Mahashivratri Par Kya Na Kare: महाशिवरात्रि का पर्व आ गया है। शिव भक्तों के लिए तो विशेष तौर पर इस पर्व का महत्व है। महाशिवरात्रि की रात्रि ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से साधना के लिए उन तीन रात्रि में से एक है, जो इसके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। जिस तरह से शरद पूर्णिमा को मोहरात्रि और दीपावली को कालरात्रि के नाम से जानते हैं, उसी तरह से महाशिवरात्रि को सिद्ध रात्रि के नाम से जाना जाता है, जिसका साधना के लिए खास महत्व है।
बाबा भोलेनाथ को अपनी भक्ति से प्रसन्न करके उनकी कृपा पाने का यह महापर्व महाशिवरात्रि फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष यह 11 मार्च यानी कि शुक्रवार को मनाया जा रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग इस महाशिवरात्रि के अवसर पर ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक बन रहा है। फागुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अबकी 117 वर्षों के बाद एक बड़ा ही अद्भुत संयोग बन रहा है।
खासियत इसकी यह है कि मकर राशि में शनि स्वयं पहुंच गए हैं, जबकि अपनी सबसे उच्च की राशि में शुक्र विराजमान हो रहे हैं, जो कमाल का और दुर्लभ संयोग बना रहे हैं। यह योग बेहद शुभ है, जिसमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त हो सकता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर यदि आप शिव पुराण और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं तो यह आपके लिए बहुत ही फलदायी होने वाला है। कई तरह के नियम बने हुए हैं इस व्रत को लेकर। ऐसी मान्यता है कि ठीक से इन नियमों का पालन यदि भक्तों द्वारा न किया जाए तो बाबा भोलेनाथ की कृपा उसे नहीं मिल पाती है। यहां हम आपको अब बताते हैं कि वे कौन-कौन से काम हैं जो आपको महाशिवरात्रि के अवसर पर भूलकर भी नहीं करने चाहिए।
18 फरवरी को रात 8 बजकर 2 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 19 फरवरी को 4 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी। साधक रात्रि के समय में महादेव और माता पार्वती की भक्ति भाव से पूजा कर सकते हैं।
यदि आप शंख से भगवान शिव की पूजा करते हैं तो ऐसा बिल्कुल भी न करें। शंखचूड़ का वध बाबा भोलेनाथ ने किया था। यह एक असुर था, जिसका ही प्रतीक शंख को माना जाता है। यह असुर भगवान विष्णु का बड़ा भक्त माना जाता था। यही वजह है कि शंख से भगवान शिव की नहीं, बल्कि भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
पुष्प से यदि आप बाबा भोलेनाथ की पूजा कर रहे हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि जूही, चमेली, मालती, केसर, दुपहरिका, चम्पा और कुन्द जैसे फूल आप न ही चढ़ाएं तो अच्छा होगा। यहां तक कि करताल बजाने से भी आपको भगवान शंकर की पूजा के दौरान बचना चाहिए। भगवान शिव की पूजा में आप तुलसी न चढ़ाएं तो अच्छा होगा। वह इसलिए कि तुलसी का जन्म जलंधर नाम के एक राक्षस की पत्नी वृंदा के अंश से ही हुआ था। साथ ही भगवान विष्णु ने पत्नी के तौर पर तुलसी को अपनाया हुआ है।
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ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि भगवान विष्णु के मैल से तिल की उत्पत्ति हुई है। ऐसे में भगवान शंकर को तिल चढ़ाना बिल्कुल भी उचित नहीं होगा। यही नहीं, चावल जब भी आप भगवान शिव को चढ़ाएं तो ध्यान रखें कि वह टूटा हुआ न होकर अक्षत यानी कि साबुत हो। शास्त्रों में यह लिखा है। दरअसल, टूटे हुए चावल को न केवल अपूर्ण, बल्कि अशुद्ध भी माना गया है। सौभाग्य का प्रतीक कुमकुम को जरूर माना गया है, मगर बाबा भोलेनाथ तो वैरागी हैं न, इसलिए बेहतर होगा कि उन्हें आप कुमकुम तो पूजा के दौरान न ही चढ़ाएं।
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