Paneer Village: अमूमन लोग काम की तलाश में रोजी रोटी का जुगाड़ करने अपने पैतृक गांव को छोड़कर बाहर चले जाते हैं। ऐसे में उन्हें अपनों से भी दूर होना पड़ता है। स्कूपव्हूप की एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसा ही कुछ मसूरी के पास टिहरी(Tehri Garhwal) जिले के रौतु में बेली गांव के लोगों के साथ भी हो रहा था। जब गांव में रोजगार का कोई अवसर नहीं मिला तो लोगों ने वहां से पलायन करना शुरू कर दिया। लेकिन यहाँ के लोगों की किस्मत कुछ ऐसी चमकी की उन्हें कहीं जानें की जरुरत नहीं पड़ी। आइये जानते हैं क्या है पनीर गांव की कहानी।
गांव के लोगों ने मेहनत और लगन से चुनौतियों को अवसर में बदला
किसी ने सच ही कहा है जहाँ चाह वहां राह। अगर आपके अंदर कुछ करने की मंशा हो तो आपको कोई नहीं रोक सकता है। ऐसा ही कुछ इस गांव के लोगों ने भी कर दिखाया। माना जाता है कि, एक समय ऐसा भी था जब इस गांव में लोगों की आमदनी का माध्यम केवल खेती और पशु पालन ही था। यहाँ के लोग मसूरी(Mussoorie) या देहरादून(Dehradun) जाकर दूध बेचने का भी काम किया करते थे। इसी दौरान लोगों को मसूरी में पनीर बेचने वालों को देख उन्हें भी इस बात का ख़्याल आया। शुरुआत में महज प्रयोग के तौर पर पनीर बेचने का काम शुरू किया गया जो आगे चलकर एक बड़े बिजनेस में बदल गया। आज आलम यह है कि, रौतु बेली गांव को पनीर गांव(Paneer Village) के नाम से जाना जाता है। गांव का हर एक परिवार हर महीने पनीर और दूध से बनी अन्य चीजों को बेचकर 15 से 35 हज़ार तक कमा लेते हैं। इस गांव में केवल 250 परिवार है जिनकी आबादी लगभग दो हज़ार के करीब बताई जाती है।
मसूरी के लोगों का पसंदीदा है इस गांव का बना पनीर
खासतौर से मसूरी के लोगों को इस गांव के लोगों के हाथों का बना पनीर(Paneer Village) बेहद पसंद आता है। यही कारण है कि, यहाँ धीरे-धीरे पनीर की मांग काफी बढ़ने लगी और इससे गांव वालों को रोजगार भी मिलने लगा। पहले गांव के कुछ ही 40 से 50 परिवार ही पनीर बनाने का काम करते थे लेकिन अब अमूमन हर परिवार इसी बिजनेस में लिप्त है। एक परिवार एक दिन में दो से चार किलो तक पनीर तैयार कर लेता है। इसे मार्केट में बेचकर उन्हें अच्छी आमदनी होती है, एक किलो पनीर लगभग 250 रूपये का बिकता है