मार्शल सैम मानेकशॉ का नाम हर कोई इंसान जानता है। सैम भारतीय सेना में फील्ड मार्शल थे। वो कभी भी किसी के सामने नहीं झुकते थे। सैम का जन्म पंजाब के अमृतसर में 3 अप्रैल 1914 को हुआ था। उन्होने करीब चार दशक फौज में काम किया। सैम ने इस दौरान पांच युद्ध लड़े थे 1971 की जंग में उनकी अहम भूमिका थी।
सैम अपनी सेना से प्यार करते थे। वो हमेशा अपने जवानो के बीच अपनों की तरह रहते थे। वो अपने जवानो के हर सुख और दुख में शामिल होते थे। उनकी इस खूबी के पाकिस्तान के लाखों बंदी सैनिक भी कायल थे। अब सैम के ऊपर एक फिल्म भी बनने वाली है। इस फिल्म को डायरेक्ट मेघना गुलजार कर रही है। इस फिल्म में मुख्य किरदार में रणवीर सिंह नज़र आएँगे।
सैम ने किया इंदिरा का विरोध
सैम ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था। कि इंदिरा गांधी ने उन्हें पूर्वी पाकिस्तान में जंग पर जाने को कहा। लेकिन उन्होंने उनकी बात मानने से इंकार कर दिया था। इंदिरा गांधी ने उनको इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि अभी वह जंग के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने बताया जवानों को एकत्रित करने और उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए समय चाहिए। इस वजह से सैम से प्रधानमंत्री काफी समय तक नाराज रहीं।
कुछ महीनो बाद जब प्रधानमंत्री उनसे मिले तो उनके पास जंग का पूरा खाका तैयार था। इंदिरा गांधी और उनके मंत्रियों ने सैम से जानना चाहा कि जंग को ख़त्म होने में कितने दिन लगेंगे। जवाब में सैम ने बताया कि डेढ़ से दो महीने लगेंगे। लेकिन उन्होने जंग को मात्र चौदह दिन में ही ख़त्म कर दिया था। इसके बाद मंत्रियों ने उनसे दोबारा यह सवाल किया कि पहले क्यों नहीं बताया जंग चौदह दिन में ख़त्म हो जाएगी। तब सैम ने जवाब दिया अगर जंग में चौदह दिन की जगह पंद्रह दिन लग जाते तो आप लोग ही परेशान करते।
जंग ख़त्म होने के बाद वो लगभग 90,000 पाकिस्तान सैनिको के साथ भारत आए थे। उन्होंने उन सैनिको के रहने और खाने का प्रबंध करवाया था। सैम ने ये भी बताया कि सरेंडर के कुछ दिन बाद जब वह पाक कैंप में फौजियों से मिलने गए। वहा पर सूबेदार मेजर रेंक के अफसर थे। उन्होंने उनसे हाथ मिलाया और सुविधाओं के बारे में पूछा।
सैम वहां मौजूद सभी फौजियों से मिले इसी दौरान एक सिपाही ने हाथ मिलाने से इंकार कर दिया। तब सैम ने पूछा कि तुम मुझ से हाथ भी नहीं मिला सकते। इसके बाद सिपाही ने हाथ मिलाया और बोला साहब मैं अब समझ गया कि आपने जीत कैसे हासिल की। हमारे अफसर कभी हमसे ऐसे आकर नहीं मिले। वह हमेशा अपने गरूर में रहते थे। इतना कहकर सिपाही भावुक हो गया।
उनका पूरा नाम सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेद जी मानेकशॉ था। सैम जून 1972 में सेना से रिटायर हो गए थे। सैम मानेकशॉ को 3 जनवरी 1973 भारतीय सेना का फील्ड मार्शल बनाया गया था। रिटायरमेंट के बाद नीलगिरी की पहाडि़यों के बीच वेलिंगटन को अपना घर बना लिया था। सैम के ड्राइवर कैनेडी 22 वर्षों तक उनके साथ रहे। सैम के निधन के बाद कैनेडी ने बताया। जब वह हर रोज उनको घर से लेने जाते थे तो वो अपने साथ बिठाकर चाय पिलाते थे। सैम की सादगी का हर कोई दीवाना था।
प्रशांत यादव
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