Lockdown: दुनियाभर में कोरोना वायरस का संकट फैला हुआ है। भारत में भी इस वक्त लॉकडाउन की स्थिति बनी हुई है। इसकी वजह से अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा है। लोगों के धंधे चौपट हो गए हैं। इस लॉकडाउन के दौरान कई तरह की खबरें सामने आ रही हैं। कोई कह रहा है कि महंगाई बढ़ने जा रही है, तो कोई कह रहा है कि दरवाजे पर मंदी खड़ी है। अपनी जेब में पड़े पैसे बचाने की कोशिश तो इस वक्त हर कोई करता नजर आ रहा है, मगर 85 साल की एक ऐसी दादी भी हैं, जो कि इस लॉकडाउन के दौरान भी लोगों की मदद करने से बिल्कुल भी पीछे नहीं हट रही हैं।
85 साल की दादी बनीं मददगार – Lockdown
देशभर से ऐसी खबरें सामने आ रही हैं कि कई जगहों पर लोग प्रवासी मजदूरों को भोजन करा रहे हैं। इसी बीच तमिलनाडु से एक 85 साल की दादी के बारे में भी कुछ इसी तरह की खबर सामने आई है। तमिलनाडु में कोयंबटूर शहर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर वेदीवेलमपलयम नाम का एक गांव बसा हुआ है। 85 साल की कमलाथल यहां रहती हैं। प्यार से उन्हें सभी लोग यहां इन्हें दादी कह कर बुलाते हैं।
एक रुपये में बेच रहीं इडली
यह दादी यहां बीते कई वर्षों से सांभर और मसालेदार चटनी के साथ इडली बेच रही हैं। सबसे खास बात यह है कि वे इसके लिए केवल 1 रुपया लेती हैं। इंडिया टुडे में इसके बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है, जिसमें बताया गया है कि लॉकडाउन के दौरान भी दादी की ओर से लोगों की मदद बंद नहीं की गई है। भले ही कितना भी घाटा उन्हें हो रहा हो और दुकान उनका बंद रहा हो, इसके बाद भी जब इडली का दाम बढ़ाने की बात आई तो उन्होंने ना कह दिया।
Lockdown – मदद के लिए तैयार
दादी के हवाले से इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कोरोना के इस दौर में परिस्थितियां बहुत ही कठिन हो गई हैं। फिर भी अपनी ओर से वे पूरा प्रयास कर रही है कि वे 1 रुपया में ही अब भी इडली दे सकें। उनका कहना है कि बहुत से मजदूर फंस गए हैं। बहुत से लोग लगातार आते ही जा रहे हैं। उनकी मदद लोग कर रहे हैं। ऐसे में 1 रुपया में इडली खिलाकर बे भी लोगों की मदद करने के लिए तैयार हैं।
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30 साल पहले की थी शुरुआत
मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि इडली वाली दादी की ओर से लगभग 30 साल पहले इडली बेचने की शुरुआत की गई थी। उनकी खास बात यह है कि मुनाफे के लिए वे इडली नहीं बेचतीं। उनका उद्देश्य है लोगों का पेट भरना।
रोज बनाती हैं 1000 इडली
दादी लॉकडाउन से पहले हर दिन 1000 ही इडली बनाती रही हैं। सारा काम वे अकेले करती हैं। 1 रुपया में बे इडली इसलिए बेचतीं हैं, ताकि दिहाड़ी मजदूर और उनका परिवार इसे खरीद कर खा सके। आस-पास के गांव में एक इडली की कीमत 6 रुपये और डोसा की 20 रुपये है।