साल की 365 रातों में से एक रात ऐसी भी है जिसमें अगर चांद को देख लिया जाए तो कलंक लग जाता है….क्यों हो गए ना हैरान…लेकिन ये सच है। और वो रात है गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) की रात। यूं तो हर महीने में दो बार गणेश चतुर्थी मनाई जाती है…लेकिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी का महत्व सबसे खास है। इसी गणेश चतुर्थी से होता है आगाज़ ….दस दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव का। जिसमें पहले दिन हमारे घर में विराजते हैं गणपति बप्पा। धूमधाम से पूरे आदर सम्मान के साथ गणपति बप्पा (Ganpati Bappa) को घर लाया जाता है। पूरे विधि विधान से दस दिनों तक उनकी पूजा की जाती है और फिर अनंत चतुर्दशी के दिन दी जाती है उन्हे विदाई….लेकिन नम आंखों से नहीं बल्कि जश्न मनाते हुए। लेकिन ये चतुर्थी इसलिए भी खास है क्योकि इस दिन चांद का दीदार नहीं किया जाता। अगर कोई इस दिन चांद का दीदार कर भी ले तो उसे कलंक लग जाता है जिसका नतीजा ये होता है कि उस पर चोरी जैसा झूठा इलज़ाम तक लग जाता है।
भगवान गणेश ने दिया था चंद्रमा को श्राप
भगवान कृष्ण पर भी लगा था झूठा आरोप
कहा जाता है कि एक बार गणेश चतुर्थी पर भगवान कृष्ण ने गलती से चांद देख लिया था। जिसका नतीजा ये रहा कि उन पर समयंतक मणि की चोरी का झूठा कलंक लगा। बाद में उन्होने खुद को सच्चा साबित किया और समयंतक मणि को हासिल कर उसे सही जगह पहुंचाया।
इस दिन कई जगहों पर चांद की ओर फेकें जाते हैं पत्थर
चांद को मिले इस श्राप की वजह से इस दिन कई जगहों पर चांद की ओर पत्थर फेकें जाते हैं। इसलिए इस दिन को पत्थर चौथ के नाम से भी जाना जाता है। पत्थर चौथ की रात को लोग एक-दूसरे की छत पर पत्थर मारते हैं। और सदियों से चली आ रही इस प्रथा को कायम रखते हैं।