Shaniwar Wada History In Hindi: भारत के अलग-अलग शहरों में अनेकों किले हैं, जो दशकों से देसी-विदेसी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते आ रहे हैं। इन किलों का निर्माण प्राचीन काल में भारत के महान राजाओं ने करवाया था, लेकिन बाद में अंग्रेजी शासकों ने इन्हें अपने कब्जे में कर लिया था। आजादी के बाद ज्यादातर सभी किलों को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया।
इन किलों की अद्भुत कारीगरी के अलावा इनसे जुड़ी रहस्यमयी कहानियां भी पर्यटकों को अपनी ओर खींच लाती हैं। कुछ अद्भुत और डरावनी कहानियों के लिए भानगढ़ किला, रोहतासगढ़ किला, गोलकोंडा किला जैसे कई किले विश्व प्रसिद्ध हैं। इन्हीं में से एक किला है, महाराष्ट्र के पुणे शहर में स्थित ‘शनिवार वाड़ा‘। जी हाँ! यह वही किला है जिसका जिक्र आपने फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में बार-बार सुना होगा। यह किला पेशवा बाजीराव ने बनवाया था, लेकिन बाद में इसमें कई रहस्यमयी घटनाएं हुई जिसकी वजह से यह आज भारत के मोस्ट हॉन्टेड प्लेस की गिनती में आता है। तो चलिए आज जानते हैं शनिवार वाड़ा से जुड़ी कुछ रहस्यमयी और रोचक कहानियों के बारे में।
Shaniwar Wada History In Hindi: शनिवार वाड़ा का निर्माण सन 1732 में पेशवा बाजीराव द्वारा करवाया गया था। यह किला, मुगल वास्तुकला व मराठा शैली का एक अद्भुत संगम है। अपनी प्रेमिका मस्तानी से विलय के बाद पेशवा बाजीराव ने दम तोड़ दिया, जिसके बाद उनके बड़े बेटे बालाजी बाजी राव जिन्हें नाना साहेब के नाम से जाना जाता है, ने मराठा सम्राज्य की बागडोर संभाली।
नाना साहेब के तीन बेटे थे – माधव राव, विश्व राव और नारायण राव। एक युद्ध में नाना साहेब की मौत के बाद उनके बड़े बेटे माधव राव को सिंहासन सौंप दिया गया, जिससे उनके चाचा रघुनाथ राव को जलन होने लगी। इसके बाद एक युद्ध के दौरान नाना साहेब के दूसरे बेटे विश्व राव भी मारे गए। माधव राव यह सदमा बर्दाश्त ना कर पाए और उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए। इसके बाद मराठा साम्राज्य की डोर 16 साल के नारायण राव के हाथ में दे दी गई, जिससे चाचा रघुनाथ राव की जलन और ज्यादा बढ़ गई। छोटे होने के कारण नारायण राव की मदद करने की जिम्मेदारी उनके चाचा रघुनाथ राव को ही सौंप दी गई।
नारायण राव के पेशवा बनने से शिकारियों की एक ट्राइब बेहद नाखुश थी और इस कारण आए दिन उनके खिलाफ कोई ना कोई साजिश होती रहती थी। सन 1773 में नारायण राव ने अपने खिलाफ हो रही सभी साजिशों को खत्म करने की ठानी और उन्होंने अपने चाचा को हाउस अरेस्ट करवा दिया। इस बात से रघुनाथ की पत्नी आनंदीबाई बेहद खफा हो गईं और उन्होंने शिकारी ट्राइब के सरदार के साथ मिलकर नारायण राव को मरवाने की योजना बनवाई।
एक रात जब नारायण राव अपने कमरे में सो रहे थे तब शिकारियों की एक टुकड़ी ने उनपर हमला कर दिया और उन्हें मारकर उनके शरीर के टुकड़े नदी में बहा दिए। इस वजह से उनकी आत्मा को कभी मुक्ति ना मिल सकी। ऐसा कहा जाता है कि नारायण राव उस रात खुद को बचाने के लिए ‘चाचा बचाओ’ चिल्ला रहे थे और उनकी वो आखिरी चीखें अब तक महल में गूंजती है। यही कारण है कि वहां शाम ढले कोई नहीं रुकता।
कुछ कहानियों के अनुसार, इस किले में कई बार भीषण आग भी लग चुकी है। हालांकि यह आग कैसे लगी और किसने लगवाई इस बात की जानकारी आज तक नहीं मिली। यह कभी 13 मंजिला महल हुआ करता था, लेकिन आग लगने की वजह से महल के कई अहम हिस्से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और कई मंजिलें अंग्रेजों द्वारा किए गए हमलों में ध्वस्त हो गईं।
ईंट और पत्थरों का बना यह एतिहासिक किला मुगल वास्तुकला और मराठा शैली का बेजोड़ संगम है। यहां का आर्किटेक्चर काफी उम्दा है। महल में नारायण दरवाजा, शनिवार वाड़ा का बाग, लोटस फाउंटेन, आदि कई ऐसे स्थान हैं, जो देखने लायक है। यदि आप हिस्ट्री या आर्किटेक्चर लवर हैं, तो आप यहां सोमवार से शनिवार, सुबह 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे के बीच घूमने के लिए जा सकते हैं। रविवार को यह बंद होता है।
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