देश विदेश में आपने बहुत से रेस्टोरेंट के बारे में सुना होगा और वहां जाकर खाना भी खाया होगा। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे रेस्टोरेंट के बारे में बताएंगे जो इंसानों के लिए नहीं बल्कि खासतौर पर चील और गिद्धों के लिए बनाया गया है। इसके पहले आपने पालतू जानवरों के लिए रेस्टोरेंट्स के बारे में सुना होगा लेकिन चील और गिद्धों के लिए आप पहली बार किसी रेस्टोरेंट के बारे में सुन रहे होंगे। लेकिन एक ऐसा ही रेस्टोरेंट बनाया गया है, जहां पर चीलों और गिद्धों का स्पेशल मेन्यू होता है।
कानपुर में बना है रेस्टोरेंट [Raptors Restaurant]
बता दें कि चील और गिद्धों के लिए बनाया गया ये रेस्टोरेंट कानपुर के चिड़ियाघर में बनाया गया है। कानपुर के चिड़ियाघर में बनें इस रेस्टोरेंट का नाम रैप्टर्स रेस्टोरेंट हैं। यह रेस्टोरेंट कानपुर जूलॉजिकल पार्क में खोला गया है। इस रेस्टोरेंट को खोलने का मुख्य उद्देश्य कुछ और ही है।
दरअसल, इस रेस्टोरेंट के बनने से एक तो मरने वाले जानवरों के शवों से फैलने वाली गंदगी को फैलने से रोका जाता है, इसके साथ ही गिद्ध और चील जैसे लुप्त होते प्राणियों का संरक्षण करना भी इस रेस्टोरेंट को बनाने का उद्देश्य है। जिससे लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण हो सके। इस रेस्टोरेंट के खुलने से चिड़ियाघर में एक साथ काफी अच्छी संख्या में गिद्ध और चीलों को एकत्रित किया जाना ही इसका एक उद्देश्य है।
तेजी से कम हो रही है गिद्धों की संख्या
चिड़ियाघर के चिकित्सकों के द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार देश में गिद्धों और चीलों की संख्या में काफी गिरावट दर्ज की गई है। जिसके चलते उन्होंने इनके संरक्षण के लिए इस तरह का रास्ता निकाला गया है। चिड़ियाघर के चिकित्सकों का कहना है कि गिद्धों और चीलों के संरक्षण के लिए यह तरीका कुछ हद तक कारगर सिद्ध हो सकता है।
बात करें रैप्टर्स रेस्टोरेंट की तो इसकी बनावट भी काफी खास रखी गई है। यह चारों तरफ से पेड़ों से घिरा हुआ है और बीच में लकड़ी की टहनियां लगा कर खुले आसमान के नीचे बनाया गया है। इसकी इस बनावट के पीछे की वजह है जिससे की यहां पर खाने के लिए आने वाले पक्षियों को कुछ भी बनावटी ना लगे। जिस तरह से वो जंगलों में जाकर भोजन करते हैं ठीक उसी प्रकार का इस रेस्टोरेंट को बनाया गया है।
रूकने की भी है सुविधा
इस तरह से बनाए गए इस रेस्टोंरेट के पीछे एक मकसद ये भी है कि इन पक्षियों को यहां पर रूकने की भी पूरी सुविधा मिलती है। जू के सफारी एरिया में रेस्टोरेंट का स्थान तैयार किया गया है। वहीं उनको वहां पर रोके रहने के लिए पास में ही एक तालाब का निर्माण भी किया गया है। ताकि वो मांस खाकर उड़ ना जाएं।
चिड़ियाघर में काम करने वाले चिकित्सकों ने बताया कि पहले उन्होंने चील और गिद्धों के संरक्षण के लिए जू के अलग-अलग हिस्सों में मांस के टुकड़े डाले थे। लेकिन ऐसा करने से दुर्गंध और संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ गया था। इसके साथ ही बरसात के दिनों में इस कार्य में काफी दिक्कतें आती थी। जिसके बाद इस तरह से एक ही जगह पर रेस्टोंरेट बनाकर एक साथ मीट को डाला जाने लगा। इसी के साथ संक्रमण और गंदगी जैसी परेशानियों से भी छुटकारा मिल गया। वैसे इस रेस्टोरेंट को बनाने का मुख्य उद्देश्य चिड़ियाघर में आने वाले गिद्ध, कोल गिद्ध और दुर्लभ प्रजाति के ग्रिफॉन का संरक्षण करना है।
जूलॉजिकल पार्क के निदेशक दीपक कुमार का कहना हैं कि जंगल सफारी के कोने पर चबूतरे की तरह खुला स्थान है जिसके आसपास चारों ओर से दीवार बनाई गई है। अंदर मांस के टुकड़े डाल दिए जाते हैं और इसकी ऊपरी सतह भी खुली है ताकि चिड़ियाघर में आने वाले गिद्ध, चील, शिकरा आदि खाना खाने के बहाने यहां आएं, नेस्टिंग करें और यहां रहने लगें।
झांसी में भी है ऐसा रेस्टोरेंट
बता दें कि गिद्धों और चीलों की विलुप्त होती प्रजातियों को बचाने के लिए झांसी में भी एक ऐसा ही रेस्टोरेंट बनाया गया है। झांसी में बने इस रेस्टोरेंट को मुर्दाखोरों के रेस्टोरेंट के नाम से जाना जाता है। यहां पर गिद्धों को खाने के लिए डेडबॉडी दी जाती है। झांसी के बुंदेलखंड में इस रेस्टोरेंट को बनाया गया है। इस रेस्टोरेंट को वल्चर (गिद्ध) रेस्टोरेंट का नाम दिया गया है।
बता दें कि लोग यहां पर आकर के मरे हुए जानवरों की डेड बॉडी दे जाते हैं और जरूरत पड़ने वाले फॉरेस्ट विभाग द्वारा मुर्दे यानी जानवरों की डेडबॉडी गिद्धों के लिए उपलब्ध कराई जाती हैं। यह रेस्टोरेंट 1200 हेक्टेयर में फैला हुआ है। वहीं सिर्फ झांसी और कानपुर ही नहीं बल्कि देश के अन्य कई राज्यों में भी सरकार ने इस तरह के रेस्टोरेंट को खोलने की अनुमति दे दी है। ललितपुर का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है।