Janmashtami Vrat Katha in Hindi: जन्माष्टमी का उत्सव विश्व के हर एक कोने में बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इसी के साथ सभी कृष्ण भक्त श्राद्धा पूर्वक भगवान की आराधना करते हैं। जन्माष्टमी उत्सव के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने के साथ-साथ व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। इस पाठ को करने से भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों के ऊपर अपनी दया दृष्टि हमेशा बनाए रखते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, भादों मास की अष्टमी तिथि, के रोहणी नक्षत्र की आधी रात को बालगोपाल का जन्म हुआ था। जन्माष्टमी के अवसर पर सभी भक्त भगवान श्रीकृष्ण की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ करते हैं और कथा का पाठ करते हैं। आज के इस लेख में हम आपको श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कथा को विस्तार से बताएंगे।
श्रीकृष्ण जनमष्टमी व्रत कथा (Janmashtami Vrat Katha In Hindi)
पौराणिक कथाओं व हिन्दू धर्म शास्त्र के अनुसार, द्वापर युग में मथुरा में राजा उग्रसेन राज करते थे। राजा उग्रसेन के वंश में एक पुत्र और पुत्री थी। पुत्र का नाम कंस था और पुत्री का नाम देवकी था। राजा उग्रसेन ने अपनी पुत्री देवकी का विवाह यदुवंशी राजा वासुदेव से किया था। विवाह के बाद कंस स्वयं सारथी बन अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुंचाने का फैसला किया। जब वह अपनी बहन को ससुराल पहुंचाने जा रहा था, तो रास्ते में आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी में यह बोला गया कि, मूर्ख कंस जिस बहन को तू ससुराल पहुंचाने जा रहा है उसकी कोख से जन्मी आठवीं संतान तेरी मृत्यु की कारण बनेगी। यह सुनकर कंस क्रोधित हो गया और उसने अपनी बहन को मारने का फैसला किया। लेकिन वासुदेव ने कंस से यह विनती करी कि, तुम देवकी को मत मारो मैं खुद देवकी की सभी संतानों को तुम्हारे पास लाऊँगा। वासुदेव और देवकी के एक-एक करके सात संतानें हुई और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला।
अब बारी थी आठवे संतान की तब कंस ने कारगर के बाहर और भी ज्यादा पहरा लगा दिया। वहीं दूसरी तरफ देवकी के साथ नंद गांव में नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। उन्होंने वासुदेव और उनकी पत्नी के दुखी जीवन को देख कर आठवे बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस दिन वासुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय ईश्वर के रची हुई लीला के अनुशार यशोदा के गर्भ में एक पुत्री का जन्म हुआ, जो और कुछ भी नहीं एक ईश्वर की रची हुई माया थी।
जिस काल कोठारी के अंदर वासुदेव और देवकी कैद थे, वहाँ पर अचानक से चतुर्भुज भगवान प्रगट हुए। दोनों भगवान के श्री चरणों में गिर पड़े। भगवान ने वासुदेव और देवकी से कहा की मै अब पुनः एक नवजात शिशु का रूप धारण करूंगा। तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंद जी के घर वृंदावन में ले जो और वह जिस कन्या का जन्म हुआ है उसे लाकर कंस के हाथ में देदो। भगवान मे कहा इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। लेकिन तुम इस बात की बिल्कुल चिंता मत करो, सभी पहरेदार स्वतः ही सो जाएंगे और माता यमुना तुम्हें खुद ही रास्ता देंगी।
भगवान के आदेश अनुसार, वासुवेव नवजात शिशु रूपी श्रीकृष्ण को सूप में रख कर काराग्रह से निकल पड़े और यमुना नदी को पार कर नंद जी के घर पहुंचे। जहां पर उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया, उनकी कन्या को लेकर मथुरा आ गए। मथुरा आते ही काराग्रह के सम्पूर्ण द्वार पूर्वत की तरह फिर से बंद हो गए। मथुरा के राजा कंस तक वासुदेव-देवकी के बच्चा पैदा होने की सूचना पहुंच गई।
सूचना मिलते ही कंस काराग्रह पहुंचा और उसने कन्या को देवकी के हाथों से छीनकर उसे मारने के लिए पृथ्वी पर पटकने की कोशिश की। वैसे ही कन्या रूपी देवी आकाश में उड़ गई। उस कन्या ने कंस से कहा कि, मैं देवकी की आठवीं संतान नहीं हूँ। तुम्हारा काल इस वक्त नन्द गाँव के सरपंच के घर पहुँच चुका है और एक दिन वो तुम्हारा वध करेगा।
नोट:- इस लेख को सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। हम किसी भी प्रकार की ऐतिहासिक घटनाओं के सही सिद्ध होने की पुष्टि नहीं करते हैं।
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