Mystery of Green Boots on Mount Everest: ताशी एंगमो उस ITBP जवान शेवांग पलजोर की मां हैं, जिनके बेटे का शव 24 वर्षों से माउंट एवरेस्ट में पड़ा हुआ है, लेकिन आज तक उनके बेटे के शव को उन तक पहुंचाने वाला कोई नहीं है। उनका कहना है कि उनके बेटे की मौत के बाद उन्हें ITBP की ओर से सही जानकारी नहीं दी गई थी। बस इतना बताया गया था कि बेटा उनका एवरेस्ट पर लापता हो गया है। शेवांग की मां लद्दाख में स्थित ITBP के दफ्तर का चक्कर कई दिनों तक लगाती रहीं, तब जाकर उन्हें पता चला कि माउंट एवरेस्ट पर उनके बेटे का शव पड़ा हुआ है।
आज तक यह मां अपने बेटे के शव का इंतजार कर रही हैं, ताकि कम-से-कम आखिरी बार वह अपने बेटे का चेहरा तो देख लें। यहां हम आपको वह कहानी बता रहे हैं, जो इस ITBP जवान से जुड़ी हुई है और साथ में जो माउंट एवरेस्ट में दबे गहरे रहस्यों में से भी एक है।
दुनिया की सबसे ऊंची और खतरनाक चोटी के रूप में माउंट एवरेस्ट की पहचान है। माउंट एवरेस्ट पर कई पर्वतारोही जहां शिखर तक पहुंचने से पहले ही हिम्मत हार जाते हैं, वहीं कई पर्वतारोही ऐसे भी हैं जो प्रतिकूल हालात की वजह से चढ़ाई के दौरान जिंदगी की जंग हार जाते हैं।
माउंट एवरेस्ट की चोटी से ज्यादा नीचे नहीं, बस 200 से 300 मीटर नीचे एक शव 24 वर्षों से पड़ा हुआ है। ITBP जवान शेवांग पलजोर का यह शव है। पर्वतारोही इसके बारे में बताते हैं कि यदि कोई इसके बारे में नहीं जानता है तो इसे देखकर वह कह नहीं पाएगा कि यह एक लाश है, क्योंकि इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई बहुत थक गया है और सो रहा है। इस शव के हरे रंग के जूते से पर्वतारोही इसकी पहचान करते हैं। यही कारण है कि अब ग्रीन बूट्स के नाम से शेवांग को जानने लगे हैं। जहां कई लोग शेवांग के शव को देखकर भयभीत हो जाते हैं तो वहीं बहुत से लोग इसके साथ बैठकर फोटो भी खिंचवाते हैं।
शेवांग पलजोर ITBP के जवान थे। साथ ही भारतीय पर्वतारोही के तौर पर भी उनकी पहचान थी। वर्ष 1996 में 10 मई को अपने कई साथियों के साथ माउंट एवरेस्ट को फतह करने के लिए वे निकले थे। तभी बर्फीला तूफान आ गया था, जिसकी वजह से शेवांग की जान चली गई थी। वैसे, शेवांग की मौत को लेकर एक विवाद पैदा हो गया था, जो आज भी कायम है।
कई पर्वतारोहियों का यह कहना है कि जिस बर्फीले तूफान की चपेट में शेवांग पलजोर आए थे, वास्तव में वे उससे बच सकते थे यदि किसी ने उनकी मदद कर दी होती। पर्वतारोहियों का कहना है कि जब बर्फीला तूफान आया था तो शेवांग और उनके एक साथी मदद की गुहार लगाते रह गए थे, पर वहां मौजूद किसी भी पर्वतारोही ने उनकी मदद नहीं की थी। पर्वतारोहियों का यह भी कहना है कि कई पर्वतारोही उस वक्त वहां मौजूद थे, लेकिन एवरेस्ट जीतने की चाहत उनकी इतनी तीव्र थी कि उन्होंने मदद के लिए हाथ बढ़ाना उचित नहीं समझा।
अधिक ऊंचाई पर कम ऑक्सीजन और बर्फीले तूफान की वजह से कई पर्वतारोहियों की माउंट एवरेस्ट में जान चली जाती है। ITBP जवान शेवांग पलजोर, जिन्होंने -16 से -40 तक के सामान्य तापमान वाले एवरेस्ट की चढ़ाई करते वक्त बर्फीले तूफान की वजह से अपनी जान गंवा दी थी, उनकी लाश अब ग्रीन बूट्स के नाम से यहां जानी जाती है। साथ ही माउंट एवरेस्ट में जो लाशें पड़ी हुई हैं, उन्हीं के कपड़ों और जूतों से अब यहां के रास्तों की पहचान भी होने लगी है।
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