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ठीक हो गए कोरोना मरीजों के खून से बचेगी जान, 100 साल पुरानी पद्धति आएगी काम?

US will Treat Patients: कोरोना वायरस के संक्रमण की स्थिति अमेरिका में अब बेहद गंभीर होती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को इस बात का अंदेशा है कि कहीं यहां हालात यूरोप से भी अधिक खराब ना हो जाएं। हालांकि, एक शोध से अमेरिका की उम्मीद बंधी है, जिसके परिणामों पर यकीन करें तो संभव है कि यहां बिना टीका और दवाई की प्रतीक्षा किये ही मरीजों को हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी जाए। विज्ञान की वेबसाइट नेचर पर एक शोध प्रकाशित किया गया है, जिसमें बताया गया है कि अमेरिका में वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि जो मरीज ठीक हो गए हैं, अस्पताल में उनके खून से एंटीडोट निकाला जाए, जिससे कि बाकी मरीजों का इलाज संभव हो पाएगा।

100 साल पुरानी है पद्धति

दरअसल चिकित्सा की यह पद्धति 100 साल पुरानी है। इसमें किसी बीमारी से यदि कोई मरीज ठीक हो जाता है अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता की बदौलत, तो उस व्यक्ति के एंटीबॉडी वाला खून देकर बाकी मरीजों का इलाज किया जाता है, जिससे वे ठीक हो जाते हैं। इटली जैसे हालात अमेरिका अपने शहरों में नहीं होने देना चाहता, क्योंकि इटली के स्थिति ऐसी हो गई है कि आईसीयू में उसकी क्षमता से भी अधिक मरीज हैं और अब वेंटिलेटर की जरूरत वाले मरीजों को तो यहां लौटाया भी जाने लगा है।

अब तक नहीं मिली कामयाबी

चीन में भी इस तरह की कोशिश की गई थी। यहां कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा नामक एक प्रक्रिया के तहत ठीक हो चुके मरीजों के खून से उस हिस्से को निकाला गया जिसमें एंटीबॉडी हो, लेकिन लाल रक्त कोशिकाएं न हो। वैसे, इसके परिणाम अब तक सामने नहीं आए हैं। जब इबोला और सार्स जैसी महामारी फैली थी, तब भी इसका कोई खास परिणाम नहीं निकला था। फिर भी अमेरिकी शोधकर्ता ऐसी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि यह इस मामले में कारगर साबित होगी।

ये होगा सबसे बड़ा फायदा

कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा से मिलने वाला सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसे मरीजों को तुरंत दिया जा सकेगा। टीका और दवाई के विकसित होने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा, जिसमें अब भी काफी समय लग सकता है। मरीजों को एंटीबॉडी देना सुरक्षित है। बस ख्याल इतना रखना है कि मरीजों की इससे पहले अच्छी तरह से पूरी जांच कर ली जाए।

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Shikha Yadav

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