Mohan White Tiger Story In Hindi: बाघों की सभी प्रजातियों में सफ़ेद बाघ को एक अलग ही दर्जा प्राप्त है। मौजूदा समय में पूरी दुनिया के अंदर जहाँ भी सफ़ेद बाघ मौजूद हैं उन सबका डीएनए विंध्य और रीवा से जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि दुनिया का पहला सफ़ेद बाघ विंध्य क्षेत्र के रीवा में ही देखा गया था। वन्यजीव विशेषज्ञ बताते हैं कि सफ़ेद बाघ, बाघों की कोई विलुप्त प्रजाति नहीं है बल्कि यह तो एक जेनेटिकल डिसऑर्डर की वजह से बनते हैं। आज के इस लेख में हम आपको दुनिया के सबसे पहले सफ़ेद बाघ मोहन के इतिहास के बारे में विस्तार से बताएँगे।
मध्यप्रदेश के खूबसूरत जिले रीवा को सफ़ेद बाघों की धरती भी कहा जाता है और इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि दुनिया का पहला सफ़ेद बाघ रीवा के ही जंगलों में देखा गया था। यह बात 27 मई 1951 की है जब रीवा के तात्कालीन महाराजा मार्तण्ड सिंह जू देव अपने अजीज मित्र और जोधपुर राजघराने के राजा अजीत सिंह के साथ रीवा के रियासत के सीधी प्रान्त अंतर्गत कुसमी क्षेत्र में बाघिन का शिकार करने गए तो, बाघिन महाराजा को देखते ही जंगल की ओर अपने तीन शावकों के साथ भाग गयी जबकि चौथा शावक वहीं पास स्थित गुफा में जाकर छिप गया। महाराजा ने गुफा में जाकर देखा तो पाया कि इस शावक का रंग पीला होने की बजाय सफ़ेद है। महाराजा ने शावक को मारने का फैसला बदल दिया और उसे अपने साथ गोविंदगढ़ के किले में ले आए।
गुफा से पकड़ने के बाद महाराजा मार्तण्ड सिंह जू देव ने उस शावक का विधिवत नामकरण किया और उसका नाम मोहन सिंह रखा गया। ऐसा कहते हैं कि महाराजा बगैर डरे मोहन के पिंजड़े में जाते थे और उसके साथ फुटबॉल खेलते थे। मोहन की देखरेख में नियुक्त हुए सभी कर्मचारी भी मोहन को मोहन सिंह कहकर संबोधित करते थे।
किले में पदस्थ लोग बताते हैं कि रोज सुबह 9 बजे मोहन को मांस दिया जाता था और अगर कभी ज्यादा देर हुई तो मोहन दहाड़ लगाकर सबको सूचना देता था कि उसके भोजन का समय हो गया है। शुरूआती दिनों में मोहन रविवार के दिन मांस का सेवन नहीं करता था और जब यह बात महाराजा को पता चली तो उन्होंने यह आदेश दिया कि आज से रविवार के दिन किले के अंदर मांस का सेवन नहीं होगा और मोहन को मांस की जगह दूध दिया जायेगा।
1951 में पकडे जाने के बाद 1955 में पहली बार सामान्य बाघिन के साथ ब्रीडिंग कराई गई, जिसमें से एक भी शावक सफ़ेद नहीं थे। उसके बाद 30 अक्टूबर 1958 को मोहन के साथ ब्रीडिंग के बाद राधा नाम की बाघिन ने चार शावकों को जन्म दिया जिसमें से चारों शावक सफ़ेद थे। मोहन का जीवनकाल करीब 19 साल लम्बा था और उसने अपने जीवन काल में तीन बाघिनों के साथ मीटिंग किया जिसमें से 34 शावकों का जन्म हुआ जिसमें से 21 सफ़ेद थे। जीवन के आखिरी दौर में मोहन को लकवा मार गया और 10 दिसंबर 1969 को मोहन की मौत हो गई।
मोहन समेत उसके वंशज सभी सफ़ेद बाघों ने कई मौकों पर रीवा सहित पूरे देश का नाम बढ़ाया है, दुनिया में जहाँ भी सफ़ेद बाघों की बात होगी वहां पर रीवा का जिक्र जरूर होगा। मौजूदा समय में दुनिया की इकलौती व्हाइट टाइगर सफारी रीवा प्रान्त के मुकुंदपुर के जंगलों में है। 5 हेक्टेयर क्षेत्रफल के जंगल में सफ़ेद बाघों को खुले में रखा गया है। मोहन के सम्मान में भारत सरकार ने साल 1987 में डाक टिकट जारी किया था। इसके साथ ही 26 जनवरी 2016 की परेड में पहली बार व्हाइट टाइगर की झांकी को दिखाया गया है।
तो यह थी दुनिया के सबसे पहले सफ़ेद बाघ की कहानी
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