Krishna Paksha Mein Janme Log: हिंदू धर्म में ग्रहों और नक्षत्रों को लोग काफी महत्वपूर्ण मानते हैं। व्यक्ति के जन्म के समय से उसके भाग्य का और उसके स्वभाव का पता लगाया जाता है। जब भी किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसके जन्म के समय को सबसे पहले नोट किया जाता है। इसके द्वारा उसके ग्रहों नक्षत्रों को देखते हुए उसकी कुंडली बनाई जाती है जो उसका आने वाला भविष्य कैसा रहेगा इन सब बातों के बारे में पता लगता है।
ज्योतिष के अनुसार बच्चे के जन्म के समय के साथ उसके स्वभाव पर उसके घर के माहौल का भी बेहद असर पड़ता है। इसी के साथ उसकी कुंडली में जो ग्रह विराजमान होते हैं वो भी उसके जीवन पर असर डालते हैं। ज्योतिषियों के अनुसार व्यक्ति की कुंडली के ग्रहों से व्यक्ति के स्वभाव के बारे में बताया जा सकता है।
बता दें कि जहां पर लोग अंग्रेजी कैलेंडर देखते हैं उसकी तरह से हिंदू धर्म का कैलेंडर पंचांग होता है। बता दें कि हिंदू धर्म में पंचांग का विशेष महत्व होता है। पंचांग अर्थात पांच कारकों तिथि, योग, करण, वार और नक्षत्र से मिलकर बनता हैं और इसी के आधार पर पंचांग द्वारा गणना की जाती है, इसलिए ही इसे पंचांग कहा जाता है।
बता दें कि पंचांग के अनुसार एक साल में 12 महीने होते हैं और जिसमें हर एक दिन को एक तिथि कहा जाता है। हर दिन की तिथि की अवधि 19 घंटों से लेकर 24 घंटे तक की होती है। पंचांग के अनुसार हर महीने में 30 दिन होते हैं। और इन दिनों की संख्या की गणना सूरज और चंद्रमा की गति के अनुसार निर्धारित की जाती है। चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा होने या कम होने के अनुसार ही महीने को दो पक्षों में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में बांटा गया है। इन दोनों ही पक्षों में जन्म लेने वाले जातकों के स्वभाव में काफी अंतर होता है। तो आज हम आपको बताएंगे कि कृष्ण पक्ष में जन्में लोग कैसे होते हैं, लेकिन उसके पहले जानते हैं कि आखिर ये शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होता क्या है।
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बता दें कि पूर्णिमा और अमावस्या के बीच के भाग को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। पूर्णिमा के अगले दिन से ही कृष्ण पक्ष लग जाता है। बता दें कि कृष्ण पक्ष को अशुभ माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि इस पक्ष में कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाने चाहिए।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पूर्णिमा के बाद चंद्रमा घटने लगता है जिसके बाद चंद्रमा की शक्तियां कम होने लगती है और चंद्रमा के आकार में भी कमी आने लगती और रातें अंधेरी होने लगती है इस कारण से इस पक्ष को शुभ नहीं माना जाता है। इसलिए जो लोग पंचांग में विश्वास करते हैं वो कृष्ण पक्ष में कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं।
वहीं अमावस्या से पूर्णिमा के बीच के अंतर को शुक्ल पक्ष कहा जाता है। अमावस्या के बाद के 15 दिन शुक्ल पक्ष होता है। क्योंकि अमावस्या के अगले दिन से ही चंद्रमा का आकार बढ़ने लगता है, चंद्रमा का आकार बढ़ने के साथ ही चंद्रमा की कलाएं भी बढ़ने लगती हैं और रात अंधेरी नहीं रहती है। इस दौरान चंद्र बल मजबूत होता है जिस कारण से शुक्ल पक्ष में सभी तरह के शुभ कार्य किए जाते हैं और इस पक्ष को उपयुक्त और सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। बता दें कि किसी भी नए काम की शुरूआत शुक्ल पक्ष में ही की जाती है। बता दें कि हर महीने के पंद्रह दिन शुक्ल पक्ष के होते हैं और 15 दिन कृष्ण पक्ष के होते हैं।
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