Karwa Chauth Vrat Katha In Hindi: करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है, जो कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं और एक दिन का उपवास रखती हैं। इस विशेष अवसर पर महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनती और साझा करती हैं। लेकिन अब आपको कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है; आप इस कथा (Karwa Chauth Vrat Katha) को घर बैठे ही पढ़ और सुन सकती हैं।
करवा चौथ की पूजा के लिए एक पवित्र स्थान तैयार करें, जहां बालू या सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा की स्थापना करें। यदि मूर्तियाँ उपलब्ध नहीं हैं, तो सुपारी पर नाड़ा बांधकर देवता की भावना से स्थापित करें। इसके बाद, यथाशक्ति देवताओं का पूजन करें।
करवों में लड्डू का नैवेद्य रखें और उन्हें अर्पित करें। पूजा के अंत में एक लोटा, एक वस्त्र और एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करें। इसके बाद, करवा चौथ की कथा पढ़ें या सुनें।
सायंकाल चंद्रमा के उदित होते ही, चंद्रमा का पूजन करें और अर्घ्य अर्पित करें। इसके पश्चात ब्राह्मणों, सुहागिन स्त्रियों और पति के माता-पिता को भोजन कराएँ। भोजन के बाद, ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा दें।
सास को एक लोटा, वस्त्र और विशेष करवा अर्पित कर उनका आशीर्वाद लें। यदि सास जीवित नहीं हैं, तो किसी अन्य सुहागिन स्त्री को यह भेंट करें। अंत में, स्वयं और परिवार के अन्य सदस्यों का भोजन करें।
इस विधि का पालन करके, आप करवा चौथ की पूजा को सही तरीके से संपन्न कर सकते हैं।
बहुत समय पहले की बात है, एक शाहूकार के 7 पुत्र और एक करवा नाम की पुत्री थी। सभी भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि पहले वो करवा को खाना खिलाते, फिर स्वयं खाते। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आयी थी।
जब शाम को सारे भाई अपने काम से वापिस लौटे तो बहन को बहुत बेचैन पाया। भाईओ द्वारा रात को खाना खाने के लिए आग्रह करने पर भी बहन ने मना कर दिया। वजह पूछने पर बहन ने बताया कि आज करवाचौथ (Karwa Chauth Vrat Katha) का व्रत है और वो खाना चाँद को अर्ध्य देने के बाद ही ग्रहण करेगी। चूँकि चन्द्रमा अभी तक नहीं निकला है इसलिए वह खाना भी नहीं खाएगी और व्याकुल थी । सबसे छोटे भाई से बहन की ये हालत देखी नहीं गयी और वह दूर पीपल के एक पेड़ पर दीया जलाकर रख देता है। दूर से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदय हो रहा हो।
फिर भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है और वो अर्ध्य देने के बाद भोजन कर सकती है। बहन ख़ुशी से जल्दी जल्दी चाँद को अर्ध्य देकर भोजन ग्रहण करने लग जाती है। लेकिन जैसे ही वो पहला निवाला मुख में डालने लगती है तभी उसको छींक आ जाती है। दूसरा निवाला मुँह में डालने लगती है तो उसमे बाल आ जाते हैं। और जैसे ही वो तीसरा निवाला मुँह में डालने लगती है तभी उसको अपने पति की मृत्यु की खबर मिलती है। वह एकदम से बौखला उठती है और अपनी सुध बुध खो बैठती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत करवाती है कि किस तरह उसका व्रत गलत तरीके से तोड़ा गया जिससे देवता नाराज़ हो गए और उन्होंने ऐसा किया।
सच्चाई जानने के बाद वह निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और सतिव्रता से उसको पुनर्जीवित करवाएगी। पूरे एक वर्ष तक वह अपने पति के शव के पास बैठी रहती है और उसके शव पे उगने वाले सुईनुमा घास को एकत्र करती रहती है।
एक साल बाद फिर करवाचौथ का व्रत आता है और उसकी भाभियाँ उस से करवा चौथ का आशीर्वाद लेने आती हैं तो वो प्रत्येक को वह सुईनुमा घास पकड़ते हुई कहती है कि ‘यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागन बना दो’। यह आग्रह सुनकर हर भाभी उस से अगली भाभी से आग्रह करने का परामर्श देती हैं। इसी तरह जब छठे भाई की बीवी की बारी आती है तो वह कहती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसके पति की मृत्य हुई है इसलिए केवल उसकी पत्नी में ही यह शक्ति है जिससे तुम्हारा पति पुनः जीवित हो सकता है। जब वो तुमसे आशीर्वाद लेने आए तो उसे पकड़ लेना और इच्छा पूरी होने तक छोड़ना मत।
जब सबसे छोटी भाभी आशीर्वाद लेने आती है तो करवा उससे सुहागन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोल करने लगती है। करवा उसे और कस के पकड़ लेती है और अपने पति को ज़िंदा करने को कहती है। भाभी छूटने के लिए उसे खींचती है, नोचती है, लेकिन करवा उसे नहीं छोड़ती। अंत में उसकी तपस्या देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी ऊँगली को चीर उसमे से अमृत निकाल उसके पति के मुँह में डाल देती है। इतने में ही उसका पति श्री गणेश का मंत्रोचारण करता पुनः जीवित हो जाते है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसका पति फिर से जीवित हो जाता है। हे श्री गणेश – मां गौरी, जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।
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