नवरात्रि के नौवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि माता सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां देती है। नवरात्रि के आखिरी तीन दिन माता सरस्वती को समर्पित होते हैं। माता सिद्धिदात्री को माता सरस्वती का रूप भी माना जाता है। समस्त प्रकार की सिद्धियां इनके अधीन होती है। नवरात्रि 2018 में माता सिद्धिदात्री की पूजा 18 अक्टूबर को होगी। मार्कण्डेयपुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्व आठ सिद्धियाँ बतलायी गयी है। भगवती सिद्धिदात्री उपरोक्त संपूर्ण सिद्धियाँ अपने उपासको को प्रदान करती है। माँ दुर्गा के इस अंतिम स्वरूप की आराधना के साथ ही नवरात्र के अनुष्ठान का समापन हो जाता है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियाँ होती हैं और माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था और इनकी कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए।
मां सिद्धिदात्री का रूप
माता सिद्धिदात्री का स्वरूप बहुत सौम्य और आकर्षक है। उनके चार हाथ हैं। एक हाथ में चक्र, एक हाथ में गदा, एक हाथ में कमल का फूल और एक हाथ में शंख लिया हुआ है। माता की आराधना करने से सभी प्रकार के ज्ञान सुलभता से मिल जाते हैं। माता की आराधना करने वालों को कभी कोई कष्ट नहीं होता है। यह नवरात्रि का आखिरी दिन है। इसके बाद का दिन दशहरा मनाया जाता है।
माँ सिद्धिदात्री के मंत्र –
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माँ सिद्धिदात्री की आरती:
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता। तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥
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