बड़ा लक्ष्य हमेशा फौलादी इरादों से ही हासिल होता है। चाहे आपके साथ परिस्थितियां कितनी भी विषम क्यों न रहें। यदि आप यह ठान लेते हैं कि आपको जिंदगी में कुछ बड़ा हासिल करना है तो मेहनत आप करते हैं और रास्ते खुद-ब-खुद निकलते चल जाते हैं। साल 2010 बैच के आईएएस अफसर गंधम चंद्रुडू इसका जीता-जागता उदारहण हैं। चंद्रुडू के परिवार में उनसे पहले की पीढ़ी ने कभी भी शिक्षा का मुंह नहीं देखा था। आंध्र प्रदेश के करनूल के कोटपाडु गांव के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले चंद्रुडू सिविल सर्विस की परीक्षा उत्तीर्ण करने से पहले दक्षिण मध्य रेलवे जोन में टिकट कलेक्टर के पद पर सेवा दे रहे थे। वर्तमान में वे अनंतपुर जिले में जिला कलेक्टर का दायित्व संभाल रहे हैं।
महज 18 वर्ष में टिकट कलेक्टर
चंद्रुडू के मां-बाप ने खेतों में दिहाड़ी मजदूरी की है। चंद्रुडू अपने घर में पहले व्यक्ति हैं, जो सरकारी नौकरी में गये। पांचवीं तक की पढ़ाई उन्होंने अपने गांव के ही एक स्कूल से की और फिर जवाहर नवोदय विद्यालय का टेस्ट पास करने के बाद उन्हें यहां दाखिला मिल गया। फिर जिला स्तर के एक और टेस्ट में उत्तीर्ण होने के बाद उन्हें करनूल के बनवासी गांव के जेएनवी स्कूल में प्रवेश मिल गया। दसवीं पास करने के बाद रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड की परीक्षा उन्होंने पास की। वोकेशनल कोर्स किया और फिर रेलवे में नौकरी पा ली। महज 18 वर्ष की उम्र में टिकट कलेक्टर बन गये। फुल-टाइम जॉब करने की वजह से उच्चतर शिक्षा इन्होंने इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से हासिल की।
कुछ बड़ा करने की चाहत
टिकट कलेक्टर की नौकरी से वे ऊब रहे थे ओर कुछ बड़ा करना चाहते थे। ऐसे में नौ वर्ष बीत जाने के बाद उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में किस्मत आजमाने की ठान ली। चंद्रुडू कहते हैं कि जेएनवी में फीस कम लगने से पैसे बचाकर उन्होंने जो किताबें खरीदी थीं, उन किताबों से उनकी तैयारी की नींव तैयार हो गई। मां-बाप का भी पूरा भावनात्मक सहयोग मिला। तैयारी उन्होंने 2009 से शुरू की। ज्यादा छुट्टी लेना मुमकिन नहीं था तो सुपरवाइजर से कहकर नाइट शिफ्ट ले लिया, ताकि पढ़ाई कर सकें। चंद्रुडू के अनुसार उन्होंने कम ही पढ़ा, मगर फोकस करके पढ़ा। एक साल तक गंभीरता से रोजाना पढ़ाई कर ली और ऑल इंडिया रैंक 198 हासिल किया। इसके बाद उन्हें आंध्र प्रदेश कैडर ही मिल गया।
बढ़ाया मतदान प्रतिशत
पूर्वी गोदावरी जिले के रंपचोड़वरम से उन्होंने अपने काम की शुरुआत की। यहां कोंडाकपू, कोंडारेड्डी, कोंडा डोरा, वाल्मीकि और कोंडाकम्मारा जैसे आदिवासी समुदायों के लोग रहते हैं। आजादी के बाद कभी भी वोट नहीं डालने वाले करीब 20 हजार आदिवासी मतदाताओं के पंजीकरण की प्रक्रिया का इन्होंने सितम्बर, 2012 से फरवरी 2014 तक नेतृत्व किया। चंद्रुडू के मुताबिक मतदान का प्रतिशत इस विधानसभा क्षेत्र में इससे पहले कभी 60 प्रतिशत से ऊपर नहीं गया था, मगर उनके द्वारा अभियान चलाने के बाद यह बढ़कर 77 फीसदी हो गया था। यहां एक साल के अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने सड़क और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं लोगों के लिए सुनिश्चित तो की ही, साथ ही नरेगा के जरिये उनके लिए रोजगार की भी व्यवस्था की।
अब अनंतपुर के लिए
जब चंद्रुडू ने ज्वाइंट कलेक्टर के तौर पर विजयवाड़ा में 2015 से 2018 तक सेवा दी, वहां इन्होंने वर्ष 2016 में कुंभ मेले के समान कृष्ण पुष्करन का सफल आयोजन करवाया। अनंतपुर में जिला कलेक्टर के तौर पर वे इस अर्ध-शुष्क इलाके में पौधारोपण बड़े पैमाने पर कराने की कोशिशों में लगे हैं। चेन्नई-बेंगलुरु जैसे औद्योगिक शहरों के बीच पड़ने वाले इस इलाके में आर्थिक स्तर को वे ऊपर उठाना चाह रहे हैं। चंद्रुडू के अनुसार यहां संसाधनों की प्रचुरता है। ऐसे में जिले की क्षमता बढ़ाना मुमकिन है और उन्होंने इसे सुनिश्चित करने की ठान ली है। अत्यंत निर्धन परिवार से आकर और एक सामान्य टिकट कलेक्टर से जिला कलेक्टर बनकर समाज में अपने स्तर पर बदलाव करने की कोशिशों में लगे गंधम चंद्रुडू की कहानी वास्तव में युवाओं को प्रेरित करने वाली है।