Vishuddhi Chakra in Hindi: हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं जिसमे से पांचवां चक्र है विशुद्धि चक्र। जिसे गला चक्र भी कहा जाता है। यह चक्र गले के ठीक पीछे मौजूद होता है जिससे हमारी श्वास नली, आवाज, कंधे जुड़े होते हैं। इसके साथ ही ये स्वर ग्रंथि से भी सीधे जुड़ा होता है लिहाज़ा अगर इस चक्र में कुछ भी दिक्कत आती है तो इसका सीधा असर आपके बोलने, आपके सांस लेने, आपके कंधे पर पड़ता है। आपको कंधे में दर्द, सांस संबंधी परेशानी, बोलने में आपको परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। विशुद्धि चक्र (Vishuddhi Chakra) आध्यात्म से जुड़ा हुआ माना जाता है और आध्यात्म में विशुद्धि चक्र को ‘ब्लू प्राण शक्ति’ भी कहा गया है। साथ ही इसे आत्मा की शुद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। इसलिए इस चक्र को जाग्रत करने से मन व आत्मा की शुद्धि होती है।
व्यक्ति को नासिका और स्वर संबंधी परेशानियां आती हैं। इसके अलावा गले में आए दिन खराश, लगातार सिर दर्द का होना, दातों की परेशानियां, मुंह का अल्सर या छाले , थाइरॉयड, गर्दन में दर्द बना रहना, टीएमडी (मुंह के जोड़ों में पैदा हुई परेशानी जिसमें मुंह खोलने में व्यक्ति को परेशानी होती है और वह कुछ भी खा नहीं पाता)। अगर ये तमाम परेशानियां आपके साथ है तो इसका मतलब है कि आपका विशुद्धि चक्र पूरी तरह से खराब है। इसके अलावा अगर आपको अचानक बोलने में दिक्कत हो रही हो या आपको किसी के सामने अपनी बात रखने या फिर दूसरों के सामने भय महसूस होता है तो ये भी आपका विशुद्धि चक्र खराब होने का ही लक्षण माना जाता है। इस दौरान व्यक्ति में क्रोध, अधीरता, तुनकमिजाजी, और दूसरों पर हावी होने की प्रवृत्ति भी जन्म लेती है जिससे व्यक्ति का व्यवहार पूरी तरह से बदल जाता है।
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रीढ़ की हड्डी को सीधा करके बैठ जाएं, और अपना पूरा ध्यान गले के आधार क्षेत्र से लेकर तीसरी सरवाइकल वरटिब्रा तक केंद्रित करें।
फिर अपने दोनों अंगूठों को छूते हुए एक वृत बनाएं और अपनी ऊंगलियों को आपस में क्राँस करें अपने हाथों को अपने गले, सोलर प्लेक्सस, के सामने तक उठाएं, या अपनी गोद में आराम करने दें।
इस क्रिया को रोज़ दोहराएं आपका विशुद्धि चक्र जाग्रत हो जाएगा। इसके साथ ही विशुद्धि चक्र को जाग्रत करने की एक सरल साधना नादयोग भी है। नादयोग की प्रक्रिया में चेतना के ऊर्ध्वीकरण का सम्बन्ध संगीत के स्वरों से है। प्रत्येक स्वर का संबंध किसी एक चक्र विशेष की चेतना के स्पन्दन स्तर से सम्बन्धित होता है। सा रे गा मा की ध्वनि तरंगों का मूलाधार सबसे पहला स्तर एवं विशुद्धि पाँचवा स्तर है। इनसे जो मूल ध्वनियाँ निकलती हैं, वही चक्रों का संगीत है। ये ध्वनियाँ जो विशुद्धि यंत्र की सोलह पंखुड़ियों पर चित्रित हैं- मूल ध्वनियाँ हैं। इनका प्रारम्भ विशुद्धि चक्र से होता है। और इनका सम्बन्ध मस्तिष्क से है। नादयोग या कीर्तन का अभ्यास करने से मन आकाश की तरह शुद्ध हो जाता है। और विशुद्धि चक्र के जाग्रत होने का फल मिलता रहता है।0
विशुद्धि चक्र का रंग ब्लू माना गया है। इसलिए इस रंग को अपने जीवन में प्राथमिकता से स्थान देने से भी फायदा मिलता है। इससे विशुद्ध चक्र की बाधा से मुक्ति मिलती है। आप घर पर नीले रंग के कपड़े, नीले पर्दे, घर में नीले रंग के सजावटी सामान, नीले फूल आदि लगा सकते हैं।
इसके जाग्रत होने से कई दिनों तक व्यक्ति भूख और प्यास को रोक सकता है।
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