वक्त के साथ विकास की वजह से दिव्यांगों के प्रति लोगों की सोच में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। फिर भी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। ऐसे में हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो केवल दिव्यांगों की स्थिति में केवल बदलाव की बातें नहीं कर रहे हैं, बल्कि खुद उस बदलाव का हिस्सा बन गए हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सेरीखेड़ी की रहने वाली गीतू जोशी भी इन्हीं में से एक हैं। दिव्यांगों के कल्याण के लिए काम कर रही संस्था सेवा निकेतन में शिक्षिका के तौर पर गीतू जोशी काम कर रही हैं। साथ ही बीते 5 वर्षों से अपनी सैलरी का 30% हिस्सा वे दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई के लिए दे रही हैं। उन्हें रोजगार दिलाने की भी वे भरसक कोशिश करती हैं।
इनकी संवर गयी जिंदगी
गीतू जोशी की इन कोशिशों की वजह से अब तक 100 से भी अधिक जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई पूरी हो चुकी है। सबसे खास बात यह है कि गीतू जोशी केवल इन दिव्यांग बच्चों को पढ़ा कर ही नहीं छोड़ देती हैं। वे उन्हें खुद के रोजगार से जोड़ने के लिए भी पूरा प्रयास करती हैं। यही वजह है कि अपनी सैलरी का 30 फ़ीसदी हिस्सा उन्होंने इन बच्चों के लिए हर माह समर्पित कर दिया है। इस बारे में गीतू कहती हैं कि उनकी कोशिशों की वजह से किसी स्टूडेंट को नौकरी मिल जाए तो उन्हें बहुत खुशी होती है।
अपने एक स्टूडेंट अशोक शर्मा का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि अपना पोस्ट ग्रेजुएशन अशोक ने पूरा कर लिया है और इस वक्त धमतरी में टीचर के तौर पर काम कर रहे हैं। दिव्यांग स्टूडेंट्स को शिक्षा प्राप्त करने में गीतू मदद तो करती ही हैं, साथ में रक्तदान में भी वे बेहद सक्रिय हैं। हर तीन महीने में गीतू खुद से तो रक्तदान करते ही हैं, साथ में वे बाकी स्टूडेंट्स को भी रक्तदान के लिए प्रेरित करती रहती हैं।
खुद का भी जीवन रहा संघर्षपूर्ण
संघर्ष तो अपने जीवन में गीतू को भी करना पड़ा है, क्योंकि उनका परिवार खुद आर्थिक तौर पर सक्षम नहीं था। पिता जो कि पोल्ट्री फार्म में काम कर रहे थे, उनके ऊपर सात बेटियों की जिम्मेदारी थी। ऐसे में एक बार गीतू को पढ़ाई तक छोड़नी पड़ी थी। हालांकि पिता के किसी भी परिस्थिति में हार ना मानने की बात सुनकर गीतू को हौसला मिला था और उन्होंने किसी भी तरीके से अपनी पढ़ाई पूरी कर ली। गीतू के पास आज डीसीए और बीएससी के साथ एमएससी, पीजीडीसीए और B.Ed तक की डिग्रियां हैं। खुद के पैरों पर तो वे खड़ी हो ही गयी हैं, साथ ही अपनी बहनों को भी उन्होंने सिलाई की ट्रेनिंग दिलवा दी है। घर में भी वे आर्थिक मदद कर रही हैं।
क्यों आया मदद का ख्याल?
नौकरी लगने के बाद गीतू को दिव्यांग बच्चों को देखकर महसूस हुआ कि प्रतिभा होने के बावजूद आर्थिक तंगी की वजह से परीक्षा फॉर्म नहीं भर पाने या फिर स्टेशनरी आदि की उपलब्धता न होने के कारण इनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती है। ऐसे में गीतू ने हर महीने अपनी सैलरी का 30 फ़ीसदी हिस्सा इनकी मदद के लिए देने की ठान ली। सोनू सागर नामक एक दृष्टिहीन दिव्यांग स्टूडेंट की गीतू ने मदद की, जिसने कि 2013 में आठवीं पास किया था, लेकिन दृष्टिबाधित होने के कारण और आर्थिक तंगी की वजह से 5 वर्षों तक उसकी पढ़ाई नहीं हो पाई। गीतू की मदद से उसने दसवीं की ओपन परीक्षा दी। इसमें पास भी हो गया और बीते वर्ष भिलाई के नवदीप विद्यालय में 11वीं में दाखिला भी पा लिया।
सकारात्मक सोच का महत्व
गीतू कहती हैं कि जिंदगी में उलझन में फंसने पर वे अपने इन स्टूडेंट्स को देख लेती हैं, जिससे उनकी परेशानियां दूर हो जाती हैं। उनका मानना है कि सकारात्मक सोच जिंदगी बदल सकती है। सकारात्मक सोच से हर मुश्किल आसान हो जाती है। साथ ही गीतू हर सक्षम इंसान से जरूरतमंदों की मदद करने की अपील भी करती हैं।