Gorakhnath Temple: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर स्थित है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इससे ही जुड़े हुए हैं। गोरखनाथ मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जिस पर भी इस मंदिर का साया पड़ गया, उसकी हर मुराद पूरी हो ही जाती है। एक नहीं, बल्कि ऐसी कई लोगों की कहानी मौजूद है। इस बात के यहां कई उदाहरण मिल जाते हैं। यहां हम आपको इसी के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
सबसे पहले बात करते हैं मनीराम के पूर्व विधायक स्वर्गीय ओम प्रकाश पासवान की। सपने में भी कभी उन्होंने नहीं सोचा था कि एक दिन सियासत के रास्ते पर वे चल पड़ेंगे और इतना बड़ा मुकाम हासिल कर लेंगे। वर्ष 1989 में मनीराम के पूर्व विधायक स्वर्गीय ओम प्रकाश पासवान के दामन पर खून के धब्बे लग गए थे। इसके बाद ब्रह्मालीन महंत अवैद्यनाथ की शरण में ओम प्रकाश पासवान पहुंच गए थे। गोरखनाथ मंदिर के अवैद्यनाथ ने भी उन्हें अपना हनुमान बना लिया था और हिंदू महासभा की ओर से मनीराम विधानसभा से उन्हें प्रत्याशी बना दिया था, जिसके बाद वे विधायक बन गए थे। वैसे, कुछ वर्षों के बाद वे समाजवादी पार्टी में चले गए थे।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके बाद जब गोरखनाथ मंदिर की कमान संभाली थी तो वे सांसद चुन लिये गए थे। वर्ष 2002 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। उस दौरान अपनी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके शिव प्रताप शुक्ला से योगी आदित्यनाथ की ठन गई थी। इसके बाद तो सरकार के खिलाफ योगी आदित्यनाथ ने बगावत का बिगुल ही फूंक दिया था।
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वर्ष 2002 में हिंदू महासभा ने डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल को शिव प्रताप शुक्ला के मुकाबले अपना प्रत्याशी बना दिया था। उस दौरान कोई डॉ अग्रवाल को जानता तक नहीं था। फिर भी योगी आदित्यनाथ ने जो सघन अभियान चलाया, उसका नतीजा यह हुआ कि कैबिनेट मंत्री शिव प्रताप शुक्ला को राधा मोहन दास अग्रवाल ने 20 हजार से भी अधिक वोटों के अंतर से हरा दिया और समूचे सूबे में सनसनी फैला दी। पूरा श्रेय उन्होंने इसका योगी आदित्यनाथ को दिया था।
यह सिलसिला और आगे बढ़ा। वर्ष 2007 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो गोरखनाथ मंदिर से आशीर्वाद प्राप्त करके हिंदू महासभा से जुड़े कई नेता भारतीय जनता पार्टी की तरफ से उम्मीदवार बन गए। तुलसीपुर से महंत कौशलेंद्र नाथ, कुशीनगर के रामकोला विधानसभा से अतुल सिंह और नेबुआ नौरंगिया से शंभू चौधरी गोरखनाथ मंदिर का आशीर्वाद पाकर प्रत्याशी बन गए।
समय के साथ वैसे कुछ लोगों ने पार्टी बदली, मगर कहा जाता है कि मंदिर का साया जिसके भी सिर से हटा, लोगों ने उसे भुला दिया। विजय बहादुर यादव इसका सबसे सटीक उदाहरण हैं, जो गोरखनाथ मंदिर के आशीर्वाद से दो बार विधायक जरूर बने, पर इसका साथ छोड़ते ही पैदल हो गए। शंभू चौधरी और महंत कौशलेंद्र के साथ भी ऐसा ही हुआ।
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