Kinnar Ka Antim Sanskar Raat Mein Kyon Hota Hai: हमारे समाज में किन्नर (ट्रांसजेंडर) के लिए अलग अलग तरह के रीति रिवाज प्रचिलित हैं। किन्नरों का आम लोगों में से एक अलग ही समुदाय है जिनके लिए समाज से भिन्न अलग प्रकार की प्रथाएं हैं। किसी भी शुभ काम में किन्नरों की उपस्थिति को अशीर्वाद के नजरिए से देखा जाता है। कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इन्हे ईश्वर का विशेष आशीर्वाद प्राप्त है।
हमारे समाज में एक अनोखी प्रथा चलती आ रही है अंतिम संस्कार की। जहाँ आम तौर पर सभी लोगों का अंतिम संस्कार दिन के समय में किया जाता है लेकिन किन्नरों के मामले में यह बात पूरी तरह से विपरीत है। किन्नरों का अंतिम संस्कार मध्यरात्रि में किया जाता है। आज के इस लेख में हम आपको बताएँगे कि, आखिर क्यों किन्नरों का अंतिम संस्कार रात्रि के समय किया जाता है ?
रात के समय निकाली जाती है शव यात्रा
पौराणिक इतिहास की माने तो किन्नरों की शव यात्रा को रात में इसलिए निकाला जाता है ताकि आम इंसान उनके शव न देख पाएं। किन्नरों की शव यात्रा में किसी और समुदाय के इंसान को शामिल होने की इजाजत नहीं होती है। एक मान्यता यह भी है कि अगर कोई इंसान किसी किन्नर की शव यात्रा को देख लेता है तो यह उसके लिए शुभ नहीं माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई इंसान किन्नरों की शव यात्रा को देख लेता है तो उसे इस जीवन से मुक्ति नहीं मिल पाती है और उसे बार बार इसी योनि में ही जन्म लेना पड़ता है।
शव को जूतों से पीटे जाने की कहानी
ऐसी मान्यता है कि किन्नरों के शव का अंतिम संस्कार करने से पहले जूतों से पीटा जाता है, जिससे उन्हें अगली बार इस योनि में जन्म न लेना पड़े और उन्हें इस मृत्यु लोक से मुक्ति मिल सके।
आधी रात में किया जाता है अंतिम संस्कार
किन्नरों की मृत्यु के पश्चात् उनका अंतिम संस्कार रात के समय में किया जाता है ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आम इंसान उनकी चिता को जलते हुए न देख पाए। किन्नरों के शव को जलाने से पहले सभी किन्नर अपने आराध्य देव अरावन का आह्वान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी इंसान किन्नर के चिता की राख़ को अपने घर में ले जाता है उसके घर में सदैव माँ अन्नपूर्णा और माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
किन्नरों को हो जाता है मृत्यु का अहसास
ऐसी मान्यता है कि किन्नरों को एक महीने पहले ही मृत्यु का अहसास हो जाता है और उसके बाद से ही वो खुद को एकांत में ले जाने का प्रयास करते हैं। एकांत में जाने के बाद किन्नर अपने आराध्य से प्रार्थना करते हैं कि उनको इस मृत्यु लोक से जल्द ही मुक्ति मिल जाए और दोबारा उन्हें इस योनि में जन्म न लेना पड़े।
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