Shattila Ekadashi 2024: षटतिला एकादशी का व्रत और दान करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं। षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस एकादशी में तिल का भी बेहद खास महत्व है। पूजा से लेकर दान करने और हवन करने तक, हर चीज़ में तिल का इस्तेमाल किया जाता है।
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षटतिला एकादशी 2024: एक दिन पहले से ही शुरू हो जाती है (Shattila Ekadashi)
षटतिला एकादशी का महत्व
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षटतिला एकादशी के दिन दान पुण्य करने का खास महत्व है। खासकर तिल का, इस एकादशी का व्रत रखने वाले अपनी दिनचर्या में तिल का इस्तेमाल करते हैं। वो तिल से स्नान, तिल का पूजा में इस्तेमाल और तिल की या फिर तिल से बनी मिठाई का दान भी करते हैं।
षटतिला एकादशी की कथा (Shattila Ekadashi Vrat Katha)
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक समय नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम बैकुण्ठ पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा। नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बताया कि, प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। वह मेरी अन्नय भक्त थी और श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी। एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी उपासना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी, इसलिए मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा मांगने गया।
जब मैंने उससे भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया। कुछ समय बाद वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई। यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली कि, मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है। मैंने फिर उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान न बताएं।
स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से षटतिला एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गई। इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि, जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।
षटतिला एकादशी व्रत के नियम
– जो लोग षटतिला एकादशी का व्रत करना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले यानी कि दशमी के दिन से व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए।
– दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण न करें और रात में सोने से पहले भगवान विष्णु का ध्यान करें।
– व्रत के दिन पानी में गंगाजल और तिल डालकर स्नान करना चाहिए।
– दशमी और एकादशी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल का सेवन वर्जित है।
– रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।
– एकादशी के दिन गाजर, शलजम, गोभी और पालक का सेवन न करें।
मनुष्यों को मूर्खता त्याग कर षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिलादि का दान करना चाहिए। इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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