Ganesh Ji Ko Sindoor Kyu Chadhaya Jata Hai: हिंदू धर्म के अनुसार किसी भी पूजा की शुरुआत भगवान गणेशजी को बिना याद किए नहीं होता है। हर पूजा में गणेश भगवान की पूजा से ही शुरुआत होती है और ये अधिकरा उन्हें उनके पिता महादेव शंकर भगवान ने दिया था। श्रीगणेश हिंदुओं के मांगलिक कार्यों में प्रथम आराध्य देव हैं, और हर शुभ काम का आरंभ श्रीगणेश के निमंत्रण से ही होता है। श्रीगणेश की प्रतिमा अनेक रूपों में और अनेक प्रकार से लौकिक रूप से स्वीकार की जाती है।
सुपारी या साबुत हल्दी पर धागे लपेटकर और सिंदूर के साथ वक्र से चोला चढ़ाकर भी गणेश जी की प्रतिमा को बनाया जाता है। इसके अलावा रवि-पुष्य योग या गुरु-पुष्य योग में, सफेद आकड़े के पौधे की जड़ को शुद्ध किया जाता है और फिर सिंदूर का लेप लगाकर गणेश प्रतिमा बनाई जाती है। श्वेत आकडे की जड़ से निर्मत प्रतिमा व्यापार वृद्धि और आय वृद्धि में बहुत ही मददगार होती है।
हिंदू धर्म के अनुसार प्रथम पूजन गणेशजी की होती है। सांसारिक दृटि से ये विकट रूप ही माना जाता है लेकिन इससे धर्म और व्यावाहारिक जीवन से कई संदेश होता है। भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा पर सिंदूर का लेप लगाना चाहिए। एक पौराणिक कथाओं के अनुसार- एक सिंधू नाम का असुर का वध श्रीगणेश ने ही किया था और उनके शरीर से निकले सिंदूर का लेप श्रीगणेश ने क्रोधित अवस्था में अपने शरीर पर लगा लिया। ये सिंधु अधर्म का पुत्र था और लोगों के घरों में घुसकर परिवार में अशांति भंग करता था। उसी क्षण सिंदूर में लिपटे श्रीगणेश की प्रतिमा से वो भयभीत होता है इसलिए मुख्य द्वार पर जो गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करते हैं उनके घरों से बुरी नजरें दूर रहती है। श्रीगणेश के सिंदूर से लिपटे स्वरूप को देखकर हर तरह की बुरी बलाएं दूर हो जाती हैं।
गणेश जी को विघ्यहर्ता माना जाता है जो सारे दुखों और कष्टों को हरने वाले हैं। इसलिए तो किसी भी पूजा से पहले गणेशजी की पूजा करते हैं। इन्हें मोतीचूर के लड्डू, सिंदूर का चढ़ावा और गणेश अराधना पसंद है और गणेश जी की पूजा इन्ही चीजों से करना अच्छा माना जाता है। वे भक्तों की सभी बाधाएं, रोगों, शत्रु और दरिद्रता दूर कर देते हैं। इनकी पूजा बुधवार के दिन गणपति की पूजा और उपासना करने से सुख समृद्धी बढ़ती है जो बुद्ध दोषों को भी दूर करते हैं।
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कोई नया कार्यर शुरु करने से पहले वक्र तुण्ड महाकाय
“सूर्यकोटि समप्रभनिर्विघ्नं कुरुमेदेव सर्वकोर्येषु सर्वदा।।”
इसके अलावा गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए…..
”ऊं एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति: प्रचोदयात।।”
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