GOD का अंग्रेजी में फुल फॉर्म Generator, Observer, Destroyer होता है।जिस तरह यह शब्द भगवान के तीनों रूप के बारे में बताता है, ठीक उसी तरह हिंदू धर्म में देवों की त्रिमूर्ति प्रसिद्ध है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचियता कहलाते हैं, भगवान विष्णु सृष्टि का पालनहार कहलाते हैं और भगवान शिव सृष्टि का विनाशक। हिंदू कथाओं व पुराणों में भगवान के ‘रूद्र’ रूप का सबसे अधिक वर्णन देखने को मिलता है। भगवान शिव के क्रोध से दुनिया डरती है। भगवान शिव के प्रकोप से कोई नहीं बच सकता। यदि भगवान शिव को क्रोध आ जाए तो उन्हें शांत करना लगभग नामुमकिन है।
शिवजी की जब तीसरी आंख खुलती है और क्रोध में जब वह तांडव नृत्य करते हैं तो पूरी दुनिया का विनाश निश्चित है। इसके विपरीत भगवान के भक्त उन्हें ‘भोले’ नाम से भी जानते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान शिव एकलौते ऐसे भगवान हैं जिन्हें बेहद आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। अगर भक्त उनकी सच्चे दिल से भक्ति करे तो वह बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और मनवांछित फल भी प्रदान करते हैं। लेकिन इसके अलावा शिव का एक तीसरा स्वरुप भी मशहूर है।
पौराणिक तस्वीरों एवं ग्रंथों में शिवजी की जो छवि बताई गयी है, उससे यह पता चलता है कि शिवजी भांग एवं धतूरा का सेवन करते थे। शायद इसी वजह से शिव भक्त भी प्रसाद के रूप में भांग का प्रसाद ग्रहण करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर शिवजी भांग क्यों खाया करते थे? भक्तों को सही मार्ग पर लाने वाले शिवजी आखिर खुद क्यों नशीली पदार्थों का सेवन करते थे? दरअसल, इसके पीछे एक पौराणिक कथा छिपी है, जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
कहा जाता है कि जब अमृत की चाह में देव और असुर एक साथ मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे तब अमृत के साथ-साथ विष भी निकल रहा था। तब विष्णु जी स्त्री का रूप धारण करके पवित्र अमृत को ले गए और विष छोड़ गए। यह विष इतना जहरीला था कि इसका एक बूंद पूरी सृष्टि को तबाह करने के लिए काफी था। मान्यताओं की मानें तो शिवजी ने अकेले ही पूरा विष ग्रहण कर लिया, जिसके बाद उनका नाम नीलकंठ पड़ा। कहते हैं कि विष ग्रहण करते ही शिवजी को तेज गर्मी लगने लगी जिस वजह से उन्हें कैलाश भेजा गया. कैलाश का तापमान हमेशा शून्य डिग्री रहता है. विष से होने वाली गर्मी को कम करने के लिए शिव ने भांग का सेवन किया। भांग में ठंडक प्रदान करने वाले तत्व पाए जाते हैं।
लेकिन प्राचीनतम साक्ष्यों में शिवजी धतूरा पान और भांग का सेवन इसलिए कर रहे हैं ताकि भक्तगण समझ सकें कि शिवजी पर संसार के बनाये हुए विष का भी कोई असर नहीं हुआ था। भगवान शिव देवों के देव हैं. उनमें अपने अंदर इतने जहरीले विश को भी समाकर खत्म करने की क्षमता है। इसलिए शिवजी की पूजा में भक्त लोग धतूरा पान और भांग का भोग लगाते हैं। इनके बिना शिवजी की पूजा अधूरी मानी जाती है। सावन में पड़ने वाले सोमवारों में अगर भगवान को धतूरा और भांग का भोग लगाया जाए तो वह जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं।
शिवजी के भांग ग्रहण करने के पीछे एक और कथा प्रचलित है। कहते हैं देवगण हमेशा सोमरस का सेवन किया करते थे और इसी सोमरस को हासिल करने के लिए असुरों ने उनसे लड़ाई की थी। वेदों में सोमरस और भांग को एक ही बताया गया है। समुद्र मंथन जब हो रहा था तब एक बूंद मद्र पर्वत पर गिर गया और वहां एक पौधा उग आया। देवताओं ने जब इस पौधे के रस को चखा तो उन्हें ये बेहद स्वादिष्ट लगा। बाद में शिवजी इसे हिमालय पर ले आये ताकि हर कोई इसका सेवन कर सके। यह पौधा भांग का पौधा था।
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