अगर आप वृक्षारोपण या फिर पेड़ पौधे लगाने में रुचि रखते हैं तो आपने कभी ना कभी पानी से भरे गिलास या फिर बोतल में कोई पौधा जरूर लगाया होगा। आपने गौर किया होगा कि जब आप किसी भी पौधे की टहनी को काट कर पानी के बोतल में रखते हैं। तो उसमें कुछ दिनों के बाद अपने आप ही जड़ें निकलने लगती हैं और फिर वह पौधा बड़ा होने लगता है। बावजूद इसके ऐसी धारणा है कि पेड़ पौधा लगाने के लिए या खेती करने के लिए मिट्टी की जरूरत होती है। लेकिन ऐसा नहीं है सच यह है कि किसी भी चीज की खेती करने के लिए आपको जरूरत है तो केवल तीन चीजों की पानी, पोषक तत्व और सूर्य का प्रकाश। यह तीन चीजें अगर आपके पास है। तो आप बड़े ही आसानी से खेती कर सकते हैं और पौधों तक पोषक तत्व पहुंचा सकते हैं वह भी बिना मिट्टी के।
बढ़ते शहरीकरण में बिना मिट्टी के पौधे उगाने की यह तकनीक काफी उपयोगी है। आज जिस तरह से जमीन की कमी होते जा रही है। ऐसे में इस तकनीक से खेती-बाड़ी करके अपनी जरूरत की चीजों को उपजाया जा सकता है। इस तकनीक को अपनाकर आप अपने फ्लैट या छत पर बेहद आसानी से सब्जियां उगा सकते हैं। इस तकनीक का नाम है हाइड्रोपोनिक्स, तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्या है हाइड्रोपोनिक्स और किस तरह से हम इसका इस्तेमाल करके अपने सामान्य जीवन में इसका फायदा उठा सकते हैं।
बिना मिट्टी के बालू या पत्थरों के बीच नियंत्रित जलवायु बनाकर पानी के माध्यम से किए जाने वाली खेती की तकनीक को हाइड्रोपोनिक कहते हैं। हाइड्रोपोनिक शब्द दो ग्रीक शब्दों से मिलकर बना है पहला शब्द है हाइड्रो(Hydro) और दूसरा है पोनोस(Ponos), हाइड्रो का मतलब होता है ‘जल’ और पोनस का मतलब होता है ‘कार्य’। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों या फिर चारे वाली फसलों को परिस्थितियों को सामान्य या नियंत्रित रखते हुए 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर लगभग 80 से 85 प्रतिशत मॉश्चर(आद्रता) में उगाया जाता है। सामान्य तौर पर पेड़ पौधे खुद के लिए पोषक तत्व जमीन से ले लेते हैं। लेकिन हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए इसमें एक विशेष किस्म का घोल डाला जाता है। इस घोल में पौधों के विकास के लिए आवश्यक खनिज और पोषक तत्व मौजूद होते हैं। बालू कंकड़ और पानी के मदद से उगाए जाने वाले पौधों में इस घोल को महीने में एक या दो बार ही डाला जाता है। इसकी मात्रा फसल पर निर्धारित होती है। इस घोल में इट्रोजन,फास्फोरस, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सल्फर, जिंक और आयरन आदि तत्वों को जरूरत के हिसाब से मिलाया जाता है।
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल ज्यादातर पश्चिमी देशों में किया जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि इस इसका इस्तेमाल हमारे देश में नहीं किया जाता है। भारत में इस तकनीक का इस्तेमाल राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे शुष्क क्षेत्रों में किया जा रहा है। जहां चारे के उत्पादन में काफी दिक्कत आती है। इन राज्य में बिना मिट्टी और जमीन के फसल उगाई जा रही है। यहां फसलों के उत्पादन के लिए विपरीत जलवायु है। बावजूद इसके यह तकनीक यह वरदान साबित हो रही है। राजस्थान के वेटरनरी विश्वविद्यालय, बीकानेर में मक्का, जौ, जई और उच्च गुणवत्ता वाले हरे चारे वाली फसलें उगाने के लिये इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तकनीक का इस्तेमाल गोवा में भी काफी हो रहा है। दरअसल गोवा में जानवरों को चरने के लिए चारागाह की कमी है। वहां इस तकनीक का इस्तेमाल करके जानवरों के लिए चारा उगाया जा रहा है। इतना ही नहीं भारत सरकार की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत गोवा डेयरी की ओर से इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च के गोवा परिसर में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से हरा चारा उत्पादन की इकाई की स्थापना की गई है। इस तरह की करीब 10 इकाइयां गोवा के विभिन्न डेहरी कोऑपरेटिव सोसायटी में लगाई गई है। हर इकाई से प्रतिदिन करीब 600 किलोग्राम हरा चारा उत्पादन किया जाता है
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