Osho Biography in Hindi: जब कोई व्यक्ति अपने युवावस्था में प्रवेश करते ही अध्यात्मिक ज्ञान के अनुभव होने का दावा करे और प्रोफेसर जैसे बड़े पद का त्याग कर अध्यात्मिक ज्ञान के गुरु के रूप में अपना कार्य शुरू कर दे तो उसे आप यकीनन किसी रहस्यमयी शक्ति का रूप ही मानेंगे। जी हां, हम बात कर रहे हैं ओशो की जो ना सिर्फ एक प्रतिभाशाली वक्ता थे बल्कि किसी भी प्रकार के विषयों में अपने विचार व्यक्त करने में थोड़ा भी नहीं झिझकते थे। उनके इसी स्वभाव की वजह से उन्हें रूढ़िवादी समाज द्वारा निषेध भी माना जाता है। मगर इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वह बड़े ही एक विद्रोही किशोर के रूप में हुए थे। जिस उम्र में कोई युवा मौज मस्ती में रहता है या फिर बहुत ज्यादा अपने भविष्य का ढांचा खींच रहा होता है, उस उम्र में ओशो समाज के मौजूदा धर्मों, संस्कृतियों और समाज पर कई सवाल उठाया करते थे। वह सर्व धर्म सम्मलेन में सार्वजानिक रूप से बोलने की रूचि रखते थे और हर बार अपने विचार व्यक्त किया करते थे।
ओशो का जन्म एक उच्च परिवार में हुआ था। हालांकि, बाद में वह अपने दादा-दादी के साथ रहने लगे। उनके दादा-दादी से ही उनके मन में एक नेतृत्व और नेता बनने का विचार उत्पन्न हुआ। ओशो एक भारतीय रहस्यवादी गुरु और शिक्षक थे जिन्होंने ध्यान के लिए अध्यात्मिक अभ्यास बनाया था। निश्चित रूप से वह एक विवादित नेता तो हैं मगर आप यह भी देख लीजिये कि पूरे विश्व में उनके लाखों अनुयायी हैं और हजारों की तादाद में उनके विरोधी भी थे। इसे आप इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जहां अच्छाई होती है वहां बुराई भी होगी। आपको यह भी बता दें कि ओशो ने न सिर्फ भारत में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक लोकप्रिय अध्यात्मिक गुरु के रूप में स्वयं को साबित किया।
अपने सभी 11 भाई-बहनों में ओशो सबसे बड़े थे जिनका नाम चंद्र मोहन जैन था। ओशो का जन्म 11 दिसंबर, 1931 को कुच्वाड़ा, मध्य प्रदेश में हुआ था। बचपन से ही दर्शन में रुचि पैदा रखने वाले ओशो ने अपनी पढ़ाई जबलपुर में पूरी की और बाद में वह जबलपुर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के तौर पर काम करने लगे। युवावस्था से ही उन्होंने अलग-अलग धर्म और विचारधारा पर देश भर में प्रवचन देना शुरू कर दिया था। प्रवचन के साथ-साथ उन्होंने ध्यान शिविर भी आयोजित करना शुरू कर दिया था।
बता दें, शुरुआती दौर में उन्हें आचार्य रजनीश के तौर पर जाना जाता था और यहीं से उन्होंने खुद को “ओशो” कहना शुरू कर दिया था। ओशो हमेशा से ही बेबाक थे और वह निःसंकोच अपनी बात को कहने से जरा भी नहीं कतराते थे। उन्होंने अपने भाषणों में कई प्रकार के मुद्दों को उठाया जैसे उन्होंने रुढ़िवादी भारतीय धर्म और अनुष्ठानों की आलोचना की और कहा सेक्स अध्यात्मिक विकास को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम है। अपने इन्हीं विचारों की वजह से उनकी काफी आलोचना भी हुई थी मगर इसके ठीक विपरीत उन्होंने हजारों लोगों को अपने इसी भाषण से काफी ज्यादा प्रभवित भी किया।
1960 के दशक तक वह एक प्रमुख अध्यात्मिक गुरु बन गए थे और 1966 में उन्होंने अपनी नौकरी को छोड़ कर खुद को पूर्ण रूप से आध्यात्मिकता के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया। 1970 में उन्हें हिंदू नेताओं और भारतीय प्रेस द्वारा “सेक्स गुरु” का खिताब दिया गया। आपको यह भी बता दें कि 1971 से 1974 तक उन्होंने अपना जीवन पूना आश्रम में बिताया जहां प्रत्येक सुबह वह 90 मिनट का प्रवचन देते थे। प्रवचन देने का कार्य उन्होंने लगातार 15 वर्षो तक किया। हालांकि वर्ष 1981 से करीब साढ़े तीन वर्ष के लिए वह सार्वजनिक मौन में चले गये मगर बाद में 1984 से वह फिर प्रवचन देने लग गये थे। ओशो का मानना था कि जीवन में प्रेम, ध्यान और हास्य प्रमुख रूप से अनमोल है। प्रबोध एक सामान्य अवस्था है जिसमें सभी मनुष्य जीते है। मनुष्य भावनात्मक बंधनों के कारण खुद को पहचान नही पाता है। उसे अपने भीतर ही ध्यान उत्पन्न करने की कला सीखनी चाहिए।
19 जनवरी, 1990 को 58 वर्ष की आयु में ओशो इस दुनिया को छोड़कर चले गए। मगर जैसा कि आज भी ओशो के बारे में कहा जाता है, “Never Born, Never Died. Only Visited This Planet Earth Between 11 December 1931 to 19 January 1990″। ओशो की बोली, उनकी सोच और विचारों में इतनी ज्यादा शक्ति थी कि उनके अनुयाई उन्हें ‘युग पुरुष’ कहते हैं और उनका मानना है कि ओशो ने लोगों की मानसिकता बदल दी।
आपको यह भी बता दें कि ओशो को खूबसूरत पेन रखने और फोटो खींचवाने का बहुत शौक था। उन्हें धूल और दुर्गंध वाली जगह से काफी एलर्जी थी और दुर्गंध वाली जगह पर उन्हें नींद नही आती थी। ध्यान देने वाली बात यह है कि ओशो समय के बहुत ही ज्यादा पाबंद थे और वह हमेशा खाना खाने के लिए चांदी की थाली, चांदी की कटोरी और सोने के चम्मच का ही इस्तेमाल करते थे। ओशो ने आजीवन विवाह नहीं किया था.
प्रसिद्ध नाम | ओशो (Osho) |
अन्य नाम | भगवान् श्री रजनीश, आचार्य रजनीश, और चन्द्र मोहन जैन (Bhagwan Shree Rajneesh, Acharya Rajneesh, and Chandra Mohan Jain) |
राष्ट्रीयता | भारतीय (Indian) |
जन्म | 11 दिसम्बर, 1931 कुच्वाडा गाँव, बरेली तहसील, रायसेन, भोपाल राज्य, ब्रिटिश भारत – जो आज के दिन मध्य प्रदेश, भारत है (Kuchwada Village, Bareli Tehsil, Raisen Distt. Bhopal State, British India (modern day Madhya Pradesh, India) |
मृत्यु | 19 जनवरी, 1990 पूना, महाराष्ट्र, भारत |
प्रसिद्ध होने का कारण | सबसे विवादास्पद आध्यात्मिक नेताओं और जनता के वक्ताओं में से एक। |
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