Seema Verma Funding: कुछ करने के लिए सच्ची नीयत की जरूरत पड़ती है। जिस बदलाव की हम बात करते हैं, उस बदलाव को खुद से लाने की हिम्मत यदि दिल में हो तो हर मुश्किल आसान बन जाती है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की 27 साल की सीमा वर्मा ने कुछ ऐसा ही किया है। इन्होंने एक-एक रुपया जमा करके तीन वर्षों में दो लाख रुपये जमा कर लिये और अब 33 बच्चों के स्कूल की फीस भर रही हैं। साथ ही वे कानून की पढ़ाई भी कर रही हैं। मूल रूप से अंबिकापुर की निवासी सीमा अपनी ‘एक रुपया मुहिम’ के बारे में बताती हैं कि वे स्कूलों-कॉलेजों एवं अन्य संस्थानों में जाती रहती हैं और वहां स्टूडेंट्स के साथ टीचर्स को भी जागरूक करती हैं। वे बताते हैं कि केवल एक रुपया देकर वे किसी का कितना भला कर सकते हैं।
ऐसे हुई शुरुआत (Seema Verma Funding Poor children education india)
सीमा के मुताबिक उन्होंने अपने इस अभियान का आगाज वर्ष 2016 में 10 अगस्त को सीएमडी कॉलेज से किया था। पहले दिन उनके पास 395 रुपये जमा हुए थे। राशि कम जरूर थी, मगर इससे सीमा न केवल एक सरकारी स्कूल की जरूरतमंद छात्रा की फीस भर पाने में सफल हो पाई थीं, बल्कि उसके लिए कुछ स्टेशनरी भी उन्होंने खरीद ली थी। तभी उन्हें एहसास हुआ कि किसी भी तरह के योगदान को छोटा नहीं कहा जा सकता। छोटी-छोटी कोशिशें ही मिलकर आखिरकार बड़ा बदलाव लाती हैं। सीमा के अनुसार एक दिव्यांग दोस्त के लिए ट्रायसाइकिल खरीदने के लिए उन्होंने कॉलेज प्रशासन के बहुत चक्कर काटे, लेकिन उनकी ओर से कोई मदद नहीं मिलने पर उन्हें एक मैकेनिक से पता चला कि सरकार की एक योजना के अंतर्गत दिव्यागों को यह ट्रायसाइकिल एक एप्लीकेशन फॉर्म भरके निःशुल्क मिल जाती है। सीमा के मुताबिक मैकेनिक के ऐसा कहने पर कि ग्रेजुएशन करके भी आपको नहीं मालूम है, उन्हें यह बात बहुत चुभी कि जागरूकता की अपने घर में कितनी कमी है।
जागरूकता मुहिम
सीमा कहती हैं कि बस तभी से उन्होंने युवाओं को जागरूक बनाने की ठान ली और इसे लेकर सबसे पहला सेमिनार उन्होंने अपने काॅलेज में ही किया। जब चर्चा हुई तो ऐसे कई मुद्दे सामने आने लगे, जिन पर बात करने और जिनके बारे में जानकारी होने की आवश्यकता महसूस हुई। जो भी बच्चे या युवा इस इवेंट में भाग लेने आते थे, उनसे उन्होंने एक-एक रुपया दान करने के लिए कह दिया। धीरे-धीरे सीमा का यह विचार मुहिम में तब्दील होने लगा। स्कूलों-काॅलेजों में जाकर सीमा ने मोटिवेशनल स्पीच देने के दौरान सेमिनार में भाग लेने वाले प्रतिभागियों से एक-एक रुपये लेकर तीन साल में दो लाख रुपये जमा कर लिये। इन पैसों से सीमा 33 जरूरतमंद बच्चों के स्कूल की फीस भर पा रही हैं। यही नहीं, उनके लिए किताब-कॉपी के साथ अन्य जरूरी स्टेशनरी की भी व्यवस्था कर पा रही हैं।
कारवां बढ़ता गया
सीमा के अनुसार धीरे-धीरे इन जरूरतमंद बच्चों के बारे में कभी सीधे तौर पर तो कभी सोशल मीडिया के जरिये जानकारी मिलनी शुरू हो गई। अलग-अलग स्कूलों में ये बच्चे पढ़ रहे हैं। सीमा बताती हैं कि वे गरीब परिवारों से नाता रखने वाले इन बच्चों की फीस भरकर बहुत ही सुकून महसूस करती हैं और नेकी वाला यह काम जिंदगीभर करना चाहती हैं। सीमा कहती हैं कि रास्ते में कुछ कांटे भी मिले। शुरुआत में बहुत से लोगों ने यह कोशिश भी की कि उनका मनोबल टूट जाए। जैसे कि अपने ही काॅलेज में कई बार सेमिनार करने के दौरान उन्हें स्टूडेंट्स से अपनी आलोचना सुननी पड़ी। कई को लगा कि वे यह काम लोकप्रियता हासिल करने के लिए कर रही हैं। सीमा के मुताबिक कई बार उन्होंने कुछ लोगों द्वारा उन्हें भिखारी बुलाते हुए भी सुना।
खुद बनें बदलाव
सीमा कहती हैं कि धीरे-धीरे जब मुहिम असर दिखाने लगी तो लोगों को खुद जवाब मिलने लगा। अब तो मदद लेने वाले और मदद देने वाले दोनों उनके पास आते हैं। वे लोगों से यही कहती हैं कि यह जरूरी नहीं कि आप मुझे पैसे देकर ही मदद करें। मेरा तो यही कहना है कि आप जहां हैं, वहीं किसी जरूरतमंद की मदद कीजिए। इससे वह बदलाव आने लगेगा, जिसकी आप अक्सर बातें करते हैं, जिसकी आप अक्सर उम्मीद करते हैं।
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