Shani Dev in Hindi- भारत में अनेक धर्म रहते हैं लेकिन यहां हिंदू धर्म का प्रावधान है तभी तो इसे हिंदुस्तान कहा गया है। हिंदू धर्म में ना जाने कितने देवी-देवता हैं और सभी का अपना काम होता है जैसे इंद्र देव वर्षा के लिए, गणेश जी बुद्धि के लिए, विष्णु जी विवाह के लिए और Shani Dev किसी की गलती की सजा देने के लिए। हर किसी का अपना-अपना डिपार्टमेंट है और वे इसे निष्पक्ष होकर निभाते हैं। यहां हम बात शनिदेव की करने जा रहे हैं जो खुश रहने पर व्यक्ति की झोली भर देते हैं लेकिन अप्रसन्न होने पर उसका सर्वनाश भी कर देते हैं। ये आपके ऊपर है कि आपको अच्छे काम करने हैं या बुरे ?
कौन हैं शनिदेव ? (Who is Shani Dev?)
हिंदू ग्रंथ के अनुसार, महर्षि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री अदिति से हुआ था। उनके गर्भ से विवस्वान यानी सूर्य का जन्म हुआ। सूर्य के विवाह संज्ञा नाम की एक कन्या से हुआ और सूर्य व संज्ञा के संयोग से वैवस्वत मनु और यम दो पुत्र और यमुना नाम की एक पुत्री हुई थी। संज्ञा अपने पति के अमित तेस से संतप्त रहती थी और सूर्य के तेज को ज्यादा समय तक सहन ना कर पाने के कारण उसने अपनी छाया को अपने ही समान बनाकर सूर्य के पास छोड़ दिया और खुद पिता के घर आ गई। पिता को संज्ञा का ये व्यवहार अच्छा नहीं लगा और उन्होंने संज्ञा को सूर्य के पास वापस जाने का आदेश दिया। पिता के आदेश की अवहेलना करते हुए संज्ञा ने घोड़ी का रूप बना लिया और कुरु प्रदेश के वनों में जाकर रहने लगीं। इधर सूर्य संज्ञा की छाया को संज्ञा समझते रहे और कुछ समय बाद संज्ञा के गर्भ से सावर्णि मनु और शनि दो पुत्रों ने जन्म लिया। एक बार बालक यम ने खेल-खेल में छाया को अपना चरण दिखाया तो उसे क्रोध आ गया और उसने यम को चरण हीन होने का श्राप दे दिया। बालक यम ने डर कर पिता को इस बारे में बताया तो उन्होने इस डर के बारे में बताया। छाया संज्ञा से बालकों के बीच भेदभाव पूर्ण व्यवहार करने का कारण पूछा तो छाया संज्ञा ने पूरा सच बताया।
संज्ञा के इस व्यवहार से क्रोधित होकर सूर्य अपनी ससुराल गए और ससुर ने समझा कर दामाद को किसी तरह शांत किया और कहा, ”आदित्य…आपका तेज सहने का अपराध संज्ञा ने किया है औऱ वो घोड़ी बनकर वन में चली गई है। आप उसके अपराध को क्षमा करें और मुझे अनुमति दें कि मैं आपके तेज को काट-छांटकर सहनीय व मनोहर बना दूं। आज्ञा मिलने पर सूर्य के तेज को काट-छांट दिया और विश्वकर्मा ने उस छीलन से भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का निर्माण किया। मनोहर रूप होने के बाद सूर्य संज्ञा को घर ले आए और बाद में संज्ञा ने नासत्य और दस्र नाम के दो पुत्रों को जन्म दिया। यम की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें पितरों का आधिपत्य बनाया और धर्म अधर्म के निर्णय करने का अधिकारी बना दिया। यमुना और ताप्ती नदी में प्रवाहित हो गईं और शनि को नवग्रह मंडल में स्थान दे दिया।
देवता हैं शनिदेव
शनिदेव का सांवला पन उन्हें बहुत परेशान करता था लेकिन फिर उन्हें लोग इसी रूप में पसंद करने लगे। शनिदेव को गलत बातें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है और वे इसकी सजा व्यक्ति को जरूर देते हैं। रुठे हुए शनिदेव को मनाना बहुत मुश्किल होता है। अगर वे प्रसन्न हैं तो वे आपको हर तरह का सुख दे सकते हैं लेकिन अगर अप्रसन्न हैं तो आपके हर काम खराब हो सकते हैं। बहुत से लोग उन्हें बुरा मानते हैं क्योंकि शनि देव की कृदृष्टि से कार्य में बाधाएं आती हैं लेकिन अगर उन्हें प्रसन्न रखो तो सब ठीक है। तो चलिए बताते हैं उन्हें प्रसन्न करने के उपाय…
1. सूर्यास्त के बाद हनुमान जी का पूजन करना चाहिए। पूजन में सिंदूर, काला तिल, तिल्ली का तेल, दीपक और नीले रंग के फूलों का उपयोग करें।
2. कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्रान्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मंद और पिप्पलाद…इन 10 नामों का पूजन जरूर करें।
3. शनिवार के दिन स्नान करने के बाद कुश के आसन में बैठकर शनिदेव की तस्वीर के सामने आपको विधिवत पूजन करना चाहिए। फिर रूद्राक्ष की माला से ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप कम से कम 5 बार करें।
4. सवा-सवा किलो काले चने को तीन बर्तनों में भिगो दें, इसके बाद जब आप नहाकर साफ वस्त्र पहने और पूजन करें तो चनों को सरसों के तेल में छोंकर शनिदेव को भोग लगाएं। इसका दूसरा भाग भैंसे को खिला दें और तीसरा भाग अपने ऊपर से उतार कर किसी सूनसान जगह पर रख आएं।
5. काले धागे में बिच्छू घास की जड़ को अभिमंत्रित करवा कर धारण करना चाहिए इससे शनि संबंधी सभी कामों में सफलता मिलेगी। भैरवजी की उपासना करें और शाम के समय काले तिल के तेल का दीपक जलाएं।
शनि देव और शनि ग्रह में संबंध ?
शनि ग्रह का भगवान शनिदेव से क्या संबंध है इस बारे में जरूर जानना चाहिए। पहली बात ये है कि शनिग्रह और शनिदेव दो अलग-अलग है और इन्हें एक कहना गलत है। शनि ग्रह के अधिपति देव भगवान भैरव हैं। आकाश में शनि ग्रह वायव्य दिशा में दिखाई देते हैं और वायव्य दिशा के स्वामी पवनदेव हैं। हमारे सौर्य मंडल में सूर्य सहित जितने भी ग्रह दिखाई देते हैं वे किसी भी प्रकार के देवी-देवता नहीं है जैसा कि उनके बारे में ज्योतिष में लिखा है। हां देवताओं के नाम पर ही उक्त ग्रहों के नाम रखे गए हैं और ग्रहों की पूजा करना मूर्खता से ज्यादा कुछ नहीं है। ग्रहों का असर आपके शरीर आपके घर और आपके आसपास के वातावरण पर पड़ता है और इनके बुरे असर से बचने के लिए वास्तुशास्त्र या ज्योतिष के अच्छे जानकार से मिलना सही रहता है।