Surya Chikitsa: हम सभी इस बात से अच्छी तरह से अवगत हैं कि हमारा शरीर कई सारे महत्वपूर्ण रासायनिक तत्वों से मिल कर बना है। बता दें कि रंग भी एक रासायनिक मिश्रण है। जिस अंग में जिस प्रकार के रंग की अधिकता होती है हमारे शरीर का रंग उसी तरह का होता है। जैसे त्वचा का रंग गेंहुवा, बालों का रंग काला और आंखों के अंदर की जगह का रंग सफेद होता है। शरीर में रंग विशेष के घटने-बढ़ने से रोग के भी कई सारे अलग-अलग लक्षण प्रकट होते हैं, जैसे खून की कमी होना शरीर में लाल रंग की कमी का लक्षण है। यह तो आप भी जानते होंगे कि इस संसार का अगर कोई अस्तित्व है तो वह सूर्य की बदौलत ही है। सूर्य स्वास्थ्य और जीवन शक्ति का भंडार है। मनुष्य सूर्य के जितने अधिक संपर्क में रहेगा उतना ही अधिक स्वस्थ रहेगा।
सूर्य की किरणों के सात रंगों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं, जिनके आधार पर इन्हें विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए चुना जाता है। किसी भी रोग के उपचार के लिए इन रंगों का उपयोग स्वतंत्र रूप से किया जाना चाहिए। कुछ इसी तरह से चिकित्सा की एक पद्धति है सूर्य चिकित्सा, जिसकी मदद से कई ऐसे रोगों का निवारण किया जाता है जिसका इलाज बड़ी से बड़ी और महंगी-महंगी दवाएं तक नहीं कर पाती हैं। आज हम आपको सूर्य चिकित्सा से संबंधित कई ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं जिसके बारे में बहुत से लोग आज भी अनभिज्ञ होंगे।
सूर्य किरणों में सात रंग और उनके गुण
- लाल रंग: सूर्य की सभी सात किरणों में यह रंग के प्रभाव से ज्वर, दमा, खांसी, मलेरिया, सर्दी, ज़ुकाम, सिर दर्द और पेट के विकार आदि में लाभकारक है।
- हरा रंग: यह स्नायुरोग, नाड़ी संस्थान के रोग, लिवर के रोग, श्वास रोग आदि को दूर करने में सहायक है।
- पीला रंग: यह रंग चोट, घाव, रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग, अतिसार आदि में फ़ायदा करता है।
- नीला रंग: सूर्य की किरणों का नीला रंग, दाह, अपच, मधुमेह आदि में लाभकारी है।
- बैंगनी रंग: यह रंग श्वास रोग, सर्दी, खांसी, मिर्गी, दांतों के रोग में सहायक है।
- नारंगी रंग: नारंगी रंग वात रोग, अम्लपित्त, अनिद्रा, कान के रोग दूर करता है।
- आसमानी रंग: यह रंग स्नायु रोग, यौन रोग, सरदर्द, सर्दी-जुकाम आदि में सहायक है।
क्या है सूर्य चिकित्सा [Surya Chikitsa Kya Hai]
सूर्य चिकित्सा एक बहुत पुरानी प्राकृतिक रासायनिक तत्वों वाली चिकित्सा है। सूर्य स्नान, सतरंगी किरणों के सातों रंग, लाल, हरे एवं नीले रंगों के गुण ही इस चिकित्सा की मुख्य विशेषतएं हैं। सूर्य की किरणें एवं इसके सात रंगों द्वारा हमारे शरीर को लाभ देने की उत्तम एवं लाभकारी तकनीक है। सूर्य की किरणों के सातों रंग हर एक रोग में सफल इलाज के अतिरिक्त रोगी को तंदुरस्ती प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसीलिए ‘क्रोमोपैथी’ हानिरहित, बिना लागत, प्राकृतिक रासायनिक तत्त्व सूर्य देव के अमूल्य आशीर्वाद से सुसज्जित है। एक साधारण व्यक्ति भी इस निःशुल्क चिकित्सा से लाभ प्राप्त कर सकता है।
सूर्य चिकित्सा पूर्ण रूप से एक प्राकृतिक उपचार है। अब यह वैज्ञानिक पद्धति भी है और एक धार्मिक अनुष्ठान भी है। प्राचीन काल से जब सूर्य उपासना होती थी उसमें लोगों की श्रद्धा और विश्वास का समन्वय था, वो अब भी चला आ रहा है। पहले सूर्य पूजा को सिर्फ़ एक धार्मिक अनुष्ठान माना जाता था, पर अब इसे वैज्ञानिक पुष्टि मिलती जा रही है और अब यह चिकित्सा पद्धति के रूप मे अग्रसर हो रहा है। सूर्य चिकित्सा के द्वारा न केवल मनुष्य के शरीर को ही निरोग और निर्मल बनाया जा सकता है, बल्कि उसकी प्रकृति या स्वभाव को भी बदला जा सकता है। रोगों को दूर करने के लिए धूप स्नान एक विशेष विधि से लिया जाता है।
सर्दियों के दिनों में यदि धूप में गर्म किये गये पानी से स्नान किया जाएतो वह साधारण या गीजर के जल की अपेक्षा कहीं अधिक स्फूर्तिदायक एवं रोगनाशक सिद्ध होता है। इसके अलावा आपको बता दें कि प्रातःकाल के निकलते सूर्य की प्रथम किरणें स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभप्रद है। इस समय सूर्य नमस्कार, आसन, व्यायाम का अपना अलग ही महत्त्व है। सूर्योपासना, सूर्य की प्रार्थना एवं उनके ध्यान से बुद्धि का परिमार्जन होकर सद्विवेक जाग्रत होता है और मनुष्य पाप कर्मों से सहज ही बच जाता है। ध्यान रहे कि सूर्य चिकित्सा दिखता तो आसान है पर विशेषज्ञ से सलाह लिये बिना ना ही शुरू करें। जैसा कि हम जानते हैं कि सूर्य की रौशनी में सात रंग शामिल हैं और इन सब रंगो के अपने-अपने गुण और लाभ हैं।
रंग के तीन परिवारों का महत्त्व
- पीला, नारंगी लाल– बताना चाहेंगे कि इन तीनों रंगों में से नारंगी रंग ही ठीक रहता है।
- हरा रंग– इसके अलावा यह रंग शीतोष्ण होने के कारण सबसे उत्तम होता है।
- बैंगनी रंग, गहरा नीला और आसमानी रंग– यह भी बता दें कि बैंगनी, गहरा नीला रंग और आसमानी नीला रंग, इन तीन रंगों में गहरा नीला रंग ही ठीक रहता है।
सूर्य चिकित्सा से होने वाले लाभ
सूर्य चिकित्सा से लाभ उठाने का एक तरीका रंगीन बोतलों में पानी, दूध, तेल, शक्कर मिश्री आदि भर कर और उन्हें नियत समय तक धूप में रख कर काम में लाना भी है। रंगीन कांचों द्वारा तो धूप का लाभ दिन के समय ही लिया जा सकता है। इसके लिए नीली, लाल, बैंगनी, नारंगी आदि रंगों की बोतलें एक लकड़ी के तख्ते के ऊपर धूप में ऐसे स्थान पर रखनी चाहिये कि उन पर किसी भी प्रकार की छाया न पड़े। इतना ही नहीं इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि बोतलों की छाया भी एक दूसरे पर न पड़ सके। पानी की बोतलों को आठ घंटे धूप में रखना चाहिये और सूर्यास्त से पहले ही उठा लेना चाहिये। हालांकि, सूर्य की किरणों से तैयार हुआ पानी तीन दिनों तक काम करता है और फिर इसके बाद वह बेकार हो जाता है यानी कि सामान्य हो जाता है।
सूर्य चिकित्सा मे पानी, क्रिस्टल, सूर्य स्नान, सूर्य प्राणायाम, इत्यादि तरीके अपनाये जाते हैं, जो रोगी की बिमारी एवं दशा देखकर निर्धारित किया जाता है। जलार्पण के लिये भी निर्दिष्ट नियम हैं और इसका पालन करके हम कई तरह की समस्याओ से निजात भी पा सकते हैं। यहां पर महत्वपूर्ण बात तो ये है कि सूर्य चिकित्सा की दवाइयों को बनाना बहुत सरल होता है। इसमें ज्यादा धन खर्च नहीं होता तथा ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। इसे बनाने के लिए इच्छित रंग की बोतल में पानी भरकर धूप में 6 से 8 घंटों के लिए रख दें, दवा अपने आप तैयार हो जाती है।
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