गुरु नानक देव जी ने सिख पंथ की स्थापना की थी। सिखों का प्रथम गुरु उन्हें कहा जाता है। गुरु नानक देव जी को एक बार 20 रुपये उनके पिता ने देकर कहा था कि जाओ कोई व्यापार कर लो, मगर गुरु नानक देव जी ने इन पैसों से गरीबों को भोजन खिला दिया था। जब उनके पिताजी ने उनसे सवाल किया था कि नानक कि सौदा कित्ता यानी कि तुमने क्या व्यापार किया, तो इसका जवाब गुरु नानक ने बड़ी ही खूबसूरती से दिया था कि मैं सच्चा सौदा कित्ता यानी कि मैंने सच्चा व्यापार किया है।
लॉकडाउन की वजह से जब देशभर में जिंदगी पटरी से उतर चुकी है और भोजन-पानी की किल्लत गरीब झेल रहे हैं तो ऐसे में बहुत से लोग हैं, जो इनकी मदद करने से जरा भी पीछे नहीं हटे हैं। इन्हीं में से एक 81 साल के सिख भी हैं, जो सच्चा सौदा कर रहे हैं। जी हां, गुरु का लंगर वे भूखों को चखा चुके हैं। इन्होंने 20 लाख से भी अधिक लोगों को लॉकडाउन के दौरान लंगर चखाकर उनका पेट भरा है।
यहां कराते हैं लंगर (Meet this 81 year Old Sikh Who Feeds 20 Lakhs People on Highway)
भूखों को लंगर चखाने वाले 81 साल के इस सिख का नाम बाबा करनैल सिंह खैंरा है। महाराष्ट्र के एक दूर-दराज के हाईवे पर वे लोगों को लंगर चखाते हैं। हाईवे पर यदि भोजन का कोई स्रोत है तो वह सिर्फ करनैल सिंह द्वारा बांटा जाने वाला लंगर ही है। एनएच-7 पर जब आप करणजी पार करते हैं तो उसके बाद गुरु का लंगर आपको मिल जाता है, जहां कि लोगों को बिना कोई शुल्क अदा किए भोजन कराया जाता है।
नहीं मिलता 300 किमी तक कुछ भी
गुरु के लंगर पर रुक कर यदि आप इस हाइवे पर इसे नहीं चखते हैं तो अगले 300 किलोमीटर तक आपको कोई भी रेस्टोरेंट या फिर खाने का कोई भी ठिकाना नहीं मिलने वाला है। यही वजह है कि चाहे ट्रक चालक हों या फिर अन्य यात्री, जो भी यहां से गुजर रहे होते हैं, वे गुरु का लंगर चखने के लिए यहां जरूर रुकते हैं। करनैल सिंह भी बताते हैं कि यह पूरी तरीके से एक सुनसान आदिवासी इलाका है। यहां से पीछे 150 किलोमीटर आप बढ़ें या फिर आगे 300 किलोमीटर, आपको एक भी ढाबा या फिर रेस्टोरेंट यहां नहीं मिलने वाला। ऐसे में लोग गुरु का लंगर चखने के लिए यहां रुकते हैं। लंगर चखने के बाद ही वे आगे की यात्रा करते हैं।
गुरु के लंगर का इतिहास
अब जानते हैं गुरु के इस लंगर का इतिहास। इस हाइवे से 11 किलोमीटर अंदर जंगल में बागोर साहिब गुरुद्वारा स्थित है, जिसे कि सिखों का ऐतिहासिक गुरुद्वारा माना जाता है। सिखों के 10वें गुरु गुरु गोविंद सिंह 1705 में नांदेड़ जाने के दौरान यहीं रुके थे। करनैल सिंह बताते हैं कि हाईवे से बागोर साहिब गुरुद्वारे की दूरी अधिक है। इसी कारण से हाईवे पर 1988 में लंगर के इस ब्रांच को शुरू किया गया था। बाबा नरेंद्र सिंह जी और बाबा बलविंदर सिंह जी ने तब उन्हें लोगों की सेवा करने का यह अवसर प्रदान किया था।
लॉकडाउन में भी नहीं रुका लंगर
लॉकडाउन के दौरान भी करनैल सिंह और उनकी टीम प्रवासी मजदूरों के साथ ट्रक चालकों और कई गांववालों को भी यहां लंगर चखाती रही। करनैल सिंह के मुताबिक भोजन बनाने के अलावा बाकी काम में कई लोगों से उन्हें मदद मिली है। उनकी नियमित टीम में 17 सेवादार हैं और इनमें से 11 कुक हैं। लॉकडाउन में सभी ने अन्य दिनों की तुलना में ज्यादा काम किया है। करनैल सिंह के मुताबिक अमेरिका में रहने वाले एक भाई ने भी लॉकडाउन के दौरान उनकी बड़ी मदद की। उनकी टीम इंसानों के अलावा इस इलाके के 250 कुत्तों, बिल्लियों और आवारा गायों को भी भोजन कराती है।
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