैसे एक महिला चूर-चूर कर सकती है, ये कहानी में पता चलता है। यह एक पैसा वसूल फिल्म है जिसे देखकर आपके मन में भी औरतों के प्रति इज़्ज़त बढ़ जाएगी। ये फिल्म उन सभी दंभी पुरुषों पर एक करारा थप्पड़ है जो अपने अहम में अपनी पत्नी या बेटी, किसी पर भी हाथ उठाते हैं और फिर इसे सामान्य बताते हैं।
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इस फिल्म को फिल्म समीक्षकों के काफी सरहाना मिल रही है। अनुभव सिन्हा के काम की लोग जमकर तारीफ कर रहे हैं। आज सिनेमाघरों में यह फिल्म रिलीज़ हो गई है। इसे काफी वेबसाइट्स द्वारा 4 रेटिंग मिली है। हम इस फिल्म को 5 में से 4 रेटिंग देते हैं।
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