Swadhisthana Chakra in Hindi: एक आदर्श जीवन जीने के लिए किसी भी व्यक्ति के लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि वह अपने शरीर को स्फूर्तिवान बनाए और ऐसा योग के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है।
वैसे तो विज्ञान ने काफी ज्यादा तरक्की कर ली है मगर योग शरीर को स्वस्थ रखने का सबसे बेहतर विकल्प माना गया
है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब मनुष्य चारों तरफ से सकारात्मक ऊर्जा से घिरा रहता है और वह अपने अनुकूल दिशाओं का पालन करता है, उस दौरान निरंतर खुश रहने के लिए उसके 7 चक्र योग्य दिशा और पूर्ण रूप से प्रभारित होते हैं।
सबसे पहले तो आप यह जान लीजिये कि हमारे शरीर में कुल 114 चक्र उपस्थित हैं। लेकिन मुख्य रूप से 7 चक्रों को ही प्रमुखता दी गई है जिनके नाम हैं- मूलाधार चक्र, सहस्रार चक्र, अजना चक्र, अनाहत चक्र, मणिपुर चक्र, विशुद्ध चक्र तथा स्वाधिष्ठान चक्र।
स्वाधिष्ठान चक्र, जो मूलाधार चक्र से थोड़ा ऊपर और नाभि से नीचे स्थित है और इसे निचले पेट का केंद्र भी कहा जाता है, यह हमारे विकास के एक दूसरे स्तर का संकेतक है। यह अवचेतन मन का वह स्थान है जहां हमारे अस्तित्व के प्रारंभ में गर्भ से सभी जीवन अनुभव और परछाइयां संग्रहित रहती हैं। बता दें कि स्वाधिष्ठान चक्र का तत्व जल है और इसका रंग नारंगी है। ऐसा माना जाता है कि इस चक्र के जागृत होने पर सभी प्रकार की शारीरिक समस्या समाप्त हो जाती है।
शरीर में कोई भी विकार जल तत्व के ठीक न होने से उभरता है और ऐसे में इस चक्र के जागृत होने से जल तत्व का सम्पूर्ण ज्ञान भी मिलता है और इससे आपके समस्त प्रकार के शारीरिक समस्याओं का नाश होता है।
स्व+स्थान से मिलकर बना है ये शब्द स्वाधिष्ठान, जहां पर स्व का अर्थ होता है ‘आत्मा’ तथा स्थान का अर्थ होता है ‘जगह’।
यह मानवी शरीर का दूसरा प्राथमिक चक्र है और इसका दूसरा नाम धार्मिक चक्र अथवा उदर चक्र है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह चक्र कमल के साथ 6 पंखुड़ियां से प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया जाता है, जिसमें हर पंखुड़ी 6 नकारात्मक विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं और वह 6 नकारात्मक विशेषताएं हैं- क्रोध, घृणा, वैमनस्य, क्रूरता, अभिलाषा और गर्व। यह कमल 6 पंखुड़ियों वाला और 6 योग नाड़ियों का मिलन स्थान है। यहां 6 ध्वनियां- वं, भं, मं, यं, रं, लं निकलती रहती है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि आपको यह भी जान लेना चाहिए कि इस चक्र का प्रभाव प्रजनन कुटुंब कल्पना आदि से है।
इस बात को हम सभी जानते हैं कि मनुष्य के शरीर का तीन चौथाई भाग जल है। मन मनुष्य की भावनाओं के वेग को प्रभावित करता है। आपको यह भी बता दें कि इस चक्र वाले स्थान से ही प्रजनन क्रिया संपन्न होती है तथा इसका संबंध सीधे चंद्रमा से होता है।
बता दें कि जो भी साधक ध्यान लगाता है, यह चक्र उसका आध्यात्मिक सहायक शक्तियों की तरफ मन लगा के रखने मे सहायता करता है। स्वाधिष्ठान चक्र की जागृति स्पष्टता और व्यक्तित्व में विकास लाती है मगर ऐसा होने के लिए पहले हमें अपनी चेतना को अपने इर्द-गिर्द तमाम तरह के नकारात्मक गुणों से शुद्ध कर लेना चाहिए।
स्वाधिष्ठान चक्र का प्रतीक पशु मगर (मगरमच्छ) है। यह सुस्ती, भावहीनता और खतरे का प्रतीक है, जो इस चक्र में छिपे हैं। इस बात को बहुत ही गहराई से समझना चाहिए कि जल बेहद ही कोमल और लचीला होता है किंतु यह जब नियंत्रण से बाहर हो जाता है तो भयंकर शक्तिशाली भी है।
स्वाधिष्ठान चक्र के साथ यही विचित्रता है। जब अवचेतन से चेतनावस्था की ओर नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न होती
हैं, उस दौरान हम पूरी तरह से अपना संतुलन खो सकते हैं। जब मनुष्य के अंदर यह चक्र जागृत हो
जाता है तो उस दौरान मनुष्य की दशा बदल जाती है।
मनुष्य के अंदर जिस भी प्रकार की क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास जैसे तमाम तरह के दुर्गुण होते हैं, उन सभी का नाश हो जाता है। इस चक्र में प्रसन्नता, निष्ठा, आत्मविश्वास और ऊर्जा जैसे गुण पैदा होते हैं। इस चक्र का देवता ब्रह्मा सृष्टिकर्ता और उनकी पुत्री सरस्वती बुद्धि और ललितकलाओं की देवी है।
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