Mundan Sanskar Kyu Kiya Jata Hai: हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों का वर्णन है और ये संस्कार क्रमशः गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि हैं। आज हम आपको चूड़ाकर्म यानी कि, मुंडन संस्कार के बारे में विस्तार से बताएंगे। मुंडन संस्कार सनातन संस्कृति का अहम हिस्सा है और हमारे वेदों में बकायदा इसके लिए तिथियों और मुहर्तों को भी बताया गया है। लेकिन बच्चों के मुंडन संस्कार के बारे में बहुत ही कम लोगों की पता है।
जन्म के बाद कब कराना चाहिए बच्चे का मुंडन(Mundan Sanskar Kyu Kiya Jata Hai)
हिंदू धर्म ग्रंथों और शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार बच्चों का मुंडन यानी की चूड़ाकर्म संस्कार जन्म लेने से एक साल के भीतर कर देना चाहिए और अगर किसी कारणवश एक साल के भीतर मुंडन संस्कार कराना संभव नहीं हो पाया है तो फिर तीसरे पांचवें या फिर सातवें साल में भी मुंडन कराया जा सकता है।
हालांकि इस दौरान इस बात का भी ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि, बच्चे का मुंडन शुभ मुहूर्त के अंदर हो बिना मुहूर्त निकले मुंडन संस्कार करना बच्चों के लिए अशुभ माना जाता है। शास्त्रों में मौजूद जानकारी के अनुसार, मुंडन के लिए द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथि बहुत ही शुभ मानी जाती है।
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शुभ नक्षत्रों का भी ध्यान रखना है जरूरी
ऐसा नहीं है की बच्चे के मुंडन एक लिए सिर्फ और सिर्फ साल और तिथियों का ध्यान रखा जाता है अपितु मुंडन के लिए नक्षत्रों का भी ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों और शास्त्रों में मौजूद जानकारी के अनुसार, 11 ऐसे नक्षत्र हैं जिनके अंदर मुंडन कराना बहुत ही शुभ माना जाता है और ये नक्षत्र क्रमशः अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, पुनर्वसु, चित्रा, स्वाति, ज्येष्ठ, श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा हैं। इसके साथ ही शास्त्रों में इस बात का भी वर्णन किया गया है कि, मुंडन कराने से बच्चे की उम्र बढ़ती है और वो निरोगी होता है