शरद नवरात्रों(Navratri) को हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है, जिसे दुर्गा पूजा भी कहते हैं। इस साल शरद नवरात्रे 17 अक्टूबर से लेकर 25 अक्टूबर तक चलेंगे।
भारत के सबसे शुभ त्योहारों में से एक शरद नवरात्रि(Sharad Navratri) में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इसलिए इसे दुर्गा पूजा भी कहा जाता है। इस नौ दिवसीय महोत्सव के दौरान भक्त देवी के विभिन्न अवतारों की पूजा-अर्चना करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन नौ दिनों में जो भी व्यक्ति सच्चे मन से मां दुर्गा की आराधना करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। यह पर्व बताता है कि झूठ कितना भी बड़ा और पाप कितना भी ताकतवर क्यों न हो अंत में जीत सच्चाई और धर्म की ही होती है। इस साल यह पर्व 17 अक्टूबर से शुरू होकर 25 अक्टूबर तक चलेगा। आइए जानते हैं इस साल किस समय पूजा करना होगा शुभ और क्या है पूजा की विधि।
(Navratri)महत्वपूर्ण तिथियां:
17 अक्टूबर से शुरू होने वाली इस नवरात्र पूजा(Navratri Pooja) का समापन नौ दिन बाद यानी 25 अक्टूबर को होगा।
- 17 अक्टूबर- प्रतिपदा, घटोत्कच, शैलपुत्री पूजा
- 18 अक्टूबर- द्वैतिया, चंद्र दर्शन, ब्रह्मचारिणी पूजा
- 19 अक्टूबर- तृतीया, सिंदूर तृतीया, चंद्रघंटा पूजा
- 20 अक्टूबर- चतुर्थी, कुष्मांडा पूजा, विनायक चतुर्थी, उपांग ललिता व्रत
- 21 अक्टूबर- पंचमी, स्कंदमाता पूजा, सरस्वती अहान
- 22 अक्टूबर- षष्ठी, कात्यायनी पूजा, सरस्वती पूजा
- 23 अक्टूबर- सप्तमी, कालरात्रि पूजा
- 24 अक्टूबर- अष्टमी, दुर्गा अष्टमी, महागौरी पूजा, संधी पूजा, महानवमी
- 25 अक्टूबर- नवमी, अयुधा पूजा, नवमी होमा, नवरात्र परणा, विजयादशमी
- 26 अक्टूबर- दशमी, दुर्गा विसर्जन
कलश स्थार्पण:
17 अक्टूबर को आश्विन मास के शुक्ल पक्ष का प्रतिपदा दिन कलश स्थापना करने के लिए सबसे शुभ समय है। कलश स्थापना करने का सबसे शुभ मुहूर्त सुबह 06:27 से लेकर सुबह 10:13 बजे तक है। कलश स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:44 से 12:29 बजे तक रहेगा।
पूजा सामग्री:
लाल चुनरी या लाल कपड़ा, साज-सजावट का सामान, दीपक, घी/तेल, माचिस, चौकी, नारियल, कलश, चावल, कुमकुम, फूल, धूपबत्ती और अगरबत्ती, फूल हार, देवी की फोटो या मूर्ति, पान, सुपारी, लाल झंडा, लौंग-इलायची, बताशे, कपूर, मीठे फल, कलावा और ड्राई फ्रूट्स।
पूजा और कलश स्थापक विधि:
- नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह उठकर स्नान कर लें।
- उसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करें और सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम की अखंड ज्योत जलाएं।
- कलश स्थापना करने के लिए एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं।
- अब एक तांबे के लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें और लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं।
- इस लोटे में गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाकर पानी भर दें और इस पानी में सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डाल दें।
- इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगा दें।
- अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसपर मौली बांध दें और फिर इस नारियल को कलश के ऊपर रख दें।
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- अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के बीचों बीच रख दें जिसमें आपने जौ बोएं थे।
- कलश स्थापना के वक्त ही नवरात्रि(Navratri) के नौ दिन व्रत रखने का संकल्प लिया जाता है।
- आप चाहें तो कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योत भी जला सकते हैं।