Krishna Janmashtami Puja Samagri : जन्माष्टमी का पावन त्योहार देश-विदेश में जहां-जहां हिंदू धर्म मानने वाले लोग मौजूद हैं। बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान भगवान कृष्ण का हर भक्त उन्हें मनाने में जुटा रहता है। इस साल देश के अलग-अलग हिस्सों में जन्माष्टमी का पर्व 7 सितम्बर को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी की पूजा के दौरान श्री कृष्ण के श्रृंगार का काफी महत्व होता है। ऐसा कहते हैं कि इसके बिना भगवान की पूजा अधूरी होती है। तो चलिए जानते हैं 7 ऐसी विशेष चीजों और उनके महत्व के बारे में जो भगवान कृष्ण के पूजन के दौरान जरूर शामिल करनी चाहिए।
हिंदू धर्म के ग्रंथों के मुताबिक मोर पंख को कृष्णा और राधा के प्रेम की निशानी मानी जाती है। कहते हैं कि राधा रानी के महल के आसपास बहुत सारे मोर हुआ करते थें। जब श्री कृष्ण राधा से मिलने आते तो वह बांसुरी बजाया करते थें। इस दौरान राधा रानी के साथ-साथ मोर भी मृत्य करने लगते थे। एक बार जब मोर का पंख जमीन पर गिरा तो कृष्ण ने उस मोर पंख को उठाकर अपने मस्तक पर लगा लिया। इसके बाद से ही कृष्ण और मोरपंख एक साथ नजर आने लगे। जन्माष्टमी के दौरान मोर पंख के पंखे से श्रीकृष्ण को हवा भी दी जाती है। श्री कृष्ण का सिंगार जब होता है तो इस दौरान उनके मुकुट में मोर पंख को जरूर लगाना चाहिए। मान्यता यह भी है कि श्री कृष्ण के कुंडली में सर्प दोष था। जिसे दूर करने के लिए वह सदैव अपने मुकुट में मोर पंख लगाया करते थे। ऐसा कहते हैं कि मोर और सर्प एक दूसरे के शत्रु होते हैं। इसे लगाने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
भगवान कृष्ण को बांसुरी बजाना बहुत पसंद था। वे अपने बांसुरी के धुन से किसी को भी मंत्र मुक्त कर देते थें। इतना ही नहीं राधा के साथ-साथ गोपियां भी उनके बांसुरी के दीवानी थीं। कृष्ण की बांसुरी सुनकर जानवर तथा पशु पक्षी भी उनकी तरफ खिंचे चले आते थे। बांसुरी को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। इसलिए श्री कृष्ण की पूजा के दौरान बांसुरी भी उन्हें अर्पित करनी चाहिए।
भगवान कृष्ण को माखन अति प्रिय है। बचपन में वे माखन चोरी करके खाया करते थें। जिसके लिए उन्हें उनकी मां यशोदा सजा भी दिया करती थीं। कृष्ण जब युवा अवस्था में आए तब उन्होंने गोपियों की मटकी से माखन चुराने का काम शुरू कर दिया। जिसके बाद उन्हें माखन चोर भी कहा जाने लगा। जन्माष्टमी की पूजा के दौरान श्री कृष्ण को चढ़ने वाला मुख्य प्रसाद माखन और मिश्री ही होता है।
जन्माष्टमी को श्री कृष्ण के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान रात्रि 12:00 बजे कृष्ण के जन्म के बाद धूमधाम से आरती पूजा की जाती है और लोगों के बीच में प्रसाद बांटा जाता है। भगवान कृष्ण को पूजा के दौरान एक पालने पर बाल लड्डू गोपाल के रूप में स्थापित किया जाता है और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसे में जन्माष्टमी के दौरान झूला लगाने की परंपरा है। कहते हैं जो व्यक्ति जन्माष्टमी के दिन कृष्ण को झूला झूलाता है उसे सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
भगवान कृष्ण को श्रृंगार करना बेहद पसंद था। वह हर वक्त नए-नए पोशाक पहना करते थें। जन्माष्टमी के दौरान भी भगवान कृष्ण के जन्म के बाद उन्हें पंचामृत से नहलाया जाता है और फिर नए वस्त्र धारण करवाए जाते हैं। इस दौरान भगवान कृष्ण को चढ़ाए जाने वाले वस्त्र का रंग पीला हो तो और भी शुभ माना जाता है।
भगवान कृष्ण को गायों से बेहद लगाव था। गाय उनके आसपास सदैव उपस्थित रहती थीं। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण गौलोक में निवास करते हैं। जन्माष्टमी के दिन गाय की पूजा का विशेष महत्व है।
गीता को हिंदू धर्म में सभी ग्रंथों से श्रेष्ठ माना गया है। गीता इंसान को शारीरिक मोह माया से उभरने में मदद करती है। गीता में कृष्ण की वाणी लिखी गई है। इसमें उन उपदेशों का जिक्र है। जिसे भगवान कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत के समय दिया था। इसीलिए गीता को जन्माष्टमी के दौरान जब पूजा करें तो भगवान कृष्ण के पास में ही रखें।
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