इन दिनों लोग जहां पढ़ लिखकर बाहर जाकर पैसा कमाना चाहते हैं वहीं आज के समय में भी कुछ लोग हैं जो देश के लिए कुछ करना चाहते हैं। शाहरूख खान की फिल्म स्वदेश तो आपने देखी ही होगी। शाहरूख देश के बाहर काम करते हैं लेकिन जब वो अपने देश वापस लौटते हैं तो अपने देश की मिट्टी से उन्हें प्यार हो जाता है और वो भारत वापस आ जाते हैं। इसी से मिलती जुलती एक घटना घटित हुई है मध्य प्रदेश में। जी हां, वहां पर कुछ युवाओं ने मिलकर एक काम शुरू किया और आज वो काम उस जगह पर पहुंच गया जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते।
स्टार्ट अप से शुरू हुई कहानी
मध्यप्रदेश के इंदौर में आइआइटी और आइआइएम से पढ़े हुए कुछ छात्रों ने मिलकर ग्रामोफोन स्टार्टअप किया जो कि किसानों के लिए एक बहुत ही अच्छा विकल्प साबित हुआ। इस स्टार्टअप से ना सिर्फ किसानों की जीविका को बचाया बल्कि इसके साथ ही जमीन को रसायनों से होने वाली मार से भी राहत दिलाई। यानि कि एक साथ दो काम किए। ग्रामोफोन का मुख्य काम किसानों को महंगे रसायनों के उपयोग से बचाकर उनकी आय में वृद्धि करना है। तीन साल में छह लाख रुपये से शुरू हुए इस स्टार्टअप ने आज 100 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है।
नौकरी के बेहतरीन अवसर मिले
आईआईटी और आइआइएम जैसे संस्थानों से पढ़ाई करके निकलने वालों के पास नौकरी के अच्छे विकल्प होते हैं। ये विकल्प ग्रामोफोन का स्टार्टअप करने वाले इन छात्रों को भी मिले। लेकिन उन्होंने इन सबको किनारे रख कर कृषि और ग्रामीण क्षेत्र में उद्यम की संभावनों को चुना।
ग्रामोफोन के संस्थापक तौसीफ खान ने बताया कि जब वो पढ़ाई कर रहे थे तभी उन्होंने तय कर लिया था कि वो किसी कंपनी में नौकरी ना करके गांवों, किसानों और पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ बड़ा काम करना चाहते है। क्योंकि उनका परिवार भी गांव और किसानी की पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखता है इसलिए उनको इस काम को करने की चाह और भी बढ़ गई थी। क्योंकि किसानों को आने वाली परेशानियों से वो भली भांति वाकिफ थे।
तौसीफ ने बताया कि आइआइटी खड़गपुर के बाद आइआइएम अहमदाबाद में भी उन्होंने अपने इस सपने को लेकर के कई लोगों से बात की कि वो किस तरह से क्या करें कि किसानों की परेशानियां दूर हो जाएं। जिसके चलते साल 2016 में उन्होंने मध्यप्रदेश के किसानों से जुड़ने का काम शुरू किया और इन्हीं सबके दौरान उन्होंने इंदौर में ऑफिस की स्थापना की।
चार लोगों ने मिलकर शुरू किया प्रोजेक्ट
तौसीफ ने बताया कि, “निशांत वत्स, हर्षित गुप्ता, आशीष सिंह और मैं, पहले हम चार पार्टनर थे, फिर 50 लोगों की टीम के साथ आसपास के कई गांवों में दायरा बढ़ाया। वहां खेती करने में आ रही परेशानियों को जाना। कुछ महीने पहले ही कंपनी को 24 करोड़ रुपये की फंडिंग भी मिली है। इस समय कंपनी की वैल्यू 100 करोड़ की हो गई है”।
6 लाख से शुरू हुई थी कंपनी, आज 100 करोड़ के मालिक
तौसीफ ने बताया कि कंपनी की शुरुआत मात्र छह लाख रुपये से हुई थी। फसल में अगर बीमारी लग जाए तो इसके लिए कौन सा कीटनाशक कारगर है, किस कीटनाशक या खाद की कितनी मात्रा कब उपयोग की जानी चाहिए, इसका मृदा आधारित समुचित अध्ययन हम किसानों को मुहैया कराते हैं। जब पहली फसल आई तो पता लगा कि कम लागत में किसानों का 40 फीसदी तक प्रोडक्शन बढ़ गया। लागत 20 फीसद कम हो गई। यह बात एक गांव से दूसरे में तेजी से फैली और एक साल में हमसे 5 हजार किसान जुड़ गए। किसानों के तरह-तरह के सवाल का जवाब देने के लिए कॉल सेंटर भी स्थापित किया गया है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी बेस्ड ऐप भी है।
कई राज्यों में है ग्रामोफोन की सुविधा
बता दें कि मध्यप्रदेश से शुरू हुई ये योजना आज सिर्फ मध्य प्रदेश नहीं बल्कि छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित अन्य भी कई राज्यों में हैं और आज इसके साथ तकरीबन 2.50 लाख से ज्यादा किसान जुड़ चुके हैं। तीन साल में इस योजना से अब तक तकरीबन 6 लाख किसानों को फायदा मिल चुका है। आंकड़ों के अनुसार हर दिन 3 हजार किसान अपनी समस्याओं को लेकर के उनसे संपर्क करते हैं। वहीं जो किसान स्मार्टफोन का उपयोग नहीं करते हैं उनके लिए मिस्ड कॉल की सुविधा भी उपलब्ध है, वह किसी भी बेसिक फोन से भी मिस्ड कॉल देकर अपनी समस्या का समाधान पा सकते हैं।
तौसीफ खान का कहना है कि हमारा मकसद देश में कृषि का ऐसा सिस्टम बनाना है, जिससे किसान कीटनाशक और अन्य प्रक्रिया को लेकर उलझन में न रहे। बाजार में कई तरह की कीटनाशक, खाद और बीज कंपनियां बेचती है। कई बार किसान को जानकारी नहीं होती और उसे नुकसान उठाना पड़ता है। हम किसानों के लिए इस तरह का सिस्टम बना देंगे, जिससे वे खुद जान जाएंगे कि देश में कितने किसान क्या कीटनाशक और किस खाद का उपयोग कर रहे हैं और उन्हें इससे कितना फायदा मिल रहा है। इसके रिव्यू, फीडबैक और सभी तरह की जानकारी इंटरनेट या डाटा के रूप में कहीं स्टोर होने से किसानों का समय और पैसा बर्बाद नहीं होगा।
तौसीफ और उनके साथियों द्वारा शुरू की गई ये पहल किसानों के लिए काफी लाभदायी साबित हुई है। इसका फायदा किसानों को मिल रहा है और इसके साथ ही उनको अपनी कमाई को बेहतर तरीके और सही तरीके से खर्च करने की सही जानकारी भी मुहैया हो रही है।