हमारे देश में गौरैयों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। ऐसे में उन्हें बचाना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि जैव विविधता को बनाए रखने में इनका भी महत्वपूर्ण योगदान है। गुजरात के 66 वर्ष के जगत किंखाबवाला का एक ही मकसद है- गौरैया बचाना। वे कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। उन्हें स्पैरो मैन के नाम से भी जाना जाता है। पिछले साल जुलाई में मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जगत जगत किंखाबवाला का एक ही मकसद है- गौरैया बचाना. प्रधा का जिक्र किया था। गौरैयों को बचाने का इन्होंने एक अभियान चला रखा है।
जगत के मुताबिक एक बार वे परिवार के साथ घर से बाहर निकले थे। तभी रास्ते में उन्हें कुछ याद आया। उन्होंने अपनी बेटी से पूछा कि कहीं तुमने खिड़कियां बंद तो नहीं कर दी थी। इस पर बेटी ने जवाब दिया कि हां मैंने खिड़कियां बंद कर दी हैं। इसके बाद बेटी का चेहरा मायूस हो गया था। जगत के मुताबिक सभी लोग तुरंत घर लौटे। वहां देखा तो सारी खिड़कियां बंद थीं। गौरैयों का जोड़ा खिड़की से बाहर शीशे पर चोट मारे जा रहा था। अंदर उनके बच्चे थे। इसके बाद उन्होंने तुरंत खिड़कियां खोल दी और जोड़ा सीधे अंदर अपने बच्चों के पास पहुंच गया। जगत के मुताबिक उसके बाद फिर कभी घर की खिड़कियां बंद ही नहीं की गईं।
नानी के घर में बिताए अपने बचपन को याद करते हुए जगत ने मीडिया में बताया है कि वहां एक बड़ा सा आंगन हुआ करता था। सुबह उठते के साथ ही गौरैयों की आवाज सुनने को मिलती थी। बचपन से ही जिस पक्षी को उन्होंने सबसे नजदीक पाया, वह गौरैया ही थी। घर में गौरैयों के लिए एक छोटा सा मिट्टी का बर्तन भी रखा हुआ था, जिसमें उसके लिए पानी रखा रहता था। साथ ही एक और छोटे से बर्तन में चावल के टूटे हुए दाने उनके लिए रखे जाते थे। इस तरह से गौरैया को परिवार के ही एक सदस्य के रूप में ट्रीट किया जाता था।
जगत बाद में काम के सिलसिले में अहमदाबाद आ गए। अब वे कॉरपोरेट सेक्टर का हिस्सा बन चुके थे। दिन का पूरा वक्त ऑफिस में ही बीत जाता था। हालांकि रात के वक्त वे घर को सजाते थे। उन्होंने अपने घर में बहुत सारे पेड़-पौधे भी लगा दिए थे। पक्षियों को बुलाने की उनकी चाहत थी, लेकिन समय नहीं निकाल पा रहे थे। उनके मुताबिक एक दिन उन्होंने एक मैगजीन का कवर पेज देखा, जिस पर एक गौरैया अपने बच्चों को चोंच से दाना खिला रही थी। साथ ही इस मैगजीन में उन्होंने तेजी से लुप्त होती गौरैया के बारे में पढ़ा। तभी उन्होंने अपने मन में कुछ ठान लिया।
उस दिन ऑफिस से लौटने के बाद उन्होंने गौरैया का घोंसला बनाना शुरू कर दिया। बच्चे भी इस चीज को देखकर बहुत खुश हुए कि पापा आज ऑफिस का काम न करके गत्ते को रंग रहे हैं। बच्चों का भी सहयोग मिला। इस तरह से उन्होंने घोंसला तैयार कर लिया। घर के बगीचे में उन्होंने घोसले को रख दिया। साथ ही उन्होंने छोटे-छोटे बर्तन में दाना और पानी भी रख दिया। कई दिन बीत गए। गौरैयों का इंतजार उन्हें बेसब्री से था। आखिरकार एक सुबह जब उन्होंने बगीचे का अवलोकन किया तो उन्हें वहां एक जोड़ा गौरैयों का नजर आया। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती चली गई। जगत के मुताबिक आज उनके इस बगीचे में हर मौसम में कुल मिलाकर 26 से भी अधिक प्रकार के पक्षी पहुंचते हैं।
जगत का कहना है कि गौरैयों को घोंसला बनाना नहीं आता। वे अपने लिए जगह की तलाश करती हैं। इसलिए उन्होंने वर्ष 2008 से स्कूलों में घोंसला बनाने को लेकर वर्कशॉप का आयोजन करना शुरू कर दिया। बच्चों को गौरैयों की अहमियत बताई और उन्हें घोंसला बनाना सिखाना शुरू किया। कॉलेज में तक में उन्होंने वर्कशॉप किए। इस तरह से उन्होंने घोंसला बनाने का अभियान छेड़ दिया। अब तक स्पैरो मैन के नाम से मशहूर जगत किंखाबवाला एक लाख 20 हजार से भी अधिक घोंसले बनवा और बंटवा चुके हैं। इस तरह से उनकी मुहिम की वजह से गौरैयों को बचाने में मदद मिल रही है।
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