Campaign Against Child Marriage: हमारे बीच ऐसे कई लोग हैं, जो अपने एक छोटे से प्रयास से समाज में फैली बड़ी-बड़ी बुराइयों का अंत कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही अंदाज है समाज सेविका बसंती बहन का। जो पिछले कई सालों से पहाड़ों पर पर्यावरण और लोगों का जीवन बेहतर बनाने में जुटी हुई हैं।
कम उम्र में ही टूटा दुखों का पहाड़
बसंती बहन मूल रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की रहने वाली हैं। उनकी शादी बचपन में ही हो गई थी और वह महज 12 साल की उम्र में ही विधवा हो गई थईं। जिसके बाद उन्होंने पिता के सहयोग से अपनी पढ़ाई शुरू की और ज्य में फैली बाल विवाह जैसी कुरीतियों को मिटाने के लिए अभियान छेड़ा। अभी तक उनके अथक प्रयास से लाखों बच्चियों का जीवन संवर चुका है। वह एक अध्यापिका भी हैं और अपनी ड्यूटी खत्म कर वह महिलाओं के हक के लिए काम करती हैं।
रंग लाई मेहनत (Campaign Against Child Marriage)
आपको बता दें कि बसंती बहन के अथक प्रयास से ही राज्य में बाल विवाह एक्ट (Child Marriage Act) सख्ती से लागू हो सका है। राज्य में लगभग दो साल पहले एक बाल विवाह के केस में प्रेग्नेंसी के दौरान एक बच्ची का निधन हो गया था, जिस पर नैनीताल हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कानून को लागू करने का निर्देश दिया था। साथ ही हर जिले में एक बाल विवाह को रोकने के लिए नोडल अधिकारी रखने का भी आदेश दिया था।
इसके साथ ही बसंती बहन राज्य में महिला सशक्तिकरण के लिए भी आवाज उठा रही हैं। इसके अलावा उन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए साल 2003 में कोसी बचाओ अभियान छेड़ा था, जिसका मुख्य लक्ष्य कोसी नदी को सूखने से बचाना था। इस अभियान के तहत सैकड़ों महिलाओं और ग्रामीणों ने नदी के किनारे जल संरक्षण में लाभदायक पेड़ लगाए। जिसका असर ये हुआ।
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राष्ट्रपति ने किया सम्मानित
बसंती बहन के इन सराहनीय कार्यों और समाज से बुराई मिटाने के प्रयासों को लेकर उन्हें साल 2016 में राष्ट्रपति ने नारी शक्ति अवॉर्ड से सम्मानित किया था। वहीं बसंती बहन का कहना है, ‘मैं जब भी किसी परिवार को बाल विवाह न करने के प्रति राजी कर लेती हूं तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मैंने बहुत बड़ी चीज हासिल कर ली है। बच्चियों का जीवन सुधारने में मैं निरंतर लगी रहूंगी।’