“Yeh Meri Family” (Hindi Web Series) अपने सात एपिसोड्स के माध्यम से सीधे आपकी जिंदगी की उसी ट्रिप पर लेकर जाती है, जब जिंदगी फेसबुक पर 24 घंटे अपडेट नहीं, बल्कि फेस टू फेस जी भर के जी जाती थी, तब भी ट्रोलिंग होती थी लेकिन सोशल साईट पर बैठ कर किसी अनजाने की नहीं, बल्कि भाई-बहनों की टांग खिंचाई में असली troling का मजा था।निर्देशक समीर सक्सेना और राइटर सौरभ खन्ना की साझेदारी इस शो में ठीक वैसे ही है, जैसे कभी 90 के दशक में सचिन और सहवाग की पार्टनरशिप। इस शो में दोनों की वहीं ट्यूनिंग नज़र आती है।
निर्देशक अपने निर्देशन से हमें 90 की उन गलियों की सैर एक बार फिर से कराते हैं, जो गलियां हम कई साल पहले छोड़ आये हैं वहीं लेखक ने उस दौर की बारीकियों को दर्शाने में कोई कमी नहीं छोड़ीहै। इस शो में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि लेखक निर्देशक के साथ, शो के कॉस्टयूम मेकर और आर्ट डिपार्टमेंट के सदस्यों को उस दौर की हर एक छोटे-छोटे सामान सहेजने में मशक्कत तो करनी पड़ी होगी। क्योंकि जैसे 90 की यादें धुंधली हो रही हैं, उस दौर के वो सामान भी अब जाहिर हैं काफी आउटडेटेड हो चुके हैं। फिर भी शो में जिस तरह वॉकमेन, स्कूटर, मारुति कार, कॉमिक्स की किताबें, डब्ल्यू डब्ल्यू ऍफ़ के कार्ड्स, रूह आफजा शर्बत, रेडियो, एयरकूलर, शक्तिमान के पोस्टर्स , फैंटम सिगरेट, फैशन टीवी, कोचिंग क्लासेज, पूरे परिवार के साथ आम खाने का मजा, जिल्द लगी किताबें और सबसे खास उस दौर की मम्मियों का पैसे छुपाने वाला सामान्य सी चेन वाला बटुआ हर चीज में 90 के फ्लेवर को जिन्दा रखने की कोशिश की है।
‘गर्मी का मौसम मौसम नहीं एक फेस्टिवल है’, सुन कर झटका लगा न कि भला मौसम और त्यौहार, माजरा क्या है, क्योंकि अब तो त्यौहार हम मनाते कहां हैं, दिखाते हैं… सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर! हैशटैग वाली दीवाली, हैश टैग वाली होली, फीलिंग इन एमोजी वाली बनावटी वाली स्माइल की हजारों फेक तस्वीरों के साथ।हालांकि, यह सच है कि इन दिनों 90 के दशक को एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में नॉस्टेल्जिक के नाम पर बिजनेस का अवतार देने में कौताही नहीं की जा रही है। लेकिन ‘ये मेरी फैमिली’ एक ईमानदार और सार्थक कोशिश नज़र आती है। वजह यह है कि एक तो शो के मेकर्स ने बेवजह शो को अधिक एपिसोड में खींचने की कोशिश नहीं की है। साथ ही शो को ओवर ड्रामेटिक बनाने से भी बचे हैं।
“Yeh Meri Family” (Hindi Web Series) शो की कहानी सात एपिसोड में घर के मंझले बच्चे हर्ष उर्फ़ हर्षु के व्यूफाइंडर से दिखाने की कोशिश की गई है। बिना किसी लाग-लपेट कहानी के नरेशन का अंदाज़ सामान्य और विश्वसनीय रखा गया है। साथ ही हर एपिसोड के साथ बिना किसी भाषणबाजी के दर्शकों के लिए ओपन एंडिंग फ्लो है, ताकि दर्शक यह महसूस न करें कि मेकर्स जजमेंटल होने की कोशिश कर रहे हैं। मेकर्स ने 1998 की गर्मी की छुट्टियों का वक़्त चुना है। सात एपिसोड में ही तीन महीने की अवधि में 90 के उन हसीन पलों को और उस दौर के फलसफे को दर्शाने की कोशिश की है। अंतिम एपिसोड में शो में मां का किरदार निभाने वाली मोना सिंह कहती हैं कि इस बड़े से यूनिवर्स में हमारी फैमिली काफी छोटी सी है, मगर यही फैमिली हमारे लिए यूनिवर्स बन जाती है। शो के मेकर्स ने पूरे शो का फलसफा इन चंद शब्दों में समेट दिया है।
मेकर्स ने 13 साल के हर्षु के माध्यम से उन तमाम मिडिल क्लास परिवार की कहानी कही है, जहां परिवार का मतलब रात को खाने के बाद आइसक्रीम होता था और रविवार को बच्चों का सुपरमैन शक्तिमान ही होता था। मेकर्स ने शो में एक अच्छी बात यह भी रखी है कि शो में बेवजह रेगुलर टीवी शोज में आर्थिक तंगहाली से जूझ रहे झूठे ढकोसले दिखाने की बजाय 90s के बचपन की उस मासूमियत को बच्चे के व्यू फाइंडर पर ही केन्द्रित रखा है, जहां मां बच्चे के कन्फ्यूज होने पर कि उसे समझ नहीं आ रहा कि क्या गलत है और क्या सही, मां कहती है कि बचपन में गलती जैसा कुछ नहीं होता। लेकिन अगले ही पल वह मां, पूरी कोशिश करती है कि बच्चे से कोई भूल न हो जाये। दरअसल, इस सीरिज की खासियत यही है कि यह न तो जजमेंटल होने की कोशिश कर रही हैं और ही दर्शकों को इस बात के लिए मजबूर कर रही है। यह शो एक तरह से उस दौर की किस्सागोई है, जहां सबकुछ परफेक्ट नहीं है, बल्कि शो के किरदारों का अनपरफेक्ट होना ही इसकी ख़ूबसूरती है।
इस शो की सार्थकता की वजह यह भी है कि शो के मेकर्स ने बिल्कुल सटीक कास्टिंग की है, मोना सिंह ने एक ऐसी मां के किरदार को जीवंत बनाया है, जो 90s की फ़िल्मी मम्मियों की तरह सिर्फ बच्चों पर चाशनी वाला प्यार नहीं दर्शाती, बल्कि रियल जिंदगी के बिल्कुल करीब ज़ूम इन करती है।वहीं आकर्ष खुराना ने एक पिता के रूप में सरल और सहज अभिनय किया है।विशेष बंसल ने मुख्य किरदार हर्षु के रूप में पूर्ण रूप से न्याय किया है।अहान ने बड़े भाई के रूप में सार्थक योगदान दिया है। शैंकी के रूप में प्रसाद रेड्डी में योग्यता नज़र आती है।समर यानी गर्मियों के मौसम के इस कार्निवाल का अगर मजा लेना चाहते हैं और 90 के उस गोल्डन एरा की यादों में फिर से उस फ्लैशबैक में खोना चाहते हैं तो सोशल मीडिया की दुनिया से एक दिन की छुट्टी लेकर इस समर होलीडे का मजा ले सकते हैं। यकीन मानिए ‘ये मेरी फैमिली’ आपके लिए एक बेहतरीन रिटर्न टिकट साबित होगी।मुमकिन हो कि इसे देखने के बाद आपको अपनी अपडेट लगने वाली रूटीन लाइफ आउटडेटेड लगे और आप एक बार फिर से उन रिश्तों और अपनों से फिर से फेस टू फेस टकराने की कोशिश करें, और उस दीवार को तोड़ने कोशिश करें जो कि अब केवल दिखावे के लिए फेसबुक वॉल पर ही नजर आती है।
कलाकार: मोना सिंह, आकर्ष खुराना, विशेष बंसल, अहान निरबन, रूही खान, प्रसाद रेडी, रेवती पिल्लई
निर्देशक:समीर सक्सेना
लेखक:सौरभ खन्ना
चैनल: टीवीऍफ़ प्ले
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