व्रत-त्योहार

क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी? जानिए इसका पूरा इतिहास और पूजा विधि

Ganesh Chaturthi Kyu Manate Jata Hai: भारत बहुत से धर्मों का देश है जहां सभी धर्मों का अलग-अलग त्यौहार होता है। मगर हिंदुओं में सबसे ज्यादा त्यौहार मनाए जाते हैं। अगस्त शुरू होते ही रक्षाबंधन की तैयारी में सभी जुट गए फिर जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया गया और अब बाजार गणेश चतुर्थी को मनाने के लिए सज चुका है। लोग 10 दिनों तक गणेश जी की मूर्ति या प्रतिमा रखकर उनकी अराधना करेंगे, वैसे तो ये त्यौहार महाराष्ट्र में मनाया जाता है लेकिन अब पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा है।

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क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी ? (Ganesh Chaturthi Kyu Manate Jata Hai)

Ganesh Chaturthi Kyu Manate Hai: 7 सितंबर से 16 सितंबर के बीच में गणेश चतुर्थी मनाई जाती है और ये त्यौहार 10 दिनों तक चलता है। ये उत्सव महाराष्ट्र, गोवा, केरल और तमिलनाडु में ज्यादा मनाया जाता है। इसे क्यों मनाया जाता है इसके पीछे का एक इतिहास है। ऐसा बताया जाता है कि ये सबसे ज्यादा भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी एक कहानी है। ऐसा माना जाता है कि गणेश जी को माता पार्वती ने जन्म दिया था, जब वे स्नान करने जा रही थीं और बार-बार शिवजी के आवगमन से पार्वती जी और उनकी सखियां परेशान हो रही थीं। तब माता पार्वती ने अपने मैल से गणेश जी बनाए और स्नानघर के दरवाजे पर उन्हें खड़ा कर दिया। जब इसी बीच शिव जी काम से घर लौटे तो गणेश जी ने उन्हें प्रवेश द्वार पर खड़ा कर दिया। जब शिवजी वहां वापस आए तो गणेश जी ने उन्हें रोका और नहीं मानने पर उनसे युद्ध किया। क्रोध में शंकर जी ने अनजाने में अपने ही पुत्र का गला काट दिया। जब माता पार्वती को ये सब पता चला तो वे बाहर आईं और क्रोध से लाल हो गईं।

जब उनका क्रोध किसी से सहा नहीं गया तब भोलेनाथ ने विष्णु जी से दूसरा सिर लाने को कहा। वन में विचरते हुए उन्हें एक ही जानवर का सिर दिखा वो भी हाथी के बच्चे का सिर, दरअसल उस बच्चे की मां उसकी तरफ पीठ करके बैठी थी तो विष्णु जी को मौका मिल गया। इसलिए ही कहा जाता है कि किसी भी मां को अपने बच्चे के सामने पीठ करके नहीं सोना चाहिए। विष्णु जी जब हाथी का सिर लेकर आए तो पहले तो शंकर जी को अजीब लगा लेकिन फिर उन्होंने वो मुख देकर एक वरदान भी दे दिया। यही कि दुनिया की कोई भी पूजा से पहले अगर गणेश जी की पूजा की जाएगी तभी वो पूजा सफल हो सकेगी, वरना उस पूजा का कोई अर्थ नहीं होगा। सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा का प्रावधान शंकर जी ने शुरु किया और फिर ये संसार का नियम बन गया। जब ये सब हुआ था तब भाद्रपद चतुर्थी तिथि थी और इसी दिन से दस दिन तक इस दिन को मनाया जाता है। दसवें दिन अनंत चतुर्दशी मनाया जाता है और तब तक गणेश विसर्जन करा देना चाहिए। ऐसा कहा जाता है ये उत्सव सबसे ज्यादा लोगों के ध्यान में तब आया जब छत्रपति शिवाजी महाराज मराठों और हिंदुओं का परचम लहराने के लिए गणेश उत्सव शुरु किए थे। सर्वप्रथम उन्होंने ही गणेश चतुर्थी का उत्सव शुरु किया और फिर धीरे-धीरे ये पूरे देश में फैलता चला गया।

गणेश पूजन की पूरी विधि (Ganesh Chaturthi Puja Vidhi In Hindi)

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गणेश जी की पूजा बहुत ही जरूरी और कल्याणकारी होती है। इनकी पूजा से आपकी हर इच्छा पूरी होती है और धन की कमी कभी नहीं रहती है। जब कभी किसी को कोई कष्ट होता है तो उन्हें भी गणेश जी का पूजन करना चाहिए। श्रीगणेश चतुर्थी को पत्थर चौथ या कलंक चौथ भी कहते हैं, अगर हर साल भाद्रपद महीने को शुक्ल चतुर्थी के रूप में इनकी पूजा पूरी विधि से की जाए तो फल जरूर मिलता है।

इनकी पूजा विधि कुछ इस तरह है-

1. गणेश जी की पूा के लिए पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली, चंदन और मोदक के साथ तैयारी पूरी करें। इसके बाद कोई शुद्ध आसन का प्रयोग करें जिसपर बैठकर आप पूजन शुरु कर सकते हैं।

2. गणेश भगवान को तुलसी का पत्ता कभी नहीं चढ़ाना चाहिए इस बात का ख्याल आपको जरूर रखना चाहिए। उन्हें शुद्ध स्थान से चुनी हुई दुर्वा यानी घास ही चढ़ाना चाहिए।

3. गणेश जी को मोदक बहुत प्रिय होते हैं इसलिए आपको मोदक का भोग जरूर लगाना चाहिए। अगर आप मोदक नहीं चढ़ा सकते तो मोतीचूर के लड्डू भी चढ़ा सकते हैं।

4. श्रीगणेश जी के दिव्य मंत्र ॐ श्री गं गणपतये नम: का जाप दिन में 108 बार जरूर करें।

5. श्रीगणेश सहित प्रभु शिव, गौरी, नंदी और कार्तिकेय की भी पूजा करना चाहिए। ये सभी उनका परिवार हैं और गणेश जी को अपने परिवरा से बहुत प्रेम था जैसा हर किसी को होता है।

6. व्रत या पूजा के दौरान आपको बिल्कुल भी गुस्सा नहीं करना चाहिए। इसके अलावा किसी और को कोई समस्या हो ऐसा भी काम नहीं करना चाहिए।

7. गणेश जी का ध्यान करते समय शुद्ध और सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। अगर आपके घर मांसाहारी भोजन बनता है तो आपको गणेश चतुर्थी के समय 10 दिनों के लिए ये सब छोड़ना चाहिए।

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Sneha Dubey

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