Shri Ram Death Story in Hindi: भगवान् श्री राम का जन्म और उनके वैवाहिक जीवन के संबंध में तो हर किसी को मालूम है। लेकिन जो बात बहुत से लोगों को नहीं मालूम है वो ये हैं कि, श्री राम की मृत्यु कैसे हुई और उन्होनें सीता माता के धरती में समाने के बाद अपना बाकी जीवन कैसे बिताया। रामायण में भी इस खंड का प्रसारण नहीं है, जिसमें राम की मृत्यु दिखाई गई हो। आज इस आर्टिकल के मध्यम से विशेष रूप से हम आपको भगवान् श्री राम की मृत्यु और माता सीता से उनके अलगाव के बाद उनके बाकी जीवन के बारे में बताने जा रहे हैं।
रामायण का वो एपिसोड तो आपने जरूर देखा होगा जिसमें माता सीता भगवान् श्री राम और अपने दोनों बेटों लव और कुश के सामने ही धरती माता से विनती करती हैं कि, वो उन्हें अपनी शरण में लें। माता सीता को धरती में समाने से कोई नहीं रोक पाता, अपने ऊपर लगे लांछन से वो इतनी हद तक दुखी होती है कि, उन्हें धरती लोक में रहने का मन ही नहीं करता है। इसलिए जहाँ से उनका जन्म होता है वो उसी में दोबारा समा जाती हैं । लेकिन इसके बाद श्री राम अपने दोनों बेटों के साथ बाकी का जीवन कैसे व्यतीत करते हैं इसकी जानकारी बहुत से लोगों नहीं है। आपको बता दें कि, सीता माता के धरती में समाने के बाद श्री राम ने काफी सालों तक अयोध्या पर एक कुशल राजा के रूप में शासन किया और अपने दोनों बेटों लव और कुश को राज पाठ के सारे गुण सिखाएं। इस दौरान श्री राम ने अपनी प्रजा के लिए बहुत से ऐसे महत्वपूर्ण काम किए जिससे उन्हें एक कुशल राजा के रूप में पहचान मिली।
शास्त्रों से मिली जानकारी के अनुसार, एक बार श्री राम से मिलने अयोध्या में एक ज्ञानी ऋषि आते हैं। वो भगवान् राम से अकेले में मिलने की आग्रह करते हैं, ऋषि की बात मानकर श्री राम लक्ष्मण से उनके कक्ष में किसी को भी इस दौरान प्रवेश ना करने देने का आदेश देते हैं। श्री राम से मिलने जो ऋषि उनके कमरे में जाते हैं वो असल में काल देव होते हैं। काल देव मुख्य रूप से श्री राम से मिलकर उनके धरती पर समय समाप्त होने की बात बताते हैं। ऋषि श्री राम से उनके वैकुण्ठ लौटने का समय हो चला है इस बारे में बताने आते हैं।
इसी बीच राम जी से मिलने ऋषि दुर्वाशा आते हैं, राम के निर्देशानुसार लक्ष्मण उन्हें उनसे मिलने जाने नहीं देते हैं। इस बात पर उन्हें काफी क्रोध आता है और वो लक्ष्मण को श्राप देने की चेतावनी देते हैं। अब लक्ष्मण सोच में पड़ जाते हैं कि क्या करें, दुर्वाशा ऋषि के श्राप से बचने के लिए लक्ष्मण सरयू नदी में जाकर अपना प्राण त्याग देते हैं। इधर श्री राम को जब लक्ष्मण के बारे में मालूम चलता है तो वो भी सरयू नदी में जाकर इस जीवन को त्याग कर पुनः वैकुंठ लौट जाते हैं।
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