Violence At Home And Children In Hindi: सभी पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा संस्कारी हो और वह सभी लोगों से तमीज़ से पेश आए। लेकिन कई बार बच्चे बड़े-बूढ़ों से बदतमीजी कर बैठते हैं, जिसका खामियाजा अक्सर पैरेंट्स को भुगतना पड़ता है। ऐसे में कई बार वे लाड-प्यार में बच्चे को कुछ नहीं कह पाते और केवल दुख व शर्मिंदा होकर रह जाते हैं और कई बार वे गुस्से में बच्चे के साथ कुछ ऐसा कर देते हैं जिसका बच्चे पर और भी गलत प्रभाव पड़ता है।
बच्चों का दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं होता, इसलिए वे आमतौर पर अपनी आवश्यकताओं और भावनात्मक स्थिति को व्यक्त करने के लिए दुर्व्यवहार करने लगते हैं। ऐसे में पेरेंट्स को जरूरत है यह सोचने और समझने की, कि कहीं बच्चे के इस बर्ताव की वजह वे खुद ही तो नहीं। हो सकता है कि जाने-अनजाने में पेरेंट्स के द्वारा बच्चे के सामने ऐसा व्यवहार किया जा रहा हो, जिससे उसके मन में नकारात्मकता के भाव उत्पन्न हो रहे हों। आइए आज जानते हैं कुछ ऐसे तरीकों के बारे में, जो बच्चों को बदतमीजी करने पर मजबूर कर देते हैं।
क्रिटिसिज्म यानि आलोचना, बेशक आपको खुद में सुधार कर एक बेहतर इंसान बनने में मदद करती है। लेकिन बच्चे के हर काम में नुक्स निकालने और हर समय उसकी आलोचना करते रहने से यह उसके आत्मविश्वास को कम कर देती है और बच्चे में हीन भावना पैदा होने लगती है। उन्हें ऐसा लगता है कि वे किसी काम के नहीं हैं। ऐसे में वह अपने मन की नकारात्मकता को अपने व्यवहार के जरिए प्रदर्शित करने लगते हैं और बदतमीज हो जाते हैं।
पति-पत्नी में मतभेद होना एक आम बात है और बच्चों को लेकर मतभेद होना उससे भी ज्यादा आम है। लेकिन पैरेंट्स को हमेशा इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि आपस के ये मतभेद वे अकेले में ही सुलझा लें और बच्चे के सामने इसे जरा भी जाहिर ना करें। बच्चे के सामने लड़ने-झगड़ने से बच्चे को लगता है कि यह नॉर्मल है और वह भी उसी तरह पेश आने लगता है।
आजकल के पैरेंट्स बच्चों के दोस्त बनना चाहते हैं ताकि बच्चे उनके साथ अपनी सारी बातें शेयर कर सकें और उनसे कुछ छुपाएँ नहीं। लेकिन कूल पेरेंट्स बनने के चक्कर में वे अपने बच्चों को नियम और अनुशासन सिखाने पर ध्यान नहीं देते। नतीजतन बच्चे उनका पेरेंट्स की तरह आदर-सम्मान नहीं कर पाते। इसलिए बच्चों से दोस्ती जरूर रखें, लेकिन उनके व्यवहार को संयमित रखने पर भी जरूर ध्यान दें।
अक्सर देखा जाता है कि बच्चे जैसा अपने आसपास देखते हैं, वैसा ही करते हैं। इसलिए माता-पिता का यह फर्ज बनता है कि बच्चों को कोई भी नियम का पालन करने की सीख देने के लिए खुद भी उन नियमों का पालन करें। उदाहरण के तौर पर यदि आप बच्चे को कभी झूठ ना बोलने की सीख देते हैं तो खुद भी उसके सामने कभी झूठ ना बोलें। इसी तरह, यदि आप उसे ट्रैफिक रूल्स फॉलो करने की सीख दे रहे हैं तो खुद भी कभी ट्रैफिक रूल ना तोड़ें। बच्चे के सामने हमेशा एक अच्छा उदाहरण सेट करें, जिससे बच्चा भी सही तरह से काम करने के लिए प्रोत्साहित हो।
हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दिए गए ये पेरेंटिंग टिप्स आपको अपने बच्चे के व्यवहार को सुधारने में अवश्य मदद करेंगे। यदि आपके पास भी कोई पेरेंटिंग टिप है तो हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं।
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