समाज में योगदान कई तरीके से दिया जा सकता है। दूसरों की मदद के लिए कई तरीके मौजूद होते हैं। जरूरत होती है बस इच्छाशक्ति की। शिरीन मर्चेंट भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं, जिन्होंने अपने तरीके से दूसरों की मदद करने की ठानी। मुंबई की रहने वालीं शिरीन मर्चेंट कुत्तों को तौर-तरीके सिखाने का काम करती हैं।
तो शायद जिंदा निकलते चेहरे
जब गुजरात में भूकंप आया था, उस वक्त खबर मिलने के साथ ही शिरीन भी वहां लोगों की मदद के लिए अपने कुत्तों के साथ पहुंचना चाहती थीं। हालांकि उन्हें इसके लिए परमिशन मिलने में कई दिन लग गए। आखिरकार जब एक मिलिट्री की टुकड़ी के साथ वे अपने कुत्तों को लेकर वहां पहुंचीं तो इनके कुत्तों ने तो कमाल ही कर दिया। लाशों को ढूंढ पाना यहां बहुत मुश्किल था। फिर भी उनके कुत्तों ने कई लाशों को मलबे के ढेर से बाहर निकालने में मदद की। जीते-जी किसी आदमी के चले जाने से कम-से-कम उसकी लाश देखना तो बेहतर होता ही है। हालांकि, शिरीन को इस बात का बहुत ही अफसोस रहा कि यदि तत्काल उनकी कुत्तों को वहां ले जाया जाता तो शायद जो चेहरे मरे हुए मलबे से बाहर निकले, उनमें से कई जिंदा बचा लिए जाते।
ऐसे की शुरुआत
शिरीन बताती हैं कि जिस तरीके से लोगों को अपने परिवार में विरासत के तौर पर कई चीजें मिलती हैं, उसी तरीके से उन्हें भी विरासत में ही अपने घर से कुत्ते मिले हैं। उनके घर में कुत्ते हुआ करते थे। उन्हें कुत्तों से बचपन से ही बड़ा लगाव रहा था। हालांकि, जब भी वे देखती थीं कि आसपास के घरों में लोग ऑफिस से आने पर अपना गुस्सा इन कुत्तों पर निकालते थे। उन्हें लात मार दिया करते थे। उनके बात न मानने पर उन्हें गालियां दिया करते थे तो उन्हें यह देखकर बहुत बुरा लगता था। वे चार वर्षों के लिए पढ़ाई और ट्रेनिंग करने के लिए मुंबई से इंग्लैंड चली गयीं। वहां से लौटकर उन्होंने कुत्तों के मालिकों से मिलना शुरू कर दिया। जब वे इन्हें बताती थीं कि वे कुत्तों को कायदे और तौर-तरीके सिखाएंगी तो वे हंस पड़ते थे। कहते थे कि यह भी क्या काम है? तुम अपना काम करो। हम अपने कुत्तों को संभाल लेंगे। शिरीन बताती हैं कि पहले से अब में बहुत बदलाव आ गया है। आज स्थिति यह है कि लोग जब उनके पेशे के बारे में सुनते हैं तो रुक जाते हैं। उनकी आंखों में, उनकी आवाज में हैरानी देखने को मिलती है। कहते हैं कि यह काम बिल्कुल अलग है और बहुत जरूरी भी।
मालिकों की भी जिम्मेवारी
शिरीन कहती हैं कि कुत्ते भी तो छोटे बच्चे की तरह ही होते हैं। इनका भी स्वभाव अलग-अलग होता है। कोई बेहद गुस्से वाला होता है, तो कोई बहुत शांत। किसी को सोना बहुत पसंद होता है तो किसी को बहुत खाना। बच्चों की तरह ही इन्हें भी प्यार करने की जरूरत होती है। इन्हें भी यदि वक्त दिया जाए, इन्हें भी यदि ट्रेनिंग दी जाए तो ये सही तरीके से व्यवहार करना सीख जाते हैं। शिरीन कहती हैं कि कई बार कुत्ते को ट्रेनिंग देने के दौरान उनके मालिक उनसे सवाल करते हैं कि ट्रेनिंग तो आप कुत्तों को दे रही हैं, फिर हमें क्यों होमवर्क दे रही हैं? इस पर शिरीन उन्हें कहती है कि भले ही ट्रेनिंग कुत्ते की चल रही है, लेकिन साथ तो इनके आपको ही रहना है। ऐसे में आपको भी चीजें सीखनी पड़ेंगी। शिरीन कहती हैं कि लोगों को लगता है कि तुरंत इन कुत्तों को तमीज तुरंत आ जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं है। इसके लिए इन्हें उसी तरह से वक्त देना पड़ता है, जैसे कि बच्चों को सिखाने के लिए वक्त देते हैं।
रंग लाई मेहनत
शिरीन के प्रयासों की वजह से अब तक बहुत से कुत्तों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। ऐसे ढेरों कुत्तों के मालिक हैं, जो शिरीन के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं। शिरीन के ट्रेंड किए हुए कुत्ते कई महत्वपूर्ण कार्यों में भी अलग-अलग जगहों पर योगदान दे रहे हैं।