Prashant Gade: आज के जमाने में जब शिक्षा प्राप्त करने का उद्देश्य केवल अच्छे नंबर हासिल करना रह गया है और इस चक्कर में स्टूडेंट्स किताबी ज्ञान के अलावा व्यवहारिक ज्ञान हासिल करने में पीछे रह जा रहे हैं तो वहीं कई ऐसे लोग भी हमारे समाज में मौजूद हैं, जिन्होंने व्यवहारिक ज्ञान हासिल करने के लिए पढ़ाई के परंपरागत तरीकों को पीछे छोड़ दिया है। उन्होंने कुछ ऐसा करके दिखाया है, जिसकी वजह से न केवल उनकी खुद की जिंदगी बदल गई है, बल्कि उन्होंने अपने इन्नोवेशन और अपने आविष्कार से दूसरों की जिंदगी को भी बदल कर रख दिया है।
प्रशांत गड़े नामक एक शख्स ने भी कुछ ऐसा ही करके दिखाया है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई इन्होंने जरूर शुरू की थी, मगर इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई के दौरान इन्हें ऐसा महसूस होने लगा जैसे यहां सिर्फ नंबरों का खेल चल रहा है। मध्य प्रदेश के खंडवा के रहने वाले प्रशांत के मुताबिक तीन वर्षों में ही उन्होंने इंजीनियरिंग छोड़ने का फैसला इसलिए लिया, क्योंकि उनके मुताबिक जो वे पढ़ रहे थे, उसके प्रैक्टिकल को लेकर जब वे प्रोफेसर से सवाल किया करते थे तो वे उनसे पहले उनके नंबर के बारे में पूछते थे। ऐसे में उन्हें एहसास हुआ कि केवल स्कूल या कॉलेज जाना ही इंसान के शिक्षित होने की पहचान नहीं है, बल्कि क्लास की चहारदीवारी से शिक्षा के दायरे को बाहर निकाले जाने की आवश्यकता है।
यही वजह रही कि पढ़ाई छोड़कर वे अपने बड़े भाई के पास पुणे चले गए थे और एक लैब में पार्ट टाइम नौकरी शुरू कर दी थी। बाद में उन्हें रोबोटिक्स के कोर्स के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने 6 महीने का एक कोर्स जॉइन कर लिया था। इसी दौरान उन्होंने निकोलस हचेट के बारे में जानकारी हासिल की, जिनकी एक दुर्घटना में एक हाथ चली गई थी। उन्होंने बायोनिको हाथ अपने लिए बनाया था। इससे प्रशांत को भी प्रेरणा मिली। अपनी प्रोटोटाइप पर काम करने के दौरान प्रशांत को एक 7 वर्ष की बच्ची भी दिखी थी, जिसके कि दोनों हाथ नहीं थे। ऐसे में उन्होंने एक कृत्रिम हाथ बनाने वाली कंपनी से संपर्क साधा तो पता चला कि दो प्रोस्थेटिक हाथ लगाने के लिए 24 लाख रुपये का खर्च आएगा। प्रशांत समझ गए कि यह बहुत महंगा है और केवल बहुत ही अमीर लोग इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। फिर उन्हें पता चला कि हर वर्ष दुर्घटनाओं में करीब 40 हजार लोग अपने हाथ गंवा बैठते हैं और इनमें से 85 फ़ीसदी लोगों को बिना हाथों के ही जीवन गुजारना पड़ता है। बस इसके बाद उन्हें अपनी जिंदगी का मकसद मिल गया।
काफी मेहनत करके प्रशांत ने कम कीमत वाला प्रोस्थेटिक हाथ बना लिया और अपनी गर्लफ्रेंड के नाम पर इसे इनाली आर्म नाम दिया। प्रशांत के मुताबिक उनकी गर्लफ्रेंड अच्छे-बुरे वक्त में हमेशा उनकी ताकत बनकर उनके साथ खड़ी रही हैं। फंड जुटाने के लिए उन्होंने क्राउडफंडिंग अभियान शुरू किया। जयपुर के एक संगठन की ओर से उन्हें सात हाथ बनाने का काम भी मिल गया। अमेरिका में भी एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने उन्हें अपने खर्च पर बुलाया और वहां से लौटने के दौरान 10 मशीनें उन्होंने उन्हें प्रोस्थेटिक हाथ बनाने के लिए गिफ्ट कर दी। वापस आने के बाद इनाली फाउंडेशन की प्रशांत ने नींव रख दी और अब तक इसके जरिए करीब दो हजार लोगों को मुफ्त में वे हाथ लगा चुके हैं। प्रशांत के प्रोस्थेटिक हाथ की कीमत इस वक्त सबसे कम 50 हजार रुपये है।
सबसे बड़ी बात यह है कि प्रशांत अब जरूरतमंद लोगों के पास खुद पहुंचकर भी उन्हें प्रोस्थेटिक हाथ लगा रहे हैं। उनके मुताबिक इन्नोवेशन और आविष्कार की तब तक कोई वैल्यू नहीं हो सकती, जब तक कि जरूरतमंदों तक इनका लाभ न पहुंच सके।
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