Jwalamukhi Mandir: सावन का महिना समाप्त हो चुका है और अब हिंदुओं का एक और मुख्य और बहुत ही पवित्र त्योहार में से एक नवरात्र का त्योहार आने वाला है। आपको बता दें कि नवरात्रि का त्योहार मां दुर्गा को समर्पित होता है और इस दौरान माता के सभी भक्त व्रत आदि करते हैं और साथ ही मां के दर्शन करने जाते हैं। हालांकि, वैसे तो मां दुर्गा के कई सारे मंदिर हैं मगर कुछ मंदिर बेहद ही खास हैं, जिसकी मान्यता न सिर्फ उस शहर या राज्य में बल्कि पूरे देशभर में है। इतना ही नहीं, आस पास के देशवासी भी मां दुर्गा के इन प्रसिद्ध मंदिरों में दर्शन करने को आते रहते हैं। खास बात तो यह है कि नवरात्र जैसे महत्वपूर्ण पर्व के दौरान इन मंदिरों की महत्ता और भी ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसा ही एक मंदिर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित है जिसे ज्वालामुखी देवी के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर के बारे में बहुत सी अनोखी और चमत्कारिक बाते प्रसिद्ध हैं। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है और माना जाता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। आपको बता दें कि मां दुर्गा का एक स्वरुप ‘ज्वाला देवी’ हैं, जिनके नाम पर यह ज्वालामुखी मंदिर है। इस मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि यह मंदिर माता के अन्य सभी मंदिरों की तुलना में बेहद ही अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। जब आप इस मंदिर में प्रवेश करते हैं तो उसी क्षण यहां का जो माहौल मिलता है वह बेहद ही अलौकिक होता है। बता दें कि यहां पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग-अलग जगह से ज्वाला निकल रही है, जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है। इन सभी नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि ज्वालामुखी देवी के बारे में माता के भक्त ध्यानु और बादशाह अकबर से जुड़ा एक किस्सा बहुत ही ज्यादा मशहूर है। कहते हैं कि जब ध्यानु ने अपने जत्थे के साथ ज्वालामुखी देवी के दर्शन करने की आज्ञा मांगी तो अकबर ने पूछा कि आखिर उस मंदिर में क्या है। तो जवाब में ध्यानु ने इस चमत्कारिक मंदिर के बारे में बताया। मंदिर की इतनी ज्यादा तारीफ सुनकर अकबर ने उसकी भक्ति को चुनौती देते हुए कहा कि ज्वालामुखी देवी के मंदिर में जाकर अपनी मां से यह दुआ मांगना कि वह तेरे घोड़े को पुनः जीवित कर दें और ऐसा कह कर अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सिर काट दिया।
उसके बाद ज्वालामुखी के मंदिर जाकर ध्यानु ने देवी मां की अर्चना की और अपनी इच्छा पूरी करने को कहा। इसके बाद जब ध्यानु वापिस बादशाह के पास लौटा और अपने घोड़े को पुकारा तो घोड़ा सही सलामत वापस आ गया। इस चमत्कार को देखकर अकबर हतप्रभ रह गया और उसे इस चमत्कार पर यकीन नहीं हो पा रहा था। इसके बाद खुद बादशाह अकबर देवी के मंदिर गए और वहां ज्वाला को बुझाने के बहुत सारे प्रयास किये लेकिन वह हर बार विफल रहे और तब आखिरकार अकबर खुद भी ज्वालादेवी के भक्त बन गए। हालांकि, इन बातों में कितनी सच्चाई है इसका तो नहीं पता मगर इस मंदिर से जुड़ी यह कथा बेहद ही प्रचलित है।
आपको यह भी बता दें कि केवल अकबर ही नहीं बल्कि सम्राट अशोक यहां से निकलने वाली अग्नि की लपटों से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। हालांकि, उन्होंने कभी इस मंदिर के चमत्कारिक होने पर उसका मजाक नहीं उड़ाया बल्कि देवी के प्रति उनके मन में अटूट भक्ति थी। उन्होंने मंदिर में एक सोने की छत्री स्थापित करवाई, जो आज भी पानी से ज्वाला की रक्षा करती है। यह मंदिर इतना ज्यादा चमत्कारिक है कि इसकी मान्यता दूर-दूर तक व्याप्त है। बता दें, इस मंदिर के अंदर से निकलने वाली ज्वाला के स्रोत का पता लगाने की काफी कोशिश की गयी लेकिन इसके रहस्य को कभी कोई जान नहीं पाया। हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु ज्वालामुखी देवी के दर्शन करने आते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि हर साल आने वाले माता के भक्तों में विदेशी भक्त भी शामिल होते हैं।
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