हाल ही में भारत सरकार की ओर से पद्म विभूषण, पद्म भूषण एवं पद्मश्री पुरस्कारों की घोषणा की गई है। इनमें से चार लोगों को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है, जबकि 14 लोग ऐसे हैं, जिन्हें पद्म भूषण अवार्ड दिया गया है। साथ में देश भर से 94 लोगों को पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। इस लिस्ट में 72 साल की तुलसी गौड़ा का नाम भी शामिल है। तुलसी गौड़ा कर्नाटक के अंकोला तालुका में स्थित होन्नाली गांव की रहने वाली हैं। तुलसी गौड़ा ने जो अब तक काम किया है, उसकी वजह से उन्हें इनसाइक्लोपीडिया ऑफ द फॉरेस्ट के नाम से भी जाना जाता है।
बुलाते हैं तुलसी अम्मा
तुलसी गौड़ा को सभी तुलसी अम्मा कह कर पुकारते हैं। उन्होंने कभी भी यह कल्पना नहीं की होगी कि पर्यावरण को बचाने का और पेड़-पौधे रोपने का उनका जुनून एक दिन उन्हें देश के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक पद्मश्री सम्मान का हकदार बना देगा। पर्यावरण संरक्षण के सबसे सच्चे प्रहरी के रूप में आज इस आदिवासी अम्मा का नाम लिया जा रहा है। असल जिंदगी में तुलसी अम्मा के कोई बच्चे नहीं हैं। उन्होंने जो अब तक लाखों की संख्या में पेड़-पौधे लगाए हैं, इन्हीं को वे अपने बच्चे के तौर पर मानती हैं। साथ ही बिल्कुल अपने बच्चों की तरह वे इनकी परवरिश भी कर रही हैं और इनका विशेष ख्याल रखती हैं।
नहीं देखा स्कूल का मुंह
कभी भी तुलसी अम्मा ने स्कूल का मुंह नहीं देखा। स्कूल पढ़ाई करने के लिए वह नहीं जा सकीं। उन्हें तो यह भी नहीं पता कि किताबों में क्या लिखा है। फिर भी पेड़-पौधे के बारे में उनके पास जो ज्ञान है, वह अतुलनीय है। तुलसी गौड़ा के पास किसी तरह की कोई भी शैक्षणिक डिग्री नहीं है। फिर भी उन्हें जो पेड़-पौधों को लेकर ज्ञान है, उसके कारण वन विभाग में उन्हें नौकरी मिल गयी। प्रकृति के प्रति तुलसी अम्मा के लगाव को देखते हुए ही उन्हें वन विभाग में यह नौकरी प्रदान की गई।
सेवानिवृत्ति के बाद भी जुनून बरकरार
तुलसी अम्मा ने करीब 14 वर्षों तक विभाग में काम किया है। इस दौरान अपने हाथों से उन्होंने हजारों की संख्या में पेड़-पौधे रोपे हैं। उनके द्वारा रोपे गए ये पेड़-पौधे आज घने जंगल में तब्दील हो चुके हैं। भले ही वे अब सेवानिवृत्त हो चुकी हैं, फिर भी पेड़-पौधे रोपने का उनका जुनून जरा भी कम नहीं हुआ है। अभी भी जगह-जगह पेड़-पौधे रोप कर वे पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी मुहिम चला रही हैं। अब तक के अपने जीवनकाल में तुलसी अम्मा एक लाख से भी अधिक पेड़-पौधे रोप चुकी हैं।
ऐसे हुई शुरुआत
जब विकास के नाम पर पेड़-पौधों की कटाई की जाने लगी और जंगल साफ किए जाने लगे तो तुलसी अम्मा का पेड़-पौधों के प्रति प्रेम उभर कर सामने आ गया। पेड़-पौधों की हो रही यह कटाई उनसे बर्दाश्त नहीं हो पाई। उन्होंने ठान लिया कि वे पेड़-पौधों लगाकर पर्यावरण का संरक्षण करेंगी। इसी संकल्प के साथ उन्होंने पेड़-पौधों रोपने का काम शुरू कर दिया और आज भी वे इसके लिए जी-जान से मेहनत करती हुईं नजर आती हैं।
ज्ञान का भंडार अम्मा के पास
ऐसा नहीं है कि तुलसी अम्मा पेड़-पौधों लगाकर उन्हें छोड़ देती हैं। वे तब तक इन पर ध्यान देती हैं, जब तक कि ये पौधे बड़े होकर पेड़ ना बन जाएं। यही नहीं, वे बच्चों की तरह इनकी देखभाल करती हैं और इस बात का भी ध्यान रखती हैं कि किन पेड़-पौधों को कब किन चीजों की जरूरत है। साथ ही अलग-अलग पेड़ों की प्रजातियों के बारे में भी उन्हें बहुत ही अच्छी जानकारी है। इनके आयुर्वेदिक लाभ के बारे में भी उन्हें अच्छी तरह से मालूम है। इसलिए रोजाना उनके पास बहुत से लोग पहुंचते हैं और उनके साथ वे अपने इस ज्ञान को बांटती भी हैं।
अवार्ड मिलने से बढ़ीं चुनौतियां
पद्मश्री से पहले उन्हें इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड, कर्नाटक राज्योत्सव अवार्ड और कविता मेमोरियल जैसे सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। तुलसी अम्मा के मुताबिक उन्हें अवार्ड पाने से उतनी ज्यादा खुशी नहीं होती है, जितनी कि इन पेड़-पौधों को लगाने और इनकी देखभाल से होती है। पिछले करीब 6 दशक से वे इस काम में बिना मुनाफे के लगी हुई हैं। पद्मश्री मिलने के बाद भी तुलसी अम्मा की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं हुआ है। एक चुनौती के तौर पर वे इसे देख रही हैं। वे मानती हैं कि इससे उन्हें अब और बेहतर करने की जरूरत है। तुलसी गौड़ा के इन प्रयासों से यही प्रेरणा मिलती है कि छोटे स्तर पर ही सही, हमें भी अपने पर्यावरण को बचाने के प्रति संकल्पित होना चाहिए।