अगर मशीनें ना हो तो कपड़ा बनाना असंभव है सभी ऐसा ही सोचते हैं क्योंकि मशीन के बिना कोई भी काम संभव नहीं है। मशीनों द्वारा हाई डिमांड को फुलफिल किया जाता है। भारत में सारे काम मशीनों द्वारा होते हैं लेकिन इनमें से कुछ ऐसी चीजें भी हैं जिनमें मशीन का कोई काम नहीं होता है उन्हें बिना मशीन के तैयार किया जाता है वह चीज अनोखी अद्भुत विचित्र है।
पटोला साड़ी का प्राइस रेट है काफी ज़्यादा
ऐसी चीज जो बिना मशीन के तैयार की जाती है ऐसी कारीगरी जो मशीन भी नहीं कर सकती है वह है पाटन पटोला साड़ी। इसे बनाना बहुत जटिल है। मार्केट में इसका प्राइस रेट बहुत ज्यादा है। पटोला गुजरात की एक जगह है जहां पर पटोला साड़ी मिलती है इसीलिए इस साड़ी का नाम पटोला पाटन रखा गया। पटोला एक रेशमी कपड़ा होता है इसे पवित्र माना जाता है। पटोला साड़ी का रेट काफी ज्यादा होता है क्योंकि इसे बनाने में काफी मेहनत पड़ती है।
गुजराती जगह पाटन थी पटोला साड़ी काफी फेमस, विदेशों में भी फैला है इसका प्रचार
गुजराती का एक लोक गीत है “छैला जी रे, मारे हाटु पाटन थी पटोला मोंगहा लावजो” पटोला गुजरात की एक जगह है जहां पर यह रेशमी साड़ी रखी जाती है और इसलिए इन साड़ियों को पटोला साड़ी कहते हैं। इस लोकगीत का अर्थ यह है कि एक पत्नी अपने पति से कहती है कि पाटन से लौटते वक्त पटोला साड़ी ले आना इसीलिए इस साड़ी का नाम पटोला पाटन रखा गया। इस साड़ी को मलेशिया, थाईलैंड में काफी महत्व दिया जाता है वहां के लोग पटोला साड़ी को भारत से आयात करते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के समय इंडोनेशिया की तरफ से इस साड़ी का भारत से आयात होता था।
पटोला साड़ी का इतिहास 900 साल पुराना है। कहा जाता है कि रामायण पुराण में इसका वर्णन मिलता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि अजंता एलोरा की गुफाओं के चित्र में जो व्यक्ति कपड़े पहने हुए हैं उनमें से कुछ पाटन वस्त्र में दिखते हैं। गुजरात के पाटन में बनने वाली यह साड़ी अपने आप में एक अनोखी चित्रकला है भारत के इतिहास में इस हस्तकला को उल्लेखनीय माना जाता है।