Lord Ganesha Marriage Story in Hindi: भगवान गणेश की पूजा सभी देवों में सबसे पहले की जाती है। इसके पीछे का कारण यह है कि उन्हें शिव जी की तरफ से एक वरदान मिला है। गणेश जी को गणपति लंबोदर और विनायक के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिष विद्या में गणेश जी को केतू का देवता कहा गया है। इनका वाहन मूषक है, प्रसाद के रूप में गणेश जी को मोदक बेहद प्रिय है।
दरअसल भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती के गर्भ से नहीं हुआ था। बल्कि माता पार्वती ने अपने हाथों से उनकी रचना की है। यह उस समय की बात है जब माता पार्वती को स्नान के लिए जाना था और उन्होंने अपने शरीर पर उबटन का लेप लगाया था। माता पार्वती ने अपने शरीर में लगे उबटन के लेप को उतारकर गणपति की रचना की और उनमें प्राण डाल दिया। जब गणपति का अवतार हुआ। तब माता पार्वती ने उनसे कहा कि, हे गणपति मैं अब स्नान करने जा रही हूं और तुम यहीं खड़े होकर पहरेदारी करो। इसके बाद माता पार्वती स्नान करने चली गईं थोड़ी देर बाद जब वहां भगवान शंकर पहुंचे तो गणपति ने उन्हें अंदर प्रवेश करने से मना कर दिया।
जिसके बाद भगवान शंकर क्रोधित हो उठे और गणपति और शंकर में युद्ध छिड़ गया। इस दौरान भगवान शंकर ने गणपति की सर को उनके धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद जब माता पार्वती वहाँ पहुंची तो गणपति को मृत पाकर चंडी रूप धारण कर लिया। माता पार्वती का यह रूप देखकर भगवान शंकर ने फौरन किसी हाथी के बच्चे के सिर को गणपति के धड़ से जोड़ कर उन्हें जीवित किया गया। जिसके बाद माता पार्वती पुनः शांत हो गई। इसके बाद से ही गणपति का चेहरा गज यानी हाथी के समान हो गया। इसी दौरान माता पार्वती और भगवान शंकर ने उन्हें यह भी वरदान दिया कि आज के बाद किसी भी देवी देवता की पूजा से पहले गणेश की पूजा की जाएगी।
वेद पुराण के मुताबिक गणपति के विवाह में काफी दिक्कतें आ रही थी। उनसे विवाह करने के लिए कोई भी योग्य और सुशील वधू उन्हें नहीं मिल रही थी। इसके पीछे दो कारणों का जिक्र है। पहला कारण कि उनका चेहरा एक हाथी के समान था और दूसरा उनका एक दांत टूटा हुआ था। गणपति के दांत टूटने के पीछे की कहानी यह है कि इस दौरान गणपति और परशुराम के बीच में युद्ध छिड़ गया और इसी दौरान परशुराम का परशु (उनका शस्त्र) जाकर गणेश के दांत से टकरा गया और गणपति का दांत बीच से ही टूट गया। इसके बाद से गणपति को एक दंत के नाम से भी जाना जाने लगा।
काफी लंबे समय तक प्रतीक्षा करने के बाद भी जब गणपति का विवाह नहीं हो पा रहा था तब वह काफी परेशान रहने लगे। स्वर्ग लोक में जब कभी किसी देवी देवता का विवाह हो तो वह विवाह में जाने से भी कतराते थे। एक समय तो ऐसा आ गया जब उन्होंने ठान लिया कि जब तक मेरा विवाह नहीं होता तब तक मैं किसी का भी विवाह नहीं होने दूंगा और अपनी सवारी मूषक से मिलकर उन्होंने एक रणनीति तैयार की। जब कभी भी किसी की शादी होती थी तो उनका मूषक उन्हें आकर उसकी जानकारी देता था और फिर उसकी की मदद से वह विवाह के मंडप का नाश करवा देते थे। इस कारण से स्वर्ग लोक में किसी भी देवी देवता की शादी नहीं हो पा रही थी।
यह जब काफी लंबे समय तक नहीं रुका तो सभी देवी देवता परेशान होकर भगवान शंकर के पास पहुंचे। लेकिन उनके पास भी इससे निपटने के लिए कोई योजना नहीं थी। इसके बाद भगवान शंकर सारे देवी देवताओं के साथ ब्रह्मा के पास गएं। ब्रह्मा जी ने देवी देवताओं की इस परेशानी को सुना और योग के द्वारा दो कन्याओं को प्रकट किया जिनका नाम था रिद्धि और सिद्धि। यह दोनों ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी।
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दोनों पुत्रियों को लेकर ब्रह्मा गणेश जी के सामने प्रकट हुए और उनसे निवेदन किया कि वह उनकी पुत्रियों को शिक्षा दें। इसके लिए गणेश जी तैयार हो गए। इसके बाद जब कभी भी गणेश जी का चूहा उनके पास किसी के विवाह होने की जानकारी लेकर आता था। तो रिद्धि-सिद्धि गणपति का ध्यान भटका देती थी। लेकिन यह ज्यादा समय तक नहीं चला। आखिरकार वो दिन आ गया जब गणेश जी को ब्रह्म देव की चाल के बारे में पता चल गया। इसके बाद गणपति काफी क्रोधित हुए और रिद्धि-सिद्धि को लेकर ब्रह्मदेव के सामने प्रकट हुए। गणपति ने ब्रह्मदेव से कहा कि अब वह उनकी पुत्रियों को शिक्षा नहीं दे सकते हैं।
गणेश जी की बातों को सुनकर ब्रम्हदेव मन ही मन मुस्कुराए और उन से निवेदन किया कि आप ही ने जब इन्हें शिक्षा दिया है तो क्यों ना आप ही इन दोनों से विवाह कर लें। इस बात को सुनकर गणपति भी राजी हो गए और बेहद ही धूमधाम से उनका विवाह हुआ। विवाह के उपरांत उन्हें दो पुत्रों की भी प्राप्ति हुई जिनका नाम शुभ और लाभ है।
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