Manikarnika Ghat Facts In Hindi: बनारस को दुनिया का सबसे प्राचीन शहर माना जाता है और कहा जाता है कि, इस देश में भगवान भोलेनाथ का वास है। बनारस शहर को वाराणसी और काशी के नाम से भी जाना जाता है। यह शहर अपनी प्राचीन मंदिरों और संकरी गलियों में एक इतिहास को छिपाए बैठा है और इसके साथ ही यह शहर न जाने कितनी संस्कृतियों और सभ्यताओं के लुप्त होने का साक्षी बना हो।
इस शहर के बीचों बीच गंगा नदी प्रवाहित होती है और गंगा के किनारे बसे हुए सभी घाट अपनी एक अलग ही कहानी को बता रहे हैं। काशी के इन्हीं घाटों में से एक है प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट और इस घाट का सनातन संस्कृति में एक अलग ही महत्व है। काशी का यह घाट अपनी विचित्रताओं की वजह से प्रसिद्ध है और इसकी आध्यात्मिक मान्यताऐं भी अपने आप में विशेष हैं। अगर आप काशी के मणिकर्णिका घाट के इतिहास के बारे में नहीं जानते हैं तो आपको परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है, आज के इस लेख में हम आपको इस घाट के इतिहास और इससे जुड़े हुए सभी रहस्यों के बारे में विस्तार से बताएंगे।
मणिकर्णिका घाट सबसे प्राचीन शहर वाराणसी का सबसे प्राचीन घाट है और हिन्दू संस्कृति में इस घाट को अन्य घाटों की तुलना में अधिक महत्व दिया जाता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि, जिस भी इंसान का अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट में किया जाता है उसे तुरंत ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक ग्रंथों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि, मणिकर्णिका में आकर मृत्यु का दर्द भी समाप्त हो जाता है। इस घाट का उल्लेख 5 वीं शताब्दी के एक गुप्त लेख में मिलता है और हिन्दू धर्म में भी इसका सम्मान किया जाता है।
मणिकर्णिका घाट में पौराणिक काल से ही शवों के अंतिम संस्कार की कथाएं प्रचिलित हैं और इन कथाओं में ही इसके नाम करण की भी कहानी छिपी हुई है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि, जब देवी सती ने अपने पिता के द्वारा किए गए अपमानों ने दुखी होकर अग्नि कुंड में समा गई थी तब भगवान भोलेनाथ उनके जलते हुए शरीर को अपने हाथों में उठाकर हिमालय की तरफ चल पड़े। उस समय भगवान श्री हरि विष्णु ने माता सती के शरीर के दुर्दशा को देखते हुए अपने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर को 51 टुकड़ों में विभाजित कर दिया और इस स्थान पर माता सती की बालियां गिरी थी जिसकी वजह से इस स्थान का नाम मणिकर्णिका हो गया। संस्कृत में कान की बालियों को मणिकर्ण के नाम से जाना जाता है और इसी वजह से इसका नाम मणिकर्णिका रखा गया।
मणिकर्णिका घाट पर एक कुआं पर है और इस कुएं का संबंध भगवान विष्णु से है, कहा जाता है कि, इस कुएं का निर्माण भगवान विष्णु ने किया था। कहा जाता है कि, भगवान शिव माता पार्वती के साथ वाराणसी आए थे और इस स्थान पर विष्णु भगवान के कहने पर इन्होंने एक कुआं खोदा था और उस कुएं के पास भगवान शिव स्नान कर रहे थे तब उनके कान की बाली गिर गई थी। इसके साथ ही दूसरी कहानी कुछ इस प्रकार से है कि, जब भगवान भोलेनाथ तांडव कर रहे थे तब उनके कान का कुंडल इसी स्थान पर गिर गया था और कुएं का निर्माण हो गया था।
मणिकर्णिका घाट ओर आदिकाल से चिताऐं जल रही हैं और कहा जा रहा है कि, जिस दिन चिताऐं जलना बंद हो जाएंगी उस दिन प्रलय आ जाएगी और इस दुनिया का विनाश हो जाएगा। इस घाट की प्रसिद्धि का आलम कुछ इस प्रकार है कि, लोग देश-विदेश से इन जलती हुई चिताओं को देखने के लिए आते हैं। वास्तव में वाराणसी का यह घाट अपनी अनोखी संस्कृत और रिवाजों को समेटे हुए है और इसी वजह से देश भर में इसकी प्रसिद्धि है।
Raw Banana Kofta Recipe in Hindi: केले को सदाबहार चीजों की श्रेणी में गिना जाता…
Maa Laxmi Ko Kaise Prasan Kare: जब आप किसी मंदिर में भगवान के दर्शन के…
Dharmendra and Hema Malini`s Famous Movie: बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता धर्मेन्द्र और अभिनेत्री हेमा मालिनी…
Shani Dev Jayanti Kab Hai : ज्योतिष और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भगवान शनि देव की…
Keto Burger Recipe in Hindi : पिछले कुछ वर्षों में स्ट्रीट फूड्स ने हर एक…
Astrologer Kaise Bane: एस्ट्रोलॉजी जिसे आमतौर पर बोलचाल की भाषा में ज्योतिषी या ज्योतिष विज्ञान…