Tapaswini Das: अपने मन में जो लोग कुछ करने की ठान लेते हैं और जिनके इरादे बेहद मजबूत होते हैं, किसी भी प्रकार की समस्या जिंदगी में उन्हें आगे बढ़ने से नहीं रोक पाती है। उड़ीसा की तपस्विनी दास भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं, जिनके साथ जिंदगी की शुरुआत में ही एक बड़ा हादसा हो गया, पर इसके बावजूद हिम्मत ना हारते हुए उन्होंने उस सपने को सच करके दिखाया जो वे देख रही थीं।
चली गई आंखों की रोशनी
तपस्विनी 7 साल के थीं। सामान्य जिंदगी उनकी चल रही थी। रोज स्कूल जाती थीं। बाकी बच्चों के साथ खेलती थीं। बहुत खुश रहती थीं, लेकिन एक बार उनकी आंखों का ऑपरेशन किया गया। डॉक्टरों ने ऐसी लापरवाही बरती कि आंखों की रोशनी चली गई। करीब 6 महीने के बाद एक बार फिर से आंखों की रोशनी लौटने की उम्मीद तो जगी, मगर यह भी धराशाई हो गई। फिर भी किसी तरीके से हिम्मत जुटाई और कुछ करने की उन्होंने ठान ली। इसके बाद लोग उन्हें सलाह देने लगे कि यूपीएससी की तैयारी करो। दृष्टिबाधित लोगों को इसमें आरक्षण का लाभ मिल जाता है, पर तपस्विनी के मन में कुछ और था। उन्होंने उड़ीसा लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास तो की, लेकिन बिना किसी आरक्षण के। सामान्य श्रेणी में उन्होंने रैंक पाकर दिखाया, जो कि किसी के लिए भी इतना आसान नहीं होता है।
मजबूर नहीं, मजबूत बनीं (Tapaswini Das)
तपस्विनी दास ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने इसकी परवाह ही नहीं कि जिंदगी में उनके साथ क्या हुआ है। उन्होंने बस अपने सपनों पर अपना ध्यान केंद्रित किया। कुछ किया तो वह थी मेहनत। लगन को उन्होंने कभी खत्म नहीं होने दिया। प्रयासों में निरंतरता हमेशा बनाए रखी। नतीजा आखिर यह हुआ कि उन्होंने वह करके दिखा दिया जो बहुत ही कम लोग कर पाते हैं। अपनी सफलता के बाद तपस्विनी दास को मीडिया से बातचीत में यह बताते हुए सुना गया था कि जब उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी तो उन्हें झटका तो जरूर लगा था, लेकिन यह बात भी उन्हें मालूम थी कि इतनी जल्दी सब कुछ नहीं बदलेगा। ऐसे में उन्होंने उसी वक्त अपने मन में यह संकल्प ले लिया था कि उन्हें एक मजबूर इंसान के तौर पर नहीं, बल्कि मजबूत इंसान के रूप में अब आगे की जिंदगी जीनी है।
आया सबसे सुखद पल
तपस्विनी के मुताबिक बदली हुई जिंदगी को जीना आसान तो नहीं था, मगर फिर भी उन्होंने कोशिश शुरू कर दी। पढ़ाई उनकी अंग्रेजी मीडियम स्कूल से हुई थी, लेकिन दृष्टिबाधित हो जाने के बाद कोई ऐसा स्कूल नहीं था जो कि अंग्रेजी मीडियम में उन्हें पढ़ा पाए। ऐसे में उन्हें उड़िया मीडियम से फिर आगे की पढ़ाई करनी पड़ी। तपस्विनी का कहना है कि यह सब मुश्किल तो जरूर था, लेकिन बिना संघर्ष के कुछ हासिल करना मुश्किल है। 10वीं उन्होंने पास कर ली। इसके बाद एक बार फिर से सामान्य स्टूडेंट्स के साथ 11वीं की पढ़ाई उन्होंने शुरू की। थोड़ा कठिन रहा, पर उन्होंने एडजस्ट कर लिया। पॉलिटिकल साइंस से ग्रेजुएशन किया और उसके बाद उत्कल यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन शुरू कर दिया। तपस्विनी के अनुसार उनकी जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल 11 जून, 2018 को आया, जब वे यूनिवर्सिटी टॉपर बन गईं।
आखिर पा ही लिया लक्ष्य (Tapaswini Das)
जब नौवीं कक्षा में तपस्विनी थीं, तभी उन्होंने सिविल सर्विसेज का लक्ष्य बना लिया था। ऑडियो बुक्स से उन्होंने पढ़ाई करनी शुरू की। आखिरकार कामयाबी ने उनके चरण चूम लिए। दूसरी बार ऐसा हुआ कि उड़ीसा में लोक सेवा आयोग की परीक्षा किसी दृष्टिबाधित उम्मीदवार ने पास की। तपस्विनी का कहना है कि जब आपको असफलता हाथ लगती है तो आपको निराश होने की जरूरत नहीं है। आपको यह तलाशना चाहिए कि आखिर इस असफलता की वजह क्या रही है? कहां प्रयत्नों में खामी रह गई है? उन्हें दुरुस्त करके फिर प्रयास करना चाहिए। निरंतरता से आखिरकार सफलता मिल ही जाती है।