Linza Kerala Teacher: आपके अंदर यदि प्रतिभा है, आपके अंदर यदि काबिलियत है और साथ में आपके अंदर लगन भी है तो फिर आपको सही मुकाम अपनी जिंदगी में आज नहीं तो कल मिल ही जाता है। बस खुद के ऊपर भरोसा बनाए रखने की जरूरत होती है। संघर्ष भी काफी करना पड़ता है। बाधाएं भी बहुत सी रास्ते में आती हैं, लेकिन मजबूत इरादों के साथ यदि सबका सामना करते हुए आगे बढ़ा जाए तो बाद में ये सभी परेशानियां बौनी साबित हो जाती हैं। केरल में भी एक 39 साल की युवती ने कुछ ऐसा ही करके दिखाया है।
इकबाल हायर सेकंडरी स्कूल केरल के कन्हंगड़ में स्थित है, जो कि एक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल है। यहां लिंजा आरजे नाम की एक 39 साल की शिक्षिका कुछ समय पहले तक यहां सफाईकर्मी के तौर पर काम कर रही थीं। अपने पिता के निधन के बाद उन्हें अनुकंपा के आधार पर सफाईकर्मी की नौकरी मिली थी, लेकिन अपनी काबिलियत के दम पर वे आज इसी स्कूल में अंग्रेजी की शिक्षिका बन गई हैं। जिस तरीके से लिंजा ने मेहनत करके अपनी प्रतिभा के दम पर यह मुकाम हासिल किया है उसे देखकर स्कूल की हेडमिसट्रेस प्रवीना एमवी तो यह भी कह रही हैं कि एक दिन लिंजा प्रिंसिपल भी बन जाएंगी और उसमें कोई चकित होने वाली बात नहीं होगी, क्योंकि लिंजा बड़ी ही मेहनती हैं और उनमें गजब की लगन भी है।
इस मुकाम तक पहुंचने के लिए लिंजा ने अपनी यात्रा की शुरुआत वर्ष 2001 में की थी। उस वक्त वे स्नातक के आखिरी साल में थीं कि तभी उनके पिता 47 साल की उम्र में चल बसे थे। स्कूल में संस्कृत शिक्षक के तौर पर लिंजा के पिता पढ़ाया करते थे। जब उनकी मौत हो गई तो स्कूल की ओर से योग्यता के आधार पर उस वक्त लिंजा को सफाईकर्मी की नौकरी अनुकंपा पर दे दी गई। स्कूल के मुताबिक उस वक्त कोई वैकेंसी नहीं थी। लिंजा के मुताबिक उसका भाई भी उस वक्त दसवीं में था। ऐसे में वह नौकरी कर नहीं सकता था। साथ ही परिवार को भी बड़ी जरूरत थी, क्योंकि परिवार का खर्च नहीं चल पाता। ऐसे में उन्होंने इस नौकरी को स्वीकार कर लिया। लिंजा के मुताबिक काम न रहने के समय में वे हेडमिस्ट्रेस के रूम में बैठकर पढ़ाई भी करती थीं। काम करते हुए ही उन्होंने अंग्रेजी में बीए के साथ एमए भी पूरा कर लिया।
लिंजा के मुताबिक वर्ष 2006 में उन्होंने स्कूल से सफाईकर्मी और चौकीदार के पद से छुट्टी ले ली। उन्होंने इसके बाद बीएड किया, क्योंकि शिक्षक के तौर पर पढ़ाने के लिए यह जरूरी था। फिर उन्होंने एक निजी स्कूल में अंग्रेजी पढ़ानी शुरू कर दी। उनके मुताबिक वर्ष 2012 तक उन्होंने यहां काम किया। इसके बाद 2013 में इकबाल स्कूल की ओर से ही उन्हें सफाईकर्मी के तौर पर काम दोबारा शुरू करने के लिए कहा गया तो उन्होंने इसे मान लिया। उनके मुताबिक वे अपनी नौकरी से संतुष्ट थीं।
स्कूल में सफाईकर्मी के तौर पर काम शुरू करने के बाद लिंजा के मुताबिक वे धरातल से जुड़ी रहीं। वर्ष 2018 में जब प्राइमरी टीचर की वैकेंसी आई तो उन्होंने आवेदन किया और चयनित भी हो गईं। लिंजा के अनुसार क्लास में छात्र उन्हें देखकर चकित थे। उन्हें लगा था कि वे किसी अब्सेंट टीचर की जगह पर आकर खड़ी हैं, लेकिन उन्होंने छात्रों को अंग्रेजी में संबोधित किया। सफाईकर्मी के तौर पर अपनी छवि उनके दिमाग से हटाने के लिए यह जरूरी था। वे क्लास में मलयालम का इस्तेमाल कभी नहीं करती हैं। उनके मुताबिक उनके स्टूडेंट्स उनके साथ इंग्लिश में ही कम्युनिकेशन करते हैं। इस तरह से लिंजा ने साबित करके दिखा दिया कि ईमानदारी से किया गया प्रयास कभी जाया नहीं जाता।
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